France में इस्लामी कट्टरपंथ पर एक और सर्जिकल स्ट्राइक, हिजाब के बाद अब विदेशी इमामों पर बैन
France Foreign Cleric News: इस्लामी कट्टरपंथ पर लगाम लगाने के लिए फ्रांस की सरकार ने एक और अहम फैसला किया है. हिजाब पर बैन लगाने के बाद अब विदेशी इमामों की नियुक्ति पर भी रोक लगा दी है. फ्रांस सरकार का कहना है कि मुस्लिम समाज को कट्टरपंथी विचारों से दूर रखने के लिए एक फोरम ऑफ इस्लाम का गठन किया जाएगा.
Ban on Foreign Imams in France: यूरोप में फ्रांस एक ऐसा देश है जो मुस्लिम अलगाववादियों से सबसे अधिक परेशान है. 2015 में आईएसआईएस से जुड़े फ्रांसीसी और बेल्जियम को निशाना बनाते हुए आतंकवादी हमला किया था. उस अटैक में 130 लोग मारे गए और करीब 500 घायल हो गए थे. 2015 में ही सशस्त्र बंदूकधारियों ने व्यंग्य पत्रिका चार्ली हेब्दो के कार्यालय को निशाना बनाया था जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई थी. अल कायदा ने हमले की जिम्मेदारी ली थी. साल 2016 में ISIS समर्थक ने नीस में बैस्टिल डे पर आतिशबाजी देख रहे दर्शकों की भीड़ पर ट्रक चढ़ा दिया था जिसमें 86 लोग मारे गए थे. ये वो कुछ ऐसे तथ्य है जिससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि फ्रांस में इस्लामी आतंकवाद किस हद तक जड़ें जमा चुका है.
अब विदेशी इमाम को नो एंट्री
मुस्लिम अलगाववादियों पर लगाम लगाने के लिए फ्रांस की सरकार ने कुछ कड़े फैसले लिए हैं. उन फैसलों में अब विदेशी मुस्लिम इमामों पर रोक लगाना भी शामिल है. इसके लिए खासतौर पर कानून बनाया गया है.नए कानून के तहत विदेशी इमामों को उनके देश भेजा जायगा. या उन्हें स्थानीय मस्जिदों में कम महत्व वाली भूमिका में रखा जाएगा. अब फ्रांस सरकार खुद धार्मिक नेताओं का चयन एक कमेटी के जरिए करेगी. इस कमेटी में सरकारी अधिकारी शामिल होंगे जो मुस्लिम समाज को गाइड करने का काम करेंगे ताकि वो कट्टरपंथी ताकतों के बहकावे में ना आएं.
इस्लामी कट्टरवाद से बचाने की कवायद
अक्टूबर 2020 में फ्रांस के सेंट-लेगर-डी-फौगेरेट में यूरोपीय सामाजिक विज्ञान संस्थान में छात्रों को पहले से ही कुरान की शिक्षा दी जा रही है. बता दें कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने पहली बार फरवरी 2020 के भाषण में इस पहल का प्रस्ताव रखा था उनका मानना था कि फ्रांस को किसी भी कीमत पर अपने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को सजों कर रखना है. दरअल चरमपंथी, फ्रांस को कमजोर करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. मैक्रॉन की उस पहल 1977 में बनाए गए कार्यक्रम पर कड़ी चोट के तौर पर देखा गया. उस व्यवस्था में कई मुस्लिम बहुसंख्यक देशों को सांस्कृतिक और भाषा पाठ्यक्रमों के लिए इमामों को फ्रांस भेजने की इजाजत दी थी. हालांकि ये फ्रेंच सरकार की निगरानी से बाहर होते थे. मैक्रॉन का तर्क है कि विदेशी सरकारों द्वारा वित्त पोषित इमाम उस चीज को बढ़ावा दे सकते हैं जो इस्लामी अलगाववाद की शक्ल में है. हालांकि आलोचक उनके तर्क से इत्तेफाक नहीं रखते. उनका मानना है कि राजनीतिक नियुक्तियों से भरे इस निकाय में मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधि नहीं होगा.
फ्रांस में हिजाब पर पहले से ही बैन
हाल ही में अगस्त 2023 में फ्रांस ने सार्वजनिक स्कूलों में पारंपरिक इस्लामी परिधानों पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे कई लोगों ने मुस्लिम पहचान को दबाने की नीति माना। फ़्रांस ने 2021 में अपहोल्डिंग रिपब्लिकन वैल्यूज कानून पारित किया, जिसने सरकार को उन धार्मिक संगठनों की निगरानी करने और भंग करने की व्यापक शक्तियां दीं जो फ्रांसीसी रिपब्लिकन मूल्यों के विपरीत मूल्यों को बढ़ावा देते हैं. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड इकोनॉमिक स्टडीज के मुताबिक फ्रांस के शहरों में मुस्लिम आबादी करीब 10 फीसद है. ये पश्चिमी यूरोप में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी शामिल है. फ्रांसीसी सार्वजनिक नीति अपनी अल्पसंख्यक आबादी को एकीकृत करने के साधन के रूप में फ्रांसीसी राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देने पर केंद्रित है. कई बार अल्पसंख्यक समूहों ने शिकायत की है कि यह उनकी राष्ट्रीयता को दबाता है और उनके समाज में आक्रोश पैदा करता है.