Myanmar Women Dress Sarong: हाल ही में म्‍यांमार में डॉक्‍टर-नर्स जैसे प्रोफेशन वाली महिलाओं द्वारा मजबूरन वेश्‍यावृत्ति करने की खबर सामने आई थी. देश के बिगड़े हालातों के चलते शिक्षित महिलाओं को ऐसे घिनौने काम करने पड़ रहे हैं. हालांकि म्‍यांमार में वेश्‍यावृत्ति गैर कानूनी है लेकिन डेट गर्ल्‍स की कमाई, टीचर, डॉक्‍टर, नर्स की सैलरी से कहीं ज्‍यादा है. ऐसा नहीं है कि म्‍यांमार की महिलाओं ने अपने हक के खिलाफ आवाज नहीं उठाई या अत्‍याचारों का विरोध नहीं किया. आज हम म्‍यांमार की महिलाओं द्वारा की गई एक अनूठी सारोंग क्रांति के बारे में जानते हैं, जो उन्‍हें सैन्‍य शासन के खिलाफ की थी.


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पारंपरिक कपड़े सारोंग के जरिए क्रांति


म्यांमार में महिलाओं ने सैन्य शासन के ख़िलाफ अपने कपड़ों से संबंधित एक स्थानीय 'अंधविश्वास' का उपयोग करके ये 'सारोंग क्रांति की थी. दरअसल, म्यांमार में यह प्रचलित मान्‍यता है कि यदि कोई पुरुष किसी महिला के 'सारोंग' के नीचे से गुजर जाता है, तो वो अपनी मर्दाना ताकत खो देता है. सारोंग को एक अशद्ध कपड़ा माना जाता है कि इसके नीचे से किसी पुरुष को नहीं निकलना चाहिए, नहीं सारोंग को पुरुष के ऊपर रखना चाहिए. सारोंग म्‍यांमार की महिलाओं द्वारा कमर में पहना जाने वाला एक स्‍कर्टनुमा कपड़ा होता है.


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सड़कों पर लटका दिए थे हजारों सारोंग


साल 2021 में तख्‍तापलट के समय पुलिसकर्मियों और सेना के जवानों को रिहायशी इलाको में घुसने और गिरफ्तारियां करने से रोकने के लिए, म्यांमार के कई शहरों में महिलाओं ने अपने सैंकड़ों-हजारों सारोंग सड़कों पर लटका दिये थे. पुलिस और सैन्‍य कर्मियों में भी यह अंधविश्‍वास बहुत गहरा पैठ किया हुआ था. इसी के चलते विभिन्‍न शहरों के कई इलाकों में पुलिसकर्मियों ने गलियों में घुसने से पहले सारोंग कपड़ों को उतारा और फिर अंदर दाखिल हुए. इसके वीडियो और फोटो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए थे.


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सैन्‍य शासन खत्‍म करने की कर रहे थे मांग


म्‍यांमार में इस दौरान जमकर प्रदर्शन हुआ. इन प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि म्यांमार में सैन्य शासन को समाप्त किया जाए और  देश की चुनी हुई सरकार के नेताओं को रिहा किया जाए. इसमें लोकप्रिय नेता आंग सान सू ची भी शामिल रहीं.


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किसी ने सिर पर लपेटा तो किसी ने कंधे पर डाला


सारोंग क्रांति को लेकर म्‍यांमार में आलम यह था कि हर जगह सारोंग नजर आ रहे थे. कुछ पुरुष प्रदर्शनकारी अपने सिर पर सारोंग बांधकर निकल रहे थे तो लड़कियां अपने कंधे पर सारोंग ओढ़कर निकल रही थीं.
 
हालांकि सारोंग को लेकर ये मान्‍यता प्रतीकात्‍मक रूप में है. इस अंधविश्वास का मूल यह है कि सारोंग को महिलाएं अपने शरीर का निचला हिस्‍सा ढंकने के लिए पहनती हैं. बर्मा की लेखिका मिमि आय ने एक इंटरव्‍यू में बीबीसी से कहा कि महिला को एक यौन-प्राणी या एक प्रलोभन के रूप में देखा जाता है, जो किसी कमजोर पुरुष को बर्बाद कर सकती हैं. इसलिए लोगों की ऐसी मान्‍यता है कि यदि वह सारोंग के नीचे से निकला या उस पर सारोंग रख दिया गया तो उसकी मर्दाना ताकत कम हो जाएगी.


हालांकि पारंपरिक रूप से सारोंग का उपयोग 'सौभाग्य के प्रतीक' के रूप में भी किया जाता रहा है. एक समय, युद्ध में जा रहे पुरुष अपनी मां के सारोंग का एक छोटा टुकड़ा अपने साथ लेकर जाया करते थे. सारोंग क्रांति जब हुई तो इसके लिए सोशल मीडिया पर लिखा गया कियह महिलाओं को सशक्त करने और विरोध करने जा रहीं बहादुर महिलाओं के साथ एकजुटता दिखाने का एक तरीका है. यहां तक कि यह नारा भी दिया गया, "हमारा सारोंग, हमारा बैनर, हमारी विजय."