JAPAN ने भारी विरोध के बीच प्रशांत महासागर में छोड़ा रेडिएक्टिव पानी, चीन और दक्षिण कोरिया भी हैं इसके खिलाफ
Japan News: जापान के इस फैसले के विरोध में देश के अंदर भी विरोध हो रहा है. जापान के मछुआरा समुदाय ने इस योजना का यह कहते हुए विरोध किया था कि इससे ‘सीफूड’ की साख गिरेगी.
Japan Release Radioactive Water: जापान में मार्च 2011 में आए भीषण भूकंप और सुनामी से लगभग तबाह हुए फुकुशिमा दायची परमाणु संयंत्र के संचालक ने कहा कि संशोधित रेडियोएक्टिव जल की पहली खेप को प्रशांत महासागर में छोड़ने की प्रक्रिया गुरुवार से प्रारंभ कर दी गई. परमाणु संयंत्र के नियंत्रण कक्ष से एक वीडियो जारी किया गया जिसमें टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी (तेपको) के एक कर्मचारी को माउस का बटन दबा कर समुद्रीजल के पंप को चालू करते दिखाया गया.
मुख्य संचालक ने कहा,‘समुद्रीजल पंप ‘ए’ चालू हो गया’. तेपको ने बाद में पुष्टि की कि समुद्रीजल पंप को स्थानीय समयानुसार दोपहर बाद एक बजकर तीन मिनट पर चाकू किया गया.
तेपको ने कहा कि अतिरिक्त अपशिष्ट निकासी पंप को 20 मिनट के बाद प्रारंभ किया गया. संयंत्र के अधिकारियों ने बताया कि अब तक सब कुछ निर्बाध चल रहा है.
इस कदम का हो रहा भारी विरोध
शोधित जल को समुद्र में छोड़ने की योजना का देश में और अन्य देशों ने काफी विरोध किया था. जापान के मछुआरा समुदाय ने इस योजना का यह कहते हुए विरोध किया था कि इससे ‘सीफूड’ की साख गिरेगी. चीन और तथा दक्षिण कोरिया ने भी इस योजना पर शंका जताई थी और इसे राजनीतिक तथा राजनयिक मुद्दा बनाया था.
जापान सरकार का यह है तर्क
जापान की सरकार तथा तेपको का कहना है कि जल को छोड़ना इसलिए आवश्यक है ताकि स्थान को सुरक्षित बनाया जा सके और दुर्घटनावश जल का रिसाव होने की किसी भी घटना को रोका जा सके. उनका कहना है कि उपचारित करने से तथा इसे पतला करने से अपशिष्ट जल अंतरराष्ट्रीय मानकों से भी अधिक सुरक्षित हो जाएगा और पर्यावरण पर इसका प्रभाव नगण्य होगा.
एडिलेड विश्वविद्यालय में ‘सेंटर फॉर रेडिएशन रिसर्च, एजुकेशन, इनोवेशन’ के निदेशक टोनी हुकर ने कहा कि फुकुशिमा संयंत्र से छोड़ा गया पानी सुरक्षित है. उन्होंने कहा,‘ यह निश्चित रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन के पेयजल दिशानिर्देशों से काफी कम है. यह सुरक्षित है.’
(इनपुट - न्यूज एजेंसी- भाषा)