1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ तो दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान वजूद में आया. पाकिस्तान वजूद में तो आया लेकिन उनके हुक्मरानों को अहसास हुआ कि उनके साथ छल हुआ है. अगर भारत के बंटवारे को देखें तो पूरी तरह से जिम्मेदार अंग्रेज थे. यह बात अलग है कि पाकिस्तान ने मान लिया कि भारत ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन है. जलन-कुढ़न की आग में जल रहे पाकिस्तान ने भारत को अस्थिर करने की तीन बड़ी नापाक कोशिश की जिसमें उसे हार मिली. पाकिस्तान को जब यह लगने लगा कि सीधी लड़ाई में वो भारत को मात नहीं दे पाएगा तो कश्मीर के नाम पर खेला करने लगा. यह जगजाहिर है कि पाकिस्तान किस तरह से दहशतगर्दों को समर्थन देता रहा है और वो सिलसिला जारी है,. इन सबके बीच मलेशिया के पूर्व पीएम मोहाथिर मोहम्मद ने कश्मीर की तुलना फिलिस्तीन से की. सवाल बहुत ही वाजिब है कि महाथिर मोहम्मद को बोलने की जरूरत क्यों पड़ी. क्या मलेशिया को खुद के लिए किसी तरह का अवसर नजर आ रहा है.


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क्यों टांग अड़ा रहे हैं महाथिर मोहम्मद
पाकिस्तान, आज की तारीख में कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण की कोशिश में जुटा हुआ है और उसकी इस कोशिश में दुनिया के कुछ देश उसे समर्थन भी देते हैं. उनमें से एक नाम मलेशिया का है. मलेशिया के पूर्व पीएम महाथिर मोहम्मद का कहना है कि भारत, कश्मीर में इजरायल वाली चाल चल रहा है. अब यह इजरायल वाली चाल क्या है उसे समझने की जरूरत है. हालांकि इससे पहले बता दें कि महाथिर मोहम्मद वो शख्स हैं जिन्होंने भारत के भगोड़े इस्लामिक धर्मगुरु जाकिर नाईक को शरण दी थी जो जहर उगलने का काम करता है.


कश्मीर की तुलना फिलिस्तीन से 

महाथिर मोहम्मद ने एक वीडियो संदेश जारी कर कश्मीर की तुलना फिलिस्तीन से कर दी. उन्होंने कहा कि कश्मीर में भारत का व्यवहार कुछ वैसे ही जैसे इजरायल फिलिस्तीन में कर रहा है, दुनिया की क्रूर सरकारें जो अपने हक की बात करते हैं उन्हें आतंकी बताती है. बता दें कि 27 अक्टूबर को कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारतीय संघ में विलय की घोषणा की थी. उस खास दिन को पाकिस्तान काला दिवस के तौर पर मनाता है.लेकिन सवाल यह है कि महाथिर मोहम्मद का इससे क्या लेना देना. 


क्या कहते हैं जानकार


जानकार कहते हैं कि मलेशिया खासतौर से भारत विरोध के पीछे दो बड़ी वजह है. पहली वजह यह कि जाकिर नाईक प्रकरण के बाद जब भारत ने मलेशिया से पॉम ऑयल का आयात कम कर दिया तो उसका असर मलेशिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ा. भारत के इतने कठोर फैसले की उम्मीद महाथिर मोहम्मद को नहीं थी. उन्होंने भारत से अपील भी की. यह बात अलग है कि भारत ने स्पष्ट संदेश दिया था कि कुल मिलाजुल कर मामला जाकिर से जुड़ा है. मलेशिया अगर जाकिर को संरक्षण देना बंद कर देगा उसके बाद हम फैसले पर पुनर्विचार करेंगे. इसके साथ ही दूसरी बडी वजह यह है कि इस्लामिक देश यह मानकर चलते हैं कि दुनिया के बड़े भूभाग पर उनका कब्जा था. लेकिन कुछ ताकतों ने उन जमीनों को छीन लिया और जब उसके खिलाफ इस्लामी विचार से जुड़े लोग आवाज उठा रहे हैं तो उन्हें दबाने की कार्रवाई हो रही है. फिलिस्तीन और कश्मीर में क्या हो रहा है.


इस तरह के तर्क के जरिए मलेशिया और तुर्की जैसे देश अपना समर्थन देते हैं हालांकि वे इस बात को भूल जाते हैं कि इस्लाम के नाम पर किस तरह आतंकी संगठन बेगुनाहों का खून बहा रहे हैं. कश्मीर में पाकिस्तान परस्त आतंकी संगठन, अल कायदा, तालिबान जैसे संगठन क्या कर रहे हैं. यही नहीं दुनिया के अलग अलग मुल्क भी इस बात को मान रहे हैं कि इस्लाम में रेडिकल संगठनों पर लगाम बेहद जरूरी है. इन सबके बीच मलेशिया खासतौर महाथिर मोहम्मद की राजनीति पर नजर रखने वाले बताते हैं कि कभी महाथिर, पाकिस्तान और तुर्की के साथ मिलकर एक इस्लामिक संघ बनाने की कवायद में थे. लेकिन सऊदी अरब के दबाव के आगे वो नहीं बढ़ सके.