लाहौर: मुंबई हमले के मुख्य षड्यंत्रकारी और जमात- उद- दावा के प्रमुख हाफिज सईद ने लाहौर उच्च न्यायालय में गुरुवार (15 मार्च) को याचिका दायर कर उसकी सामाजिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने वाली पाकिस्तान के गृह मंत्रालय की अधिसूचना को चुनौती दी. सईद ने अपने अधिवक्ता ए के डोगर के जरिये याचिका दायर की. उसने लाहौर उच्च न्यायालय से कहा कि गृह मंत्रालय ने उसके बैंक खाते से लेन- देन पर रोक लगाने और जमात- उद- दावा और फलह- ए- इंसानियत फाउन्डेशन से संबंधित उसकी संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेने के लिये गत 10 फरवरी को एक अधिसूचना जारी की थी. यह अधिसूचना आतंकवाद निरोधी (संशोधन) अध्यादेश 2018 के तहत जारी की गई थी.


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सईद ने कहा, ‘‘पाकिस्तान सरकार ने संयुक्त राष्ट्र और भारत समेत विदेशी शक्तियों के दबाव में काम किया.’’ उसने दावा किया कि पाकिस्तान एक स्वतंत्र संप्रभु देश है और अपने नागरिकों पर लागू करने के लिये अपना कानून खुद बनाता है. सईद ने कहा, ‘‘अगर देश के कानून और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अधिनियम, 1948 के किसी प्रावधान में टकराव है तो देश का कानून प्रभावी होना चाहिए.’’


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सईद ने उसके संगठनों की संपत्तियों पर कब्जा करने के संबंध में गृह मंत्रालय की अधिसूचना को अमान्य घोषित करने की मांग की. सईद ने पिछले सप्ताह इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में एक अलग याचिका में राष्ट्रपति के उस अध्यादेश को चुनौती दी थी जिसके तहत उसके संगठन को संयुक्त राष्ट्र की निगरानी सूची में होने के कारण प्रतिबंधित कर दिया गया है.


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इससे पहले पाकिस्तान की एक अदालत ने मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की मिल्ली मुस्लिम लीग को राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत कराने की अनुमति देने का चुनाव आयोग को आदेश दिया था. कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान की एक अदालत ने जमात- उद- दावा प्रमुख की “संभावित गिरफ्तारी” पर लगे स्थगन को चार अप्रैल तक बढ़ा दिया था. इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार (8 मार्च) को पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) द्वारा सईद के राजनीतिक मोर्चे मिल्ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) को एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर पंजीकृत करने के आवेदन को खारिज किए जाने के फैसले को रद्द कर दिया था.


जस्टिस आमिर फारूक ने पार्टी को सुनवाई का मौका देकर मामले को फिर से चुनाव आयोग को भेजा और आवेदन पर आगे की कार्रवाई करने को कहा था. एमएमएल ने अपने अध्यक्ष सैफुल्ला खालिद के जरिए अदालत का रुख किया और चुनाव आयोग एवं गृह सचिव को मामले में प्रतिवादी बनाया. डॉन अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार, चुनाव आयोग के 11 अक्तूबर, 2017 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका ने इसे अकारण, गैर- कानूनी और संविधान एवं कानून के खिलाफ बताया.


(इनपुट एजेंसी से भी)