China-Maldives: मालदीव इन दिनों चीन के साथ खड़ा है, वो चीन, जो मदद के बहाने गुलाम बनाता है. इसके उलट भारत जब अपने पड़ोसियों की मदद करता है तो उनकी किस्मत बदल देता है. स्थिति ये है जो श्रीलंका दूसरों की मदद मांगता था, अब वो दूसरों को मदद दे रहा है. वहीं मालदीव ने अपनी हालत ऐसी कर ली है कि वो भारत से मदद भी नहीं मांग पा रहा है. मालदीव ने इमरजेंसी मेडिकल सहायता के लिए श्रीलंका की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया है. सोचिए मालदीव अब उससे मदद मांग रहा है, जिसकी कभी भारत ने मदद की थी. एक शेर है:-


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दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे 
जब कभी दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों...


मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू के लिए ये लाइनें बिल्कुल सटीक बैठती हैं. इन दिनों मोइज्जू जिस तरह भारत से दुश्मनी मोल ले रहे हैं, जब कभी भी वो चीन की झूठी दोस्ती और भारत के अहसान को समझेंगे. हो सकता है तब तक मोइज्जू के लिए बहुत देर हो जाए. 


भारत के आगे शर्मिंदा है मालदीव


मोइज्जू ने मालदीव के लिए ऐसी स्थिति कर दी है कि अब तो मालदीव को भारत से मदद मांगने भी शर्मिंदगी महसूस हो रही है, तभी तो मालदीव ने मेडिकल इमरजेंसी के लिए श्रीलंका से मदद मांगी है. मालदीव ने श्रीलंका से कहा है कि वो मालदीव में गंभीर मरीजों को एयर एंबुलेंस से निकालने के लिए मदद भेजे. मालदीव के गंभीर मरीजों को श्रीलंका अपने देश में इलाज करवाए. 



कुछ महीनों पहले तक भारत मालदीव को मेडिकल इमरजेंसी में मदद देता रहा था. पिछले साल नवंबर में जब भारतीय कोस्ट गार्ड के जवानों ने एक गंभीर रूप से बीमार मालदीव के नागरिक को एयर एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया था, जिस विमान से मरीज को ले जाया गया था, वो भी भारत ने मालदीव को तोहफे में दिया था.


विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, 'आज चीन एक बड़ी इकोनॉमी है, वो पड़ोसियों को संसाधन देगा. वो अपने हिसाब से चीजों को बदलने की कोशिश करेगा, तो हम दूसरों से क्यों अपेक्षा रखें. इसका जवाब ये नहीं होना चाहिए कि हम चीन की शिकायत करते रहें, जवाब ये होना चाहिए  कि आप कर रहे हैं, हम आप से बेहतर काम करेंगे.


श्रीलंका से मदद मांगने की नौबत


अब मालदीव का चीन प्रेम उसे इतना भारी पड़ गया है, कि उसे श्रीलंका से मदद मांगनी पड़ रही है. शायद मोइज्जू ये भूल गए हैं कि श्रीलंकाजो आज उनकी मदद करने के लिए राजी हो गया है, उस श्रीलंका को आर्थिक संकट से उबारने में भारत की ही भूमिका रही है.


2022 के आर्थिक संकट के वक्त भारत ने श्रीलंका को साढ़े 4 अरब डॉलर यानी करीब 37,342 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद दी, जबकि विश्व बैंक ने सिर्फ 3 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता दी. यानी IMF से ज्यादा बढ़ी मदद श्रीलंका को भारत ने ही दे दी थी. इसी मदद का नतीजा है कि आज श्रीलंका...मालदीव को मदद कर पा रहा है. यानी जिसकी मदद भारत ने की, अब उसी से मेडिकल इमरजेंसी की मदद मांग रहे मोइज्जू.


विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुंबई IIM में छात्रों को संबोधित करते हुए पड़ोसी देश श्रीलंका को दी गई आर्थिक मदद के बारे में बताया और उन्होंने छात्रों को सलाह दी था कि अगली बार अगर विदेश दौरे पर जाएं...तो श्रीलंका जरूर जाएं. 


जयशंकर ने याद दिलाया 'वो वक्त'


जयशंकर ने कहा था, 'जब पूरी दुनिया ने श्रीलंका से मुंह मोड़ लिया था. जब उन्हें मदद नहीं मिल रही थी. मैं भी कोलंबो में मौजूद था. वहां पेट्रोल की किल्लत थी, लोग धक्का देकर अपनी कार पेट्रोल पंप तक ले जा रहे थे, ताकि पेट्रोल भरवा सकें. वहां कई किलोमीटर लंबी लाइन थी. उस देश में खाने की किल्लत थी. वहां जरूरत की चीजें नहीं मिल रही थीं. जब पूरी दुनिया ने श्रीलंका से मुंह मोड़ लिया था, भारत एकमात्र देश था, जिसने श्रीलंका को छोटी नहीं 4.5 अरब डॉलर (37,342 करोड़ रुपए) की मदद दी. जयशंकर के मुताबिक श्रीलंका के लोगों में भारत के प्रति सम्मान है..क्योंकि भारत ने बिना स्वार्थ के श्रीलंका को उस वक्त मदद दी, जब दुनिया का कोई देश उसके साथ नहीं था .


मालदीव में घटी भारतीय टूरिस्ट्स की तादाद


 दिल्ली से श्रीलंका की फ्लाइट का न्यूनतम किराया 10 हजार के करीब है, और समय लगता है साढ़े 3 घंटा. वहीं दिल्ली से मालदीव जाने का किराया 12 हजार रुपए ये ज्यादा है, साथ ही समय लगता है सवा 4 घंटे.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से भारतीयों से लक्षद्वीप घूमने की अपील की है.मालदीव जाने वाले भारतीयों की संख्या घट गई. ये आंकड़ों में भी दिखने लगा है. आंकड़ों के मुताबिक, मालदीव में इस साल 28 जनवरी तक 1.74 लाख पर्यटक आए. भारतीय जो कभी मालदीव घूमने में पहले नंबर पर रहते थे, वो आंकड़ा अब घटकर 5वें नंबर पर आ गया है.


भारत से दुश्मनी के कारण ही चीन ने मालदीव को अपने जाल में फंसाया है.लेकिन भारत चीन की इन हरकतों से जरा भी नहीं घबराता. चीन की साजिशों को भारत अपने तरीके से जवाब देना अच्छी तरह जानता है. मोहम्मद मोइज्जू ने चीन का हाथ थामकर खुद अपने लिए मुश्किल राहें चुन ली हैं. अभी तो उन्हें अपनी संसद में महाभियोग का भी सामना करना पड़ सकता है. मालदीव में चीन के बढ़ते दखल से उनके सहयोगी भी उन्हें अकेला छोड़ सकते हैं.