Modi-Putin Meet: जब पीएम मोदी और पुतिन डिनर की टेबल पर होंगे साथ, `चीनी चश्मे` पर होगी सबकी नजर!
Narendra Modi Russia Visit: पीएम मोदी की पांच साल बाद ये पहली रूस यात्रा है. यूक्रेन में संघर्ष के बीच भी यह उनकी पहली रूसी यात्रा है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 2021 में दिल्ली आए थे.
India-Russia Relations: आज रात जब मॉस्को में पीएम मोदी और पुतिन डिनर टेबल पर बैठेंगे तो अन्य सभी बातों के अलावा चीनी एंगल पर भी जरूर चर्चा होगी. चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के कारण भारत की सरहद के निकट अपनी महत्वाकांक्षा को अंजाम देने का मंसूबा रखता है जो भारत के लिए चिंता का सबब है. भारत किसी भी प्रकार से चीन के प्रभाव का अपने ऊपर कोई असर नहीं चाहता. इस काम में कहीं न कहीं रूस की भूमिका मददगार हो सकती है क्योंकि चीन भी रूस का बेहद करीबी मित्र है. उसकी करीबी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दो महीने में पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की दो बार मुलाकात हो चुकी है. उनका द्विपक्षीय व्यापार 240 अरब डॉलर से ऊपर जा चुका है. कहने का मतलब है कि इस वक्त रूस-चीन संबंध अपने 'स्वर्ण काल' में हैं.
वहीं भारत और रूस रक्षा, सामरिक और रणनीतिक क्षेत्रों में ऐतिहासिक रूप से पार्टनर रहे हैं. जियोपॉलिटिकल लिहाज से भी देखें तो दुनिया का वर्ल्ड ऑर्डर हालिया वर्षों में चेंज हुआ है. रूस इस वक्त यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा हुआ है. इजरायल और हमास के बीच गाजा संघर्ष चल रहा है. इन सभी मुद्दों पर दुनिया बंटी हुई है. भारत एकमात्र ऐसा बड़ा देश है जिसकी यूक्रेन, रूस, इजरायल, अमेरिका सभी से दोस्ती है और सबसे बड़ी बात ये कि ये मित्रता किसी अन्य की कीमत पर नहीं है. ये संबंध और प्रतिष्ठा भारत ने वक्त की कसौटी पर अपने पुरुषार्थ और परिश्रम से हासिल की है. इसलिए इन सभी देशों से भारत के करीबी द्विपक्षीय संबंध हैं.
कूटनीति हमेशा 'लेन-देन' की रणनीति पर चलती है. चीनी एंगल को देखते हुए जहां भारत के लिए रूस मददगार हो सकता है वहीं यूक्रेन से चल रहे युद्ध में उसको भारत की जरूरत है. रूस ये अच्छी तरह जानता है कि चीन का व्यापारिक लिहाज से धुर प्रतिद्वंद्वी अमेरिका है. इसलिए अमेरिका को एशिया में भारत की जरूरत है. चीन के साथ सामरिक स्थिति को देखते हुए भारत भी अमेरिका का बड़ा रणनीतिक साझेदार है. यूक्रेन युद्ध को रूस अपनी शर्तों और तरीके से खत्म करने के इच्छुक हैं. लेकिन पुतिन अब नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव तक का इंतजार करेंगे. यदि डोनाल्ड ट्रंप लौटते हैं तो रूस के लिए ज्यादा मुफीद रहेगा. उसके बाद सीजफायर टेबल पर अमेरिका जैसे देशों के साथ जब पुतिन की डील होगी तो उस वक्त भारत जैसे दोस्त मुल्क से उनको उम्मीद होगी. क्योंकि उस सूरतेहाल में भारत ही एकमात्र ऐसा गैर पश्चिमी लोकतांत्रिक देश होगा जो सीधेतौर पर न सही लेकिन परोक्ष रूप से रूस के लिए सकारात्मक भूमिका निभा सकता है.
नरेंद्र मोदी और व्लादिमीर पुतिन की दोस्ती
करीब एक दशक पहले जब दोनों नेताओं की पहली बार मुलाकात हुई उसके बाद से दोनों की पर्सनल कैमिस्ट्री जबर्दस्त रही है. करीब पांच साल बाद पीएम मोदी की यह पहली रूस यात्रा है. इससे पहले उन्होंने 2019 में व्लादिवोस्तोक में एक आर्थिक सम्मेलन में हिस्सा लिया था. यूक्रेन में संघर्ष के बाद भी यह उनकी पहली रूस यात्रा होगी. अब तक भारत और रूस में बारी-बारी से 21 वार्षिक शिखर सम्मेलन हो चुके हैं. पिछला शिखर सम्मेलन 6 दिसंबर, 2021 को नई दिल्ली में हुआ था. इस शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पुतिन भारत आए थे.
22वां भारत-रूस शिखर सम्मेलन तीन वर्षों के बाद हो रहा है. इसमें रक्षा, निवेश, ऊर्जा सहयोग, शिक्षा, संस्कृति और लोगों के बीच आदान-प्रदान जैसे क्षेत्रों सहित द्विपक्षीय संबंधों के संपूर्ण दायरे की समीक्षा होगी. विदेश सचिव विनय क्वात्रा के मुताबिक दोनों नेता 'आपसी हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक घटनाक्रम' पर भी अपने विचार साझा करेंगे. उन्होंने कहा, 'रूसी सेना में काम करने के लिये गुमराह किए गए भारतीय नागरिकों की शीघ्र वापसी का मुद्दा भी चर्चा में उठने की उम्मीद है.'
'पश्चिम को हो रही ईर्ष्या'
रूस के राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास एवं कार्यालय 'क्रेमलिन' के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मॉस्को यात्रा को लेकर दावा किया कि पश्चिमी देश इस यात्रा को 'ईर्ष्या' से देख रहे हैं. मोदी की रूस यात्रा के प्रति पश्चिमी देशों के राजनेताओं के रवैये के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में पेस्कोव ने कहा, 'वे ईर्ष्यालु हैं. इसका मतलब है कि वे इस पर करीब से नजर रख रहे हैं. उनकी करीबी निगरानी का मतलब है कि वे इसे बहुत महत्व देते हैं.'