इजरायल पर हमला कर `अकेला` पड़ा ईरान.. पड़ने लगी मुस्लिम देशों में `फूट`?
Iran Israel Tension: ईरान ने इजरायल पर 300 से ज्यादा मिसाइलों और ड्रोन्स से हमला किया है. ईरान ने इजरायल पर हमले के लिए किलर ड्रोन से लेकर बैलिस्टिक मिसाइल और क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल किया... हालांकि ईरान के मिसाइल, किलर ड्रोन इजरायल को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सके.
Iran Israel Tension: ईरान ने इजरायल पर 300 से ज्यादा मिसाइलों और ड्रोन्स से हमला किया है. ईरान ने इजरायल पर हमले के लिए किलर ड्रोन से लेकर बैलिस्टिक मिसाइल और क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल किया... हालांकि ईरान के मिसाइल, किलर ड्रोन इजरायल को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सके. क्योंकि इजरायली सेना के एयर डिफेंस सिस्टम एक्टिवेट हो गए थे जिसने ज्यादातर मिसाइलों और ड्रोन्स को हवा में ही मार गिराया.
दोनों देशों में तनाव अब चरम पर
ईरान ने इस हमले को 1 अप्रैल का बदला बताया है जब इजरायल की सेना ने सीरिया में ईरानी एंबेसी को टारगेट किया था. जिसमें 6 लोगों को मौत हो गई थी... लेकिन ईरान की इस कार्रवाई से दोनों देशों में तनाव अब चरम पर पहुंच गया है. सवाल है कि क्या अगला नंबर इजरायल का है. क्योंकि इजरायल अपने पर हुए हमले का जवाब जरूर देता है. ईरान के लिए ये ऐसा समय है जब उसे मुस्लिम देशों का समर्थन चाहिए. ताकि इजरायल की अगली कार्रवाई को रोका जा सकें. मीडिल ईस्ट में ईरान मुस्लिम देशों का ठेकेदार बनता है.
मुस्लिम देशों में फूट पड़ गई?
लेकिन इजरायल पर हमले के बाद ये मुस्लिम देश ही उसे अकेला छोड़ने लगे है. यानि मुस्लिम देशों में फूट पड़ गई है. जिससे ईरान की टेंशन जरूर बढ़ेगी. कैसे, सबसे पहले आपको यही समझाते है. जिस वक्त ईरान ने इजरायल पर हमला किया. उस वक्त जॉर्डन की वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने ईरान के दर्जनों ड्रोन को मार गिराया. इससे ये साफ है कि जॉर्डन इजरायल के साथ है. सऊदी अरब ने भी ईरान के हमले की निंदा करते हुए कहा है कि इससे संघर्ष बढ़ेगा जो दुनिया के लिए अच्छा नहीं है. इससे भी स्पष्ठ है कि ईरान की कार्रवाई से सऊदी अरब खफा है.
मीडिल ईस्ट में ईरान एक शक्तिशाली मुस्लिम देश
इसके अलावा बाकी मुस्लिम देशों ने भी ईरान के इस हमले की कार्रवाई पर चुप्पी साध रखी है. मीडिल ईस्ट में ईरान एक शक्तिशाली मुस्लिम देश है... उसके पास बड़ी सेना है, उसके बाद ड्रोन्स और बैलेस्टिम मिसाइलों का बड़ा जखीरा है और एक शक्तिशाली नौसेना भी है... लेकिन जॉर्डन और सऊदी अरब का इजरायल के साथ जाना ईरान के लिए बड़ा SET BACK जरूर है. ईरान को सबसे बड़ा दर्द तो जॉर्डन ने दिया है. जिसने ईरान के इस हमले को नाकाम करने के लिए खुलकर इजरायल का साथ दिया है... ईरानी ड्रोन्स और मिसाइलों को मार गिराने के लिए जॉर्डन की एयरफोर्स ने कार्रवाई की है... और कई ईरानी ड्रोन और मिसाइलों को हवा में ही उड़ा दिया. इजरायल ने जॉर्डन की इस मदद का आभार भी व्यक्त किया है.
ईरान के लिए अच्छा संकेत नहीं..
