बीजिंग: चीन ने ‘चरमपंथ को रोकने’ और आंतरिक सुरक्षा के खतरों से निपटने के लिए धार्मिक स्वतंत्रता पर लगी पाबंदियों को सख्त कर दिया है. चीन की कैबिनेट स्टेट काउंसिल की ओर से गुरुवार (7 सितंबर) को संशोधित नियम जारी किए गए हैं. यह कदम उस वक्त उठाया गया है जब चीन में मुस्लिम और ईसाई आबादी पर पहले से ही कई तरह के नियंत्रण हैं. धार्मिक संगठनों के विदेश से अनुदान लेने पर भी रोक लगाई गई है. चीन का कहना है कि स्थानीय चरमपंथ और इस्लामी कट्टरपंथ से खतरा है, लेकिन आलोचकों का आरोप है कि बीजिंग ने उत्पीड़न, गिरफ्तारियों और अधिकारों के हनन का दायरा बढ़ा दिया है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

स्टेट काउंसिल की वेबसाइट पर जारी नियमों की एक प्रति में कहा गया है, ‘‘कोई भी संगठन या व्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने, सामाजिक तानेबाने को कमजोर करने जैसी गैरकानूनी गतिविधियों के लिए धर्म का इस्तेमाल नहीं कर सकता.’’ धार्मिक समूहों को सरकार के साथ पंजीकृत होना पड़ेगा तथा गैरपंजीकृत संगठनों के स्कूल स्थापित करने पर रोक होगी. गैर-पंजीकृत समूहों को पहले से ही धार्मिक स्थल बनाने पर रोक है. बिना अनुमति के धार्मिक आयोजन करने पर तीन लाख युआन का जुर्माना लगेगा तथा ऐसे आयोजन के लिए जगह मुहैया कराने वालों पर भी दो लाख युआन का जुर्माना लगेगा. 


पाकिस्तान, अफगानिस्तान को साथ लाएगा चीन 


चीन ने शुक्रवार (8 सितंबर) को कहा कि वह अफगानिस्तान में 16 साल पुराने संकट को हल करने के प्रयासों में पाकिस्तान और काबुल को साथ लाने के लिए ‘रचनात्मक भूमिका’ निभाएगा. बीजिंग के इस नए कदम को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तालिबान और पाकिस्तान के खिलाफ सख्त नीति का मुकाबला करने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है. चीन की नयी अफगानिस्तान नीति को सामने रखते हुए चीनी विदेश मंत्री वांग यी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने कहा कि इस्लामाबाद और काबुल को साथ लाने में बीजिंग ‘रचनात्मक भूमिका’ निभाएगा.


आसिफ ने वांग के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘इस्लामाबाद और काबुल को साथ लाने और अफगान समस्या का राजनीतिक समाधान करने में चीन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. इस कदम का सहयोग करने के लिए पाकिस्तान पहले ही कदम उठा चुका है और हम काबुल के साथ संबंध सुधारने के लिए कदम उठाना जारी रखेंगे.’’


पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा कि बीजिंग के अपने दौरे से पहले उन्होंने अफगानिस्तान के अपने समकक्ष सलाहुद्दीन रब्बानी से बातचीत की और दोनों संयुक्त राष्ट्र महासभा से इतर मुलाकात करने पर सहमति जताई. वांग ने कहा, ‘‘अच्छे संबंध दोनों देशों को फायदा पहुंचाएगा, वरना दोनों को नुकसान होगा. इसलिए हम आशा करते हैं कि दोनों देश एक ही दिशा में काम करेंगे और मिलकर काम करेंगे तथा क्षेत्र में शांति में योगदान देंगे.’’ 


(इनपुट एजेंसी से भी)