Anne Franks Story: इजरायल-हमास युद्ध के बीच इज़राइली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने विश्व प्रसिद्ध पुस्तक 'डायरी ऑफ ए यंग गर्ल' की लेखिका ऐनी फ्रेंक को याद किया. उन्होंने कहा, 'ऐसा लगता है जैसे ऐनी फ्रैंक कहानी वापस लौटी है, भयावहता वही डरावनी है. लेकिन होलोकॉस्ट के विपरीत आज हमारे पास एक राज्य, एक सेना और लोग हैं जो लड़ सकते हैं और हम सिर्फ अपना युद्ध नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि हम सभी सभ्य देशों और सभी सभ्य लोगों का युद्ध लड़ रहे हैं.' उन्होंने दुनिया से हमास के खिलाफ जंग में साथ देने की अपील करते हुए कहा, 'जैसे सभ्य दुनिया नाज़ियों से लड़ने में एकजुट हुई, दाएश, आईएसआईएस से लड़ने में एकजुट हुई, वैसे ही सभ्य दुनिया को इजरायल के पीछे एकजुट होना चाहिए, हमास से लड़ना और उसे खत्म करना चाहिए.'


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आखिर ऐनी फ्रेंक कौन हैं जिसे पीएम नेतन्याहू ने याद किया, क्यों उनकी लिखी डायरी दुनिया भर में प्रसिद्ध हुई, क्यों उनके जीवन के बारे में ज्यादा से ज्यादा दिलचस्पी आज भी लोगों में बनी हुई है?


ऐनी फ्रैंक का जन्म 1929 में जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट में हुआ था. ऐनी की बहन मार्गोट उनसे तीन साल बड़ी थीं. यह वह समय था जब एडॉल्फ हिटलर और उनकी पार्टी को अधिक से अधिक समर्थक मिल रहे थे. हिटलर यहूदियों से नफरत करता था और देश की समस्याओं के लिए उन्हें दोषी मानता था. जर्मनी में बेरोज़गारी बहुत अधिक थी और गरीबी गंभीर थी.


हिटलर ने जर्मनी में व्याप्त यहूदी विरोधी भावनाओं का फायदा उठाया. यहूदियों से नफरत और खराब आर्थिक स्थिति के कारण ऐनी के माता-पिता, ओटो और एडिथ फ्रैंक ने एम्स्टर्डम जाने का फैसला किया. वहां, ओटो ने एक कंपनी की स्थापना की जो जैम बनाने के लिए जेलिंग एजेंट पेक्टिन का कारोबार करती थी.


नीदरलैंड में ऐनी का जीवन
ऐनी को नीदरलैंड में घर जैसा महसूस हुआ. उसने नए दोस्त बनाए और अपने घर के पास एक डच स्कूल में गई. उनके पिता ने अपने व्यवसाय को सफल बनाने के लिए कड़ी मेहनत की, हालांकि यह आसान नहीं था. ओटो ने इंग्लैंड में भी एक कंपनी स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन योजना विफल हो गई. जब उन्होंने पेक्टिन के अलावा जड़ी-बूटियां और मसाले बेचना शुरू किया तो चीजें बेहतर हुईं.


नीदरलैंड पर जर्मनी का कब्जा
1 सितंबर 1939 को, जब ऐनी 10 साल की थी, नाजी जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया और इस तरह दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया. कुछ ही समय बाद, 10 मई 1940 को नाजियों ने नीदरलैंड पर भी आक्रमण कर दिया. पांच दिन बाद, डच सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया.


नीदरलैंड में धीरे-धीरे नाजियों ने अधिक से अधिक कानून और नियम लागू किए जिससे यहूदियों का जीवन और अधिक कठिन हो गया. उदाहरण के लिए, यहूदी अब पार्कों, सिनेमाघरों या गैर-यहूदी दुकानों में नहीं जा सकते थे. इन नियमों की वजह से अधिक से अधिक स्थान ऐनी के लिए वर्जित हो गए.


