China News: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अफ्रीका के लिए 51 अरब डॉलर की मदद का वादा किया है. यह मदद कर्ज से जूझ रहे अफ्रीका में अधिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए होगी. साथ ही 1 मिलियन नई नौकरियां पैदा करने का भी लक्ष्य है. यह घोषणाएं बीजिंग में चीन-अफ्रीका सहयोग फोरम (FOCAC) के सम्मेलन के दौरान की गईं. लेकिन ऐसे किसी भी पैक्ट में चीन की मंशा पर हमेशा सवाल उठा है.


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चीन का अफ्रीका से वादा


शी जिनपिंग ने कहा कि चीन अफ्रीका के साथ कृषि, उद्योग, व्यापार, निवेश, और आधारभूत संरचना में सहयोग को गहरा करना चाहता है. चीनी सरकार ने 360 बिलियन युआन की आर्थिक सहायता की प्रतिबद्धता जताई. जिसमें 210 बिलियन युआन कर्ज के रूप में और 70 बिलियन युआन नए निवेश के रूप में दिया जाएगा.


क्या कहते हैं एक्सपर्ट..


हालांकि, कई एक्सपर्ट इसे चीन की "कर्ज जाल कूटनीति" के रूप में देख रहे हैं. जहां अफ्रीकी देशों को चीन के कर्ज के जाल में फंसा दिया जाता है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी कि अफ्रीकी देशों को कर्ज राहत और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जो सामाजिक अशांति का कारण बन सकता है.


चीन की कर्ज जाल कूटनीति की चर्चा


बता दें कि चीन की कर्ज जाल कूटनीति हाल के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अक्सर सुनाई देती रही है. यह एक ऐसी रणनीति है जिसमें चीन विकासशील देशों को बड़े पैमाने पर ऋण प्रदान करता है, जिसके परिणामस्वरूप ये देश चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर हो जाते हैं. यह आर्थिक निर्भरता चीन को इन देशों पर राजनीतिक प्रभाव डालने का मौका देती है.


कर्ज जाल कूटनीति कैसे काम करती है?


बड़े पैमाने पर कर्ज: चीन विकासशील देशों को बुनियादी ढांचे के विकास, ऊर्जा परियोजनाओं आदि के लिए बड़े पैमाने पर कर्ज देता है.


अनुचित शर्तें: इन कर्ज की शर्तें अक्सर अनुचित होती हैं, जिनमें उच्च ब्याज दरें और परियोजनाओं को चीन की कंपनियों को ही सौंपना शामिल होता है.


कर्ज का बोझ: कर्ज का बोझ इतना अधिक होता है कि विकासशील देशों के लिए इसे चुकाना मुश्किल हो जाता है.


राजनीतिक दबाव: जब देश कर्ज चुकाने में असमर्थ होते हैं, तो चीन उन पर राजनीतिक दबाव डाल सकता है. जैसे कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन या चीन के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मतदान करने से बचना.


कर्ज जाल कूटनीति के बुरे परिणाम


आर्थिक निर्भरता: विकासशील देश चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर हो जाते हैं.


राजनीतिक प्रभाव: चीन इन देशों की नीतियों पर प्रभाव डाल सकता है.


भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: यह पश्चिमी देशों और चीन के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा देता है.


विकासशील देशों के लिए जोखिम: यह विकासशील देशों के लिए एक दीर्घकालिक जोखिम है क्योंकि वे कर्ज के बोझ तले दब सकते हैं.


चीन के कर्ज जाल में बुरे फंसे ये देश


श्रीलंका, पाकिस्तान और कुछ अफ्रीकी देशों को चीन के कर्ज जाल का सामना करना पड़ा है. इन देशों ने चीन से बड़े पैमाने पर कर्ज लिया था. लेकिन कर्ज चुकाने में असमर्थ होने के कारण उन्हें चीन के सामने आर्थिक और राजनीतिक रूप से झुकना पड़ा. भारत ने चीन की कर्ज जाल कूटनीति को हमेशा से एक गंभीर खतरा माना है. भारत ने अपनी "सबका साथ, सबका विकास" की नीति के तहत विकासशील देशों को सहायता प्रदान की है, लेकिन बिना किसी राजनीतिक दबाव के. भारत ने "बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड" जैसी पहलों के माध्यम से चीन के बीआरआई का विकल्प भी पेश किया है.