इजरायल से मदद लेकर जॉर्डन ने किया था फिलिस्तिनियों पर हमला, मध्य पूर्व के इस सच को जान लीजिए
Israel-Hamas War: किंग अब्दुल्ला आज खुलकर फिलिस्तीनियों का समर्थन कर रहे हैं हालांकि कभी उनके पिता और जॉर्डन के पूर्व किंग हुसैन ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के खिलाफ युद्ध लड़ा था.
Black September War: गाजा के अल-अहली अरब अस्पताल पर हुए हमले के बाद जॉर्डन ने गाजा पर चर्चा के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, मिस्र और फिलिस्तीनी नेताओं के साथ बुधवार को अम्मान में आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन को रद्द कर दिया है. विस्फोट में करीब 300 फिलिस्तीनियों की मौत हो गई. जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला ने गाजा अस्पताल में मंगलवार को हुए विस्फोट के लिए इजराइल को दोषी ठहराया है. उन्होंने इजरायल से गाजा के खिलाफ अपने सैन्य अभियान को तुरंत बंद करने को कहा.
उम्मीद की जा रही थी कि बाइडेन इजरायल की यात्रा के जॉर्डन जाएंगे जहां मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सिसी और फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास से मुलाकात करेंगे. हालांकि जॉ़र्डन के बैठक रद्द करने से पहले ही फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इस बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया था. व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने मंगलवार को बाडेन के प्रस्थान के बाद कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति अब केवल इज़राइल का दौरा करेंगे और जॉर्डन की अपनी यात्रा स्थगित कर देंगे.
किंग अब्दुल्ला आज भले ही खुलकर फिलिस्तीनियों का समर्थन कर रहे हैं हालांकि कभी उनके पिता और जॉर्डन के पूर्व किंग हुसैन ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के खिलाफ युद्ध लड़ा था. इस युद्ध को ब्लैक सितंबर के रूप में याद किया जाता है. लड़ाई में इजरायल ने जॉर्डन की मदद की थी. जंग में हजारों फिलिस्तीनियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
यह लड़ाई मुख्य रूप से 16 और 27 सितंबर 1970 के बीच लड़ी गई, हालांकि संघर्ष के कुछ पहलू 17 जुलाई 1971 तक जारी रहे.
युद्ध का कारण
1967 के छह-दिवसीय युद्ध के दौरान, इजरायल ने जॉर्डन के कब्जे वाले वेस्ट बैंक को अपने कंट्रोल में ले लिया. इसके बाद फिलिस्तीन फिदायीनों का जॉर्डन में जाने का सिलसिला शुरू हो गया और इन्होंने इजरायल और उसेक कब्जे वाले नए क्षेत्रों पर अपने हमले तेज कर दिए.
हालांकि जल्द ही फिलिस्तीनी फिदायीन और किंग हुसैन आमने-सामने आ गए. तनाव तब शुरू हुआ जब 1968 में जॉर्डन के खिलाफ एक इजरायली कैंपेन शुरू हुआ, जो करामेह की पूर्ण पैमाने की लड़ाई में बदल गया.
कारमेह की लड़ाई में दोनों पक्षों ने अपनी जीत का दावा किया है. हालांकि इजरायल पीएलओ लीडर यासिर आराफात को पकड़ने में नाकाम रहा.
पीएलओ के लोकप्रियता में बढ़ोतरी
इजरायली सैनिकों के खिलाफ जॉर्डन और फिलिस्तीनियों की कथित संयुक्त जीत के कारण जॉर्डन में पीएलओ के लिए सपोर्ट बढ़ता गया. नई भर्तियों और वित्तीय मदद मिलने से, जॉर्डन में पीएलओ की ताकत तेजी से बढ़ने लगी. 1970 की शुरुआत तक, पीएलओ के भीतर कुछ समूहों ने जॉर्डन की हाशमाइट राजशाही को उखाड़ फेंकने का आह्वान करना शुरू कर दिया था.
पीएलओ और किंग हुसैन के बीच तनाव बढ़ता गया. जून 1970 में जॉर्डन के सशस्त्र बलों और पीएलओ के बीच पहला हिंसक टकराव हुआ. हालांकि हुसैन बलपूर्वक फिलिस्तीनी फिदायीनों को देश से बाहर निकालना चाहते थे, लेकिन हमला करने से झिझक रहे थे. उन्हें डर था कि उनके दुश्मन फिलिस्तीनी लड़ाकों पर किए हमले का फायदा उठा सकते हैं.
जॉर्डन और इजरायल की दोस्ती
इस सब के बीच जॉर्डन और इजरायल की दोस्ती परवान चढ़ने लगी. दरअसल लीबिया, सऊदी अरब और कुवैत जैसे देश खुलेआम फिलिस्तीनी फिदायीन का समर्थन ले रहे थे. ऐसे में किंग हुसैन को संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल के अलावा कोई बाहरी ताकत नहीं दिखी जो उनका समर्थन कर सके.