उसके पिता ने अपनी कंपनी खो दी, क्योंकि यहूदियों को अब अपना व्यवसाय चलाने की अनुमति नहीं थी. ऐनी सहित सभी यहूदी बच्चों को अलग-अलग यहूदी स्कूलों में जाना पड़ा.


ऐनी को सीक्रेट जगह छिपना पड़ता है
नाज़ियों के शासन में यहूदियों को अपने कपड़ों पर डेविड का सितारा पहनना शुरू करना पड़ा और ऐसी अफवाहें थीं कि सभी यहूदियों को नीदरलैंड छोड़ना होगा. ऐनी की बड़ी बहन मार्गोट को जब 5 जुलाई 1942 को नाजी जर्मनी में एक तथाकथित 'श्रम शिविर' के लिए रिपोर्ट करने के कहा गया तो उसके माता-पिता को संदेह हुआ. उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि मार्गोट को किसी काम को करने के लिए बुलाया जा रहा है.


उत्पीड़न से बचने के लिए फ्रेंक परिवार ने छिपने का फैसला किया. 1942 के वसंत में, ऐनी के पिता ने अपने व्यावसायिक परिसर के विस्तार में छिपने की जगह तैयार करना शुरू कर दिया. उन्हें अपने पूर्व सहयोगियों से मदद मिली. जल्द ही, उनके साथ चार और लोग जुड़ गए. छिपने की जगह तंग थी. ऐनी को बहुत चुप रहना पड़ता था और अक्सर डर लगता था.


ऐनी की डायरी
एनी फेंक के तेरहवें जन्मदिन पर ( उनके छिपने से ठीक पहले) ऐनी को एक डायरी भेंट की गई. सीक्रेट जगह में छिपने के दो वर्षों के दौरान, ऐनी ने इस अनुभव को डायरी में लिखा. इसके अलावा, उन्होंने लघु कथाएं लिखीं, एक उपन्यास शुरू किया. एनी को लेखन से समय गुजारने में मदद मिली.


छिपने की जगह का पता चलना
ऐनी, उसके परिवार और छिपे हुए अन्य लोगों को 4 अगस्त 1944 को पुलिस अधिकारियों ने खोज लिया और गिरफ्तार कर लिया गया. ऐनी के परिवार को ऑश्वित्ज कंसंट्रेशन कैंप ले जाया गया. ऐनी, मार्गोट और उनकी मां को महिलाओं के जबकि ओटो को पुरुषों के शिविर में रखा गया.


नवंबर 1944 की शुरुआत में, ऐनी अपनी बड़ी बहन मार्गोट के साथ बर्गेन-बेल्सन कंसंट्रेशन कैंप भेज दिया गया. उनके माता-पिता ऑश्वित्ज में ही रह गए थे.


बर्गेन-बेलसेन के हालात भी बेहद खराब थे. कैंप में भोजन की कमी थी, ठंड थी, नमी थी और संक्रामक बीमारियां थीं. ऐनी और मार्गोट को टाइफस हो गया. फरवरी 1945 में इसके प्रभाव से उन दोनों की मृत्यु हो गई, पहले मार्गोट की, कुछ समय बाद ऐनी की.


कुछ समय बाद रूसी सेना ने ऑश्वित्ज को कब्जे में लेकर वहां के लोगों को आजाद कराया. परिवार में केवल ओटो फ्रेंक ही बच पाए. ऑश्वित्ज से बाहर आकर उन्हें अपनी दोनों बेटियों और पत्नी की मृत्यु के बारे में पता चला .


आगे चलकर ओटो को अपनी बेटी ऐनी की डायरी के बारे में पता चला. यह डायरी जब प्रकाशित हुई तो शीघ्र ही इसे दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण किताबों में जगह मिल गई. 70 से अधिक भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है.