इस हमले के बाद मुस्लिम देशों में फूट पड़ना ईरान के लिए अच्छा संकेत नहीं है. जिससे ईरान की टेंशन जरूर बढ़ेगी. और ईरान की इस टेंशन को और बढ़ा रहा है जॉर्डन...जो बात तो अपने देश की रक्षा करने की कह रहा है, लेकिन पर्दे के पीछे से इजरायल का समर्थन कर रहा है. इजरायल और ईरान के बीच संभावित युद्ध ने एक बार फिर दुनिया को नई चिंता में डाल दिया है. लेकिन इतना तय है कि दोनों के बीच पैदा हुए इस तनाव ने फिर दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया है...
इतिहास में ऐसा कई बार हुआ..
7 अक्टूबर के हमास हमले के बाद ऐसा कहा गया था कि एक बार फिर सभी मुस्लिम देश इजरायल के खिलाफ खड़े हो जाएंगे. इतिहास में ऐसा कई बार हुआ भी है. 1948 के अरब इजरायल युद्ध के दौरान एक तरफ इजरायल था और दूसरी तरफ लगभग सभी अरब देश...जिनमें Palestine, Jordan, Syria, Lebanon, Iraq, Egypt शामिल थे. इसके बाद 1967 के सिक्स डे वॉर के दौरान भी इजरायल के खिलाफ सभी अरब देश एकजुट दिखाई दिए थे. इनमें Egypt, Syria, Jordan, Libya, Iraq और lebanon शामिल थे. हालाकि इन दोनों ही युद्ध में जीत इजरायल की ही हुई थी.
50 वर्षों में दुनिया काफी बदली..
पिछले 50 वर्षों में दुनिया काफी बदली है. जो अरब देश पहले एक मंच पर दिखते थे... वो अब अलग अलग धड़ों में बंट गए है.... अब अरब और मुस्लिम एकता सिर्फ एक स्लोगन बनकर रह गई है. इस बार के इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध में भी मुस्लिम देशों की फूट कई बार दुनिया के सामने आई. मीडिल ईस्ट के कई देश ऐसे हैं जो इजरायल के विरोधी तो है लेकिन इजरायल से भी ज्यादा दुश्मनी ईरान से है.... दरअसल मीडिल ईस्ट के मुस्लिम देशों में दो मुख्य पावर सेंटर है... एक सऊदी अरब के नेतृत्व में सुन्नी मुस्लिम देश... और दूसरी तरफ है ईरान के नेतृत्व में शिया बहुल देश.
सऊदी अरब के खेमे में UAE, Egypt, Yemen जैसे देश है... जबकि ईरान के खेमे में इराक और सीरिया हैं. हालाकि ईरान लेबनान के हिज्बुल्लाह, फिलिस्तीन के हमास और यमन के हूती विद्रोहियों को नियंत्रित करता है... जिससे ईरान का प्रभाव पूरे मीडिल ईस्ट में रहता है. इसके अलावा टर्की और कतर ऐसे देश है जो प्रभुत्व की लड़ाई में तटस्थ है. टर्की और कतर सुन्नी बहुल देश है, लेकिन सऊदी अरब के साथ नहीं जाना चाहते.... दोनों देश चाहते हैं कि सुन्नी बहुल देश उनके साथ आ जाए.
मीडिल ईस्ट की राजनीति
मीडिल ईस्ट की राजनीति में एक और बड़ा पहलू है. और वो है अमेरिका... वैसे तो सभी मुस्लिम देश एंटी अमेरिकन राजनीति की बात करते है. लेकिन अमेरिका के कई मीडिल ईस्ट देशों में सैन्य अड्डे हैं. सऊदी अरब में अमेरिका के 2700 सैनिक हैं. मीडिल ईस्ट के देश यूएई में 3,500 और कुवैत में 13,500 अमेरिकी सैनिक तैनात है. इराक में 2500 और सीरिया में 800 अमेरिकी सैनिक तैनात है. कतर में 10 हजार, जॉर्डन में 3 हजार और टर्की में करीब 1500 सैनिक तैनात है टर्की तो अमेरिकी मिलिट्री एलायंस नाटो का भी हिस्सा है.. जबकि जॉर्डन अमेरिका का एक प्रमुख नॉन नाटो मिलिट्री पार्टनर है. अमेरिका और ईरान की दुश्मनी जगजाहिर है इसलिए इजरायल और ईरान के बीच तनाव की स्थिति में इन देशों का अपना रोल होगा.