17 फरवरी 1970 को, तेल अवीव में अमेरिकी दूतावास ने हुसैन की तरफ इज़राइल को तीन प्रश्न भेजे. इन सवालों का इजरायल ने हुसैन को सकारात्मक उत्तर दिया. इसके साथ ही इजरायल ने आश्वासन दिया कि यदि जॉर्डन सीमाओं से अपने सैनिकों को हटा लेता है तो वे लाभ नहीं उठाएंगे.
इसके कुछ समय बाद इजरायली तोपखाने और वायु सेना ने जॉर्डन के शहर इरबिड पर हमला किया. यह हमला 3 जून को बीट शीन पर हुए एक फिदायीन हमले के प्रतिशोध के लिए किया गया था.
जॉर्डन की सेना ने इजरायल के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की जिसके लिए हुसैन ने गोलाबारी का आदेश दिया था. हालांकि जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि इससे हिंसा का एक खतरनाक दौर शुरू हो सकता है. नतीजतन, उन्होंने अम्मान में अमेरिकी दूतावास के माध्यम से, इजरायलियों के साथ युद्धविराम का अनुरोध किया ताकि वह फिदायीन के खिलाफ मजबूत कदम उठा सकें.
इज़राइल को दिए गए संदेश में कहा गया कि 'जॉर्डन सरकार इजरायल पर फिदायीन रॉकेट हमलों को रोकने के लिए हर संभव कोशिश कर रही थी. किंग को रॉकेट हमलों पर गहरा अफसोस है.' अमेरिकियों के दबाव के बाद इज़राइल ने हुसैन के अनुरोध को स्वीकार कर लिया.
आगे चलकर ब्लैक सितंबर के युद्द के दौरान इजरायल-जॉर्डन की करीबी फिर देखने को मिली. यहां तक कि इजरायली वायु सेना ने जॉर्डन की मदद के लिए सीरिया के खिलाफ कार्रवाई भी की. इसके लिए किंग हुसैन की ओर से ही अनुरोध किया गया था.
इस घटना के बाद शुरू हुआ युद्ध
इस बीच 6 सितंबर 1970 के डावसन फील्ड अपहरण घटना हुई, जब पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन (पीएफएलपी) ने तीन नागरिक यात्री उड़ानों को हाइजैक कर लिया . हाइजैक किए गए विमानों को जॉर्डन के शहर ज़ारका में उतरने के लिए मजबूर किया और कई विदेशी नागरिकों को बंधक बना लिया गया.
हुसैन ने इस घटना को आखिरी चेतावनी के रूप में लिया और जॉर्डन सेना को कार्रवाई करने का आदेश दिया. 17 सितंबर 1970 को, जॉर्डन की सेना ने अम्मान और इरबिड सहित पीएलओ की महत्वपूर्ण उपस्थिति वाले सभी शहरों को घेर लिय. जॉर्डन सेना ने फिलिस्तीनी शरणार्थी शिविरों पर गोलाबारी शुरू कर दी, जहां फिदायीन एक्टिव थे.
इस युद्ध में सीरियाई सैनिक भी पीएलओ के समर्थन में लड़े हालांकि उन्हें 22 सिंतबर को इरबिड शहर में भारी नुकसान उठाने के बाद फीछे हटना पड़ा.
इराक सहित अन्य अरब देशों के बढ़ते दबाव के कारण हुसैन को अपना आक्रमण रोकना पड़ा. 13 अक्टूबर को, उन्होंने जॉर्डन में अराफात के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
हालाकि, जॉर्डन की सेना ने जनवरी 1971 में फिर से हमला किया और फिलिस्तीनियों को एक-एक करके शहरों से बाहर निकाल दिया गया. 17 जुलाई को अजलुन हमले के दौरान घिरे होने के बाद 2,000 फिदायीनों के सरेंडर को इस युद्ध का अंत माना जाता है.
युद्ध के परिणाम
युद्ध में पीएलओ के करीब 3400 लोगों की मौत हुई जबकि सीरिया के 600 जवान मारे गए. वहीं जॉर्डन के 537 सैनिक युद्ध में मारे गए.
जॉर्डन ने फिलिस्तीन फिदायीनों को सीरिया के माध्यम से लेबनान में जाने की अनुमति दी. चार साल बाद, फिदायीन लेबनानी गृहयुद्ध में शामिल हो गए, जो 1990 तक जारी रहा.
फिदायीनों द्वारा ‘फिलिस्तीनी ब्लैक सितंबर संगठन’ की स्थापना की गई. संगठन का पहला उल्लेखनीय हमला 1971 में जॉर्डन के प्रधानमंत्री वास्फी ताल की हत्या थी, जिन्होंने फिलिस्तीनी फिदायीनों के खिलाफ सैन्य अभियानों के कुछ हिस्सों की कमान संभाली थी.
इसके बाद संगठन ने अपना ध्यान इजरायली ठिकानों पर हमला करने पर केंद्रित कर दिया और बाद में म्यूनिख नरसंहार को अंजाम दिया, जिसमें 1972 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में एक हाई-प्रोफाइल हमले में 11 इजरायली एथलीटों की हत्या कर दी गई.