DNA With Sudhir Chaudhary: फ्रांस में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में मौजूदा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों फिर से जीत गए हैं. मैक्रों ने फ्रांस की Right Wing नेता Marine Le Pen को हरा दिया और अगले पांच वर्षों के लिए फिर फ्रांस के राष्ट्रपति चुन लिए गए. इस चुनाव में मैक्रों को 58.55 प्रतिशत वोट मिले, जबकि उनकी विरोधी उम्मीदवार मरीन ली पेन को 41.45 प्रतिशत वोट ही मिले. फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के ये नतीजे कई लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हैं और इमैनुएल मैक्रों का दोबारा सत्ता में आने का भी ऐतिहासिक महत्व है. पिछले 20 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है, जबकि फ़्रांस में किसी राष्ट्रपति को दोबारा चुन लिया गया हो. जीत के बाद मैक्रों अपनी पत्नी के साथ ऐतिहासिक Eiffel tower के पास पहुंचे और अपने समर्थकों के साथ बातचीत की.


भारत की तरह फ्रांस भी इस्लामी आतंकवाद से पीड़ित


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यहां आपको ये भी जानना चाहिए कि मैक्रों की जीत इतनी महत्वपूर्ण क्यों है और भारत के लिए उनकी वापसी के क्या मतलब हैं? इसके लिए हम तीन प्वाइंट्स में आपको भारत और फ्रांस की मौजूदा राजनीतिक स्थितियों की तुलना कर के बताएंगे. पहली समानता ये है कि इंडोनेशिया के बाद भारत में दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है, उसी तरह यूरोप में सबसे ज़्यादा मुसलमान फ्रांस में रहते हैं. दूसरी समानता ये है कि भारत की तरह फ्रांस भी धार्मिक कट्टरता और इस्लामी आतंकवाद से पीड़ित है. भारत में पिछले कुछ समय में इस्लामी आतंकवाद की कई घटनाएं देखी गई हैं और धर्म के आधार पर हिंसा के मामले भी बढ़ रहे हैं. इसी तरह फ्रांस में इस्लामी आतंकवादी कई बड़े हमले कर चुके हैं. दोनों देशों के बीच तीसरी समानता ये है कि दोनों ही देश अवैध घुसपैठियों और प्रवासियों की समस्या से पीड़ित हैं और ये मुद्दा इन देशों की राजनीति को प्रभावित करता है.


मैक्रों ने बहुत बेहतरीन रणनीति अपनाई


लेकिन मैक्रों ने बहुत बेहतरीन रणनीति अपनाई. वैसे वो मध्यमार्गी नेता माने जाते हैं. यानी वो न तो कट्टर वामपंथी हैं, और न ही दक्षिणपंथी, लेकिन उन्होने इस्लामी आतंकियों और कट्टरपंथियों  पर खुलकर कार्रवाई की. यानी उन्होने इस फ्रंट पर खुद को किसी दक्षिणपंथी नेता की तरह पेश किया, कोई तुष्टीकरण नहीं किया और कड़ी कार्रवाई की. दूसरी तरफ़ उन्होने कई मुद्दों पर उदारवादी नेता की तरह फ्रांस की एकता, धार्मिक सद्भावना की बात की. इस तरह उन्होने दोनों ही तरफ के वोट मिले और वो दोबारा राष्ट्रपति बन गए.


पीएम मोदी और मैक्रों की शानदार केमिस्ट्री


आइये अब आपको बताते हैं कि मैक्रों की ये जीत भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के बीच क्या समानताएं हैं. इसके लिए सबसे पहले आपको ये जानना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इमैनुएल मैंक्रों की आपसी केमिस्ट्री बहुत शानदार है. इसलिए मैक्रों का दोबारा सत्ता में लौटना भारत के लिए काफी अच्छा है. भारत को लेकर मैक्रों का विजन स्पष्ट  है, वो भारत को अपना अच्छा दोस्त कहते हैं और उन्होने कई बार इसे साबित भी किया है. मैक्रों के शासनकाल में ही भारत को 36 rafale फाइटर जेट की डिलीवरी देने की शुरुआत की गई. जब चीन के साथ गलवान में हिंसक झड़प हुई तो मैक्रों ने खुलकर भारत का साथ दिया और उन्होंने बाकी बचे rafale तय वक्त से पहले भेजने का भी ऐलान किया. इस डील के तहत अब तक 35 rafale आ चुके हैं. ये पीएम नरेंद्र मोदी और मैक्रों की दोस्ती का ही नतीजा है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता की मांग को भी फ्रांस ने समर्थन दिया है.


मैक्रों और पीएम मोदी के बीच कई समानताएं


फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच कई समानताएं हैं. दोनों नेताओं की नीतियों में सबसे बड़ी समानता रशिया और यूक्रेन युद्ध के बीच देखने को मिली है. पीएम मोदी ने रशिया के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से भी बातचीत की और युद्ध की जगह कूटनीति से इस मुद्दे का हल निकालने की अपील की. इसी तरह फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी किसी एक देश का पक्ष नहीं लिया और दोनों देशों के राष्ट्रपतियों से लगातार बातचीत करते रहे.


मैक्रों ने आतंकवाद के खिलाफ दिया भारत का साथ


इसी तरह जब पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में इस्लामोफोबिया को लेकर एक प्रस्ताव पेश किया, तो सिर्फ़ भारत और फ्रांस ने ही इस प्रस्ताव का विरोध किया. पाकिस्तान ने हर वर्ष 15 मार्च को विश्व इस्लामोफोबिया दिवस के तौर पर मनाने का प्रस्ताव पेश किया था और उसके इस प्रस्ताव को बहुमत के साथ पास भी कर दिया गया. लेकिन भारत और फ्रांस धर्म के आधार पर लाए जाने वाले इस प्रस्ताव के खिलाफ एकजुटता के साथ खड़े रहे. दोनों ही नेता आंतकवाद के मुद्दे पर भी ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हैं. मैक्रों ने आतंकवाद के खिलाफ़ भारत की कार्रवाई को अपना समर्थन दिया है. इसी तरह जब मैक्रों ने फ्रांस में इस्लामी आतंकवाद से निपटने के लिए कड़े कदम उठाए तो पीएम मोदी ने भी खुलकर फ्रांस का समर्थन दिया.


जिन Marine Le Pen (मैरीन ली पेन) कौन हैं?


यहां आपको ये भी जानने की जरूरत है कि जिन Marine Le Pen (मैरीन ली पेन) को इमैनुएल मैंक्रों ने हराया है, वो कौन हैं? 53 साल की Marine Le Pen (मैरीन ली पेन)  पेशे से वकील हैं और वो इससे पहले 2012 और 2017 में भी फ्रांस के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुकी हैं और दोनों ही बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा.  इस बार यानी 2022 में भी वो अपना तीसरा चुनाव हार चुकी हैं. Le Pen (ली पेन) Right wing की नेता हैं और अपने चुनाव प्रचार में उन्होंने Head scarf को बैन करने और फ्रांस में बाहर से आने वाले शरणार्थियों पर सख्ती वाला कानून बनाने का वादा किया था. उनके पिता Jean Marie Le Pen (जीन मैरी ली पेन) भी फ्रांस का राष्ट्रपति बनना चाहते थे और उन्होंने 5 बार चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वो भी एक बार भी चुनाव नहीं जीत पाए.


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