..ईरान के बढ़ते प्रभाव से भी चिंतित
मिडिल ईस्ट के कई मुस्लिम देश ईरान के बढ़ते प्रभाव से भी चिंतित है. और वो ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहते जिससे ईरान की ताकत और बढ़े. यमन में ईरान के बढ़ते प्रभाव को खत्म करने के लिए वर्ष 2015 में सऊदी अरब ने यूएई, इजिप्ट और जॉर्डन के साथ मिलकर हूती विद्रोहियों पर बड़ी कार्रवाई की थी. जबकि 2018 से 2021 तक सऊदी खेमे के देशों ने कतर पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे. इस दौरान तुर्की और ईरान ने कतर का समर्थन किया था.
मिडिल ईस्ट की राजनीति बहुत जटिल है
इस सारी बातों से जाहिर है कि मिडिल ईस्ट की राजनीति बहुत जटिल है. मुस्लिम एकता कहने में तो अच्छी लगती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. अभी भी जॉर्डन और सऊदी अरब ने इजरायल का साथ देने का फैसला भी अपने हित को देखते हुए ही लिया है. इसलिए ईरान अब अकेला पड़ता दिख रहा है. दूसरी तरफ इजरायल कह रहा है कि ये युद्ध है. जवाब जरूर देंगे.
आग में घी डालने का काम..
आमतौर पर दो देशों के बीच तभी ठनती है, जब उनके बीच सीमा विवाद हो. कई बार घुसपैठिए भी आग में घी डालने का काम करते हैं. हालाकि ईरान और इजरायल के तनाव में ये फैक्टर मिसिंग है. दोनों के बॉर्डर एक-दूसरे से नहीं मिलते. लेकिन फिर भी दोनों की दुश्मनी बहुत पुरानी है. एक समय पर इजरायल और ईरान अच्छे दोस्त थे. साल 1948 में ज्यादातर देशों ने इजरायल को मान्यता देने से इनकार कर दिया, खासकर मिडिल ईस्ट के मुस्लिम देशों ने. तब ईरान ने इजरायल को मान्यता दी थी. उस दौर में पूरे वेस्ट एशिया में ईरान यहूदियों के लिए सबसे बड़ा ठिकाना था. नया-नया यहूदी देश इजरायल ईरान को हथियार और तकनीक देता और बदले में तेल लिया करता था.
ईरान की इस्लामिक क्रांति..
दोनों के बीच रिश्ते इतने अच्छे थे कि इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान के इंटेलिजेंस एजेंसी सावाक को खुफिया कामों की ट्रेनिंग तक दी थी. लेकिन दोनों के बीच दुश्मनी की नींव ईरान की इस्लामिक क्रांति की वजह से आई. ईरान के धार्मिक नेता खुमैनी ने कहा कि यहूदी, फिलिस्तिनियों का हक मार रहे है. जिसके बाद दोनों के रिश्ते बिगड़ते चले गए. इस्लामिक क्रांति के बाद दोनों देशों के बीच यात्राएं बंद हो गई. एयर रूट पूरी तरह से रोक दिया गया.
इजरायल और ईरान के बीच डिप्लोमेटिक रिश्ते भी खत्म
इजरायल और ईरान के बीच डिप्लोमेटिक रिश्ते भी खत्म हो गए. एक जो सबसे बड़ी बात हुई वो ये कि दोनों ने ही एक दूसरे को मान्यता देने से इनकार कर दिया. ईरान ने इजरायल को पहले तो मान्यता दी थी, लेकिन खुमैनी के आने पर माना गया कि यहूदियों ने फिलिस्तीनियों का हक मारा है. वहीं इजरायल ने भी अमेरिका की देखा देखी इस्लामिक रिपब्लिक को मानने से मना कर दिया. समय के साथ दोनों देशों के रिश्ते सुधरने की बजाए और बिगड़े है... दोनों देशों के बीच प्रॉक्सी वॉर चल रहा है. लेकिन अब ये प्रॉक्सी वॉर दुनिया के लिए तीसरे विश्व युद्ध का कारण बन सकती है.