Huge Income During Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में सरकार विरोधी हिंसक प्रदर्शनों के बीच राजधानी ढाका में राष्ट्रीय ध्वज और 'हैडबैंड' बेचने वाला मोहम्मद सुमन हालिया ऐतिहासिक और असाधारण घटनाक्रम के पल-पल का गवाह रहा. हालांकि, उसकी खुद की जिंदगी बेहद साधारण है, मगर मोहम्मद सुमन का नाम सामाजिक सद्भाव की कहानी बयां करता है, जिसकी मौजूदा दौर में हिंसाग्रस्त बांग्लादेश को सबसे ज्यादा जरूरत है.


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हिंसक प्रदर्शनों के दौरान मोहम्मद सुमन की 'जबरदस्त कमाई' 


साल 1989 में ढाका में जन्मा मोहम्मद सुमन रोजी-रोटी के लिए तीन अलग-अलग साइज के बांग्लादेशी झंडे और हैडबैंड बेचता है. उसके मुताबिक, बांग्लादेश में एक महीने से अधिक समय तक हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान उसने 'जबरदस्त कमाई' की. पांच अगस्त को शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने और बांग्लादेश छोड़कर भारत चले जाने के बाद देश में सरकार विरोधी प्रदर्शन थम गए थे.


ढाका यूनिवर्सिटी का टीचर स्टूडेंट सेंटर बड़े प्रदर्शनों का गवाह 


ढाका यूनिवर्सिटी का टीचर स्टूडेंट सेंटर (टीएससी) इलाका अभी भी प्रदर्शनों का गवाह बनता है. इसी जगह पर मोहम्मद सुमन झंडे और हैडबैंड बेचता है. यहां यूनिवर्सिटी कैंपस में 'किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होने' और छात्र संघ के चुनाव जल्द से जल्द कराने की मांग को लेकर छात्र अब भी समय-समय पर प्रदर्शन करते हैं. बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज से प्रेरित हरा हैडबैंड बेचने वाला मोहम्मद सुमन कहता है कि खासकर छात्रों के बीच उसके इस उत्पाद की मांग सबसे ज्यादा है.


बांग्लादेश में विरोध-प्रदर्शनों का प्रतीक बनकर उभरा हैडबैंड 


यह हरा झंडा और हैडबैंड बांग्लादेश में अभूतपूर्व विरोध-प्रदर्शनों का प्रतीक बनकर उभरा है. काम से समय निकालकर थोड़ा आराम करते वक्त 35 साल के मोहम्मद सुमन ने अपने जीवन की कहानी साझा की. उसने बताया कि कैसे उसे 'सुमन' नाम मिला, जो आमतौर पर हिंदू समुदाय में रखा जाने वाला एक प्रचलित नाम है. सुमन ने बताया, ‘‘मेरा जन्म ढाका के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. मेरे नाम की वजह से कई लोगों को लगता है कि मेरे माता-पिता अलग-अलग धर्म के थे, लेकिन ऐसा नहीं है."


पड़ोसी अल्पसंख्यक हिंदू महिला ने नाम रखा था सुमन 


मोहम्मद सुमन ने आगे कहा, "जब मेरी मां गर्भवती थी, तब हमारे पड़ोस में रहने वाली अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की एक महिला ने उससे कहा था कि वह जन्म के बाद बच्चे का नाम रखेगी. जब मेरा जन्म हुआ, तो उसने मुझे सुमन नाम दिया.’’ पुराने ढाका के अलु बाजार इलाके में रहने वाला सुमन बताता है कि भारतीय मूल के उसके पिता 1971 के आसपास कलकत्ता (अब कोलकाता) से ढाका आ गए थे और उन्होंने यहीं पर अपना घर बसा लिया था.


2008 में कोलकाता जाकर अपने परिवार से मिला था सुमन


वर्ष 2024 की तरह ही साल 1971 भी बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) के लिए काफी उथल-पुथल भरा और ऐतिहासिक था, क्योंकि मुक्ति संग्राम के बाद वह एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया था. मुक्ति संग्राम में भारतीय सैनिकों ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति योद्धाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध लड़ा था. मोहम्मद सुमन ने कहा, ‘‘2008 में अपने परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए मैं कोलकाता गया था.। उसके बाद से मैं कभी भी भारत नहीं गया.’’ 


बड़े पैमाने पर हिंदू समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया


यह पूछे जाने पर कि क्या हिंसक विरोध-प्रदर्शन के दौरान झंडे बेचते समय उसे डर लगता था, मोहम्मद सुमन ने कहा, ‘‘डरना क्यों? आखिरकार हर किसी को एक न एक दिन मरना है.’’ सरकारी नौकरियों में विवादास्पद कोटा सिस्टम के खिलाफ जुलाई महीने में बांग्लादेश में भड़के विरोध-प्रदर्शन में 600 से अधिक लोग मारे गए थे. विरोध-प्रदर्शनों के बीच पांच अगस्त को शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बड़े पैमाने पर हिंदू समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया था.


मूल कीमत से तीन गुना से ज्यादा दाम पर बेचे थे झंडे- हैडबैंड


मोहम्मद सुमन के मुताबिक, उसने पांच अगस्त को 'रिकॉर्ड बिक्री' की थी, क्योंकि प्रदर्शनकारी हैडबैंड पहनकर और बांग्लादेश के झंडे लहराकर विरोध प्रदर्शन करना चाहते थे. सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों और वीडियो में इसकी झलक भी देखी जा सकती है. सुमन स्वीकार करता है कि उसने दोनों उत्पाद "मूल कीमत से तीन गुना" से ज्यादा दाम पर बेचे, क्योंकि उस दिन मांग बढ़ गई थी.


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पांच अगस्त को बेच डाले थे 1,500 झंडे और 500 हैडबैंड 


सुमन ने दावा किया, ‘‘पांच अगस्त को हर आकार के झंडों की मांग थी. मैं तीन आकार के झंडे बेचता हूं. उस दिन सारे झंडे बिक गए. मैं सुबह आया और बेहद कम समय में लगभग 1,500 झंडे और 500 हैडबैंड बेच डाले.’’ सुमन 2018 से रोजी-रोटी के लिए झंडे बेच रहा है. ढाका में क्रिकेट मैच के दौरान भी उसकी अच्छी बिक्री होती है. वह मुस्कराते हुए कहता है, ‘‘लेकिन पांच अगस्त को मैंने क्रिकेट मैच के दिनों की तुलना में कहीं अधिक झंडे बेचे.’’


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झंडे बनाने वाली एक फैक्टरी में काम कर चुका है सुमन


बांग्लादेश का नेशनल फ्लैग बेचने से पहले सुमन झंडे बनाने वाली एक फैक्टरी में काम करता था. हिंदी और बांग्ला भाषा जानने वाले मोहम्मद सुमन ने एक सरकारी स्कूल से कक्षा आठ तक की पढ़ाई की. उसके बाद अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए काम करने लगा. वह बताता है, ‘‘मैंने पहले बिजलीकर्मी के रूप में काम किया, लेकिन आमदनी बहुत कम थी, इसलिए झंडा बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी शुरू कर दी. बाद में इसे सड़कों पर बेचने लगा.’’


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