Genghis Khan History: विश्वविजेता बनने की होड़ में दुनिया में लाखों लोगों को मार डालने वाले मंगोलिया के क्रूर शासक चंगेज खान के बारे में तो सभी जानते हैं. वह अपने साथ तलवारबाजी और धनुर्धर विद्या में माहिर खूंखार लड़ाकों की ऐसे फौज लेकर चलता था, जो जिस देश में घुस जाती थी वहां पर मारकाट मचा देती थी. उसके खौफ की वजह से उस समय में कई देशों के राजा सत्ता छोड़कर भाग गए थे. जबकि कईयों ने उसके सामने समर्पण करके जान बख्श देने की भीख मांगी थी. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कीड़ों की पोटलियां लेकर चलता था चंगेज खान


लेकिन क्या आपको पता है कि चंगेज खान (Genghis Khan) की हैरतअंगेज जीतों में यह कारण ही काफी नहीं था. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक वह अपने साथ कीड़ों की पोटलियां लेकर चलता था, जो उसकी जीत को सुनिश्चित कर देते थे. वह किस प्रकार के कीड़े थे. युद्धों से उन कीड़ों का क्या संबंध था. चंगेज खान के लिए वे इतने प्यारे क्यों थे. उन नन्हीं कीड़ों ने आखिरकार विरोधियों को घुटने टेकने पर कैसे मजबूर कर दिया. आइए इसका रहस्य हम आपको बताते हैं. 


घावों को साफ कर देते थे कीड़े


रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर कीड़े पैदा होने से लेकर बड़े होने तक कई बार रूप बदलते हैं. पहले वे अंडे से लार्वा में बदलते हैं. इसके बाद  प्यूपल जैसे चरणों से होते हुए बड़े होते हैं. कई ऐसी प्रजातियां भी हैं, जिनमें कीट-पतंगे लार्वा होने के चरण से गुज़रने के दौरान मैगट जैसे आकार में होते हैं. इस चरण पर इनके शरीर में अंग नहीं होते हैं.


ये कीड़े खराब कोशिकाओं को ही नहीं खाते बल्कि संक्रमित कोशिकाओं को खाकर घाव भी साफ कर देते हैं. चंगेज खान (Genghis Khan) को इन कीड़ों की इस विलक्षण शक्ति के बारे में पता था. यही वजह थी कि वह कई सारी पोटली में इन कीड़ों को भरकर युद्ध अभियान पर निकलता था. जंग के दौरान जब उसके सैनिक घायल हो जाते थे तो उसके सेनापति उन कीड़ों को पोटली से निकालकर छोड़ दिया करते थे. वे कीड़े घायल सैनिकों के घावों पर बैठकर उन्हें ठीक कर दिया करते थे. 


कई देशों में इस्तेमाल होती थी तकनीक


केवल चंगेज खान (Genghis Khan) की सेना ही नहीं बल्कि उत्तरी म्यांमार के पर्वतीय इलाकों में रहने वाले लोग, दक्षिण अमेरिका की माया सभ्यता के लोग, आस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स मे प्राचीन गियाम्पा आदिवासी समुदाय भी इन कीड़ों का इस्तेमाल इलाज के लिए करते थे. यह एक कमाल की देसी तकनीक थी, जिसमें बिना दवाई और डॉक्टरी सहायता के घायलों का इलाज कर दिया जाता था.


मेडिकल की मुख्य धारा का नहीं बन सकी हिस्सा


अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान एक अस्पताल में काम करने वाले सर्जन जॉन फोर्नी जकारियास ने इस तकनीक को आगे बढ़ाने पर काम करना शुरू किया. लेकिन यह तकनीक मेडिकल की मुख्य धारा का हिस्सा नहीं बन सकी. हालांकि आज भी दुनिया के अनेक आदिवासी इलाकों में इसी तकनीक से लोगों का इलाज चल रहा है, जिसे एक चमत्कार ही कहा जाएगा. 


(पाठकों की पहली पसंद Zeenews.com/Hindi - अब किसी और की ज़रूरत नहीं)