Nepal China Relations: चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) दूसरे देशों की तरक्की नहीं, आर्थिक बर्बादी का रास्ता है! पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव... उन देशों की संख्या बढ़ती जा रही है जो चीन के चंगुल में फंस चुके हैं. इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर बढ़ाने का लालच देकर चीन ने कई देशों को कर्ज के जाल में फांसा है. नेपाल पर भी चीन लंबे समय से डोरे डाल रहा है मगर बात बन नहीं सकी. नेपाल ने शायद ड्रैगन के इरादे भांप लिए हैं. पोखरा में बने इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए पैसा चीन से आया. अब चीन दावा करने लगा है कि एयरपोर्ट उसके BRI का हिस्सा है. काठमांडू ने इस पर आपत्ति जताई. पिछले हफ्ते, पोखरा में चीन के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. नेपाल में सिविल सोसायटी ने चीन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. राष्ट्रीय एकता अभियान ने पोखरा में पिछले हफ्ते रैली कर BRI से खतरों के लिए प्रति आगाह किया. समूह ने कहा कि चीन के इरादे नापाक मालूम होते हैं. उसने पोखरा में चीनी सेना की तैनाती का खतरा जताया. कहा कि एयरपोर्ट में आर्थिक घाटे को बहाना बनाकर चीन मिलिट्री की तैनाती को जायज ठहरा सकता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पोखरा एयरपोर्ट आधिकारिक रूप से BRI का हिस्‍सा नहीं था. अधिकतर पैसा चीनी बैंकों ने दिया और एक चीनी फर्म ने कंस्‍ट्रक्‍शन किया. अब बीजिंग जोर दे रहा है कि यह प्रोजेक्‍ट BRI का हिस्‍सा है, लेकिन काठमांडू को आपत्ति है.



चीन ने अनसुनी कर दी नेपाल की पुकार


2016 में, चीन और नेपाल ने 216 मिलियन डॉलर की लागत वाले पोखरा एयरपोर्ट के लिए 20 साल के समझौते को मंजूरी थी. जिसमें एक चौथाई धनराशि ब्याज मुक्त कर्ज के रूप में दी गई थी. नेपाल ने बाकी रकम चीन के निर्यात-आयात बैंक से 2 प्रतिशत ब्याज दर पर उधार लेने का इरादा किया है, जिसका पुनर्भुगतान 2026 में शुरू होने वाला है. पिछले साल रिपोर्ट आई कि नेपाली अधिकारियों ने कथित तौर पर अनुरोध किया है कि हवाई अड्डे की वित्तीय चुनौतियों के कारण चीन कर्ज को अनुदान में बदल दे.


सितंबर 2023 में नेपाली पीएम पुष्प कमल दहल की बीजिंग यात्रा के दौरान इस मामले पर चर्चा हुई थी. चीन और नेपाल के साझा बयान में पोखरा हवाई अड्डे के पूरा होने की बात तो थी मगर कर्ज माफ करने की योजना का कोई जिक्र नहीं किया गया.


नेपाल में अब तक नहीं गली BRI की दाल


चीन ने नेपाल को बार-बार BRI में शामिल होने के लिए लुभाया है. दोनों देशों के बीच 2017 में इसे लेकर एमओयू साइन हुआ था. हालांकि, सात साल गुजर जाने के बावजूद BRI के तहत एक भी प्रोजेक्ट पर बात नहीं बन सकी है. नेपाल की सरकार श्रीलंका या पाकिस्तान जैसी गलती नहीं दोहराना चाहती. वह चीन से मदद लेने को तो तैयार है मगर कर्ज लेने पर राजी नहीं. चीन कर्ज पर खूब ब्याज वसूलता है और अपने कर्जदार की माली हालत पतली कर देता है. यह बात नेपाल को अब अच्छे से समझ आ चुकी है कि बीजिंग उसे अपना आर्थिक गुलाम बनाना चाहता है.