आज ही के दिन पड़ी थी सबसे बड़ी विनाशलीला की नींव, इस एक व्यक्ति की वजह से मारे गए करोड़ों लोग
30 जनवरी 1933 में हुई इस गलती की वजह से अगले 12 सालों में करोड़ों लोग मौत के मुंह में चले गए. बहुत सारे देशों का मानचित्र बदल चुका था और दुनिया के बहुत सारे देश अपने हाकिमों से आजादी की मांग तेज कर चुके थे.
30 January in History
नई दिल्ली/बर्लिन: आज का दिन इतिहास के पन्नों में खास है. आज ही के दिन साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी, तो आज ही के दिन 1933 में दुनिया की सबसे बड़ी विनाशलीला की नींव बर्लिन में पड़ी थी. क्योंकि 30 जनवरी 1933 के दिन ही हिटलर को जर्मनी की बागडोर सौंप दी गई थी और वो जर्मनी का चांसलर बना था.
आज ही के दिन जर्मनी का चांसलर बना था हिटलर
जर्मनी में हिटलर की पार्टी चुनाव हार गई थी. लेकिन अप्रत्याशित घटनाक्रमों और चौरतफा दबाव के बीच जर्मनी के राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग ने एडोल्फ हिटलर को जर्मनी का चांसलर बना दिया था. इसी दिन जर्मनी में नाजी पार्टी की कैबिनेट ने शपथ ग्रहण कर देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी. हालांकि इस घटना से सिर्फ 9 महीने तक ही हिटलर हिंडेनबर्ग का सबसे बड़ा विरोधी था.
और फिर मार्च 1933 से मचना शुरू हुआ असली कोहराम
रीचस्टैग जर्मन सरकार का मुख्यालय था और एक तरह से संसद भी. मार्च 1933 में रीचस्टैग फायर कांड के बाद हिटलर ने इसके लिए डच मूल के कम्युनिष्ट नेता मारिनस वैन डेर लुब्बे को जिम्मेदार ठहराया और अपने विरोधियों का दमन शुरू कर दिया. 24 मार्च को हिटलर की पार्टी इमरजेंसी बिल लेकर आई, जिसमें हिटलर को बेशुमार शक्तियां दे दी गई. हालांकि ये टेंपररी बिल था, लेकिन 14 जुलाई 1933 तक हिटलर जर्मनी का सर्वोच्च नेता बन गया. हालांकि राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग की मौत अगस्त 1933 में हुई, जिसके बाद हिटलर को चुनौती देने वाला कोई बचा नहीं.
जून 1934 में दिया मशहूर बयान
एडोल्फ हिटलर ने जून 1934 में एक ब्रिटिश पत्रकार से बातचीत में सबसे बड़ा बयान दिया. जिसमें उसने कहा कि आने वाले 1000 सालों तक जर्मनी में नेशनल सोशलिस्ट मूवमेंट चलता रहेगा. उसने कहा कि 15 साल पहले तक लोग मुझपर हंसते थे, लेकिन अब पूरी जर्मनी मेरे कब्जे में है. लोग आज भी हंसते हैं, लेकिन अपनी मूर्खता की वजह से. मेरे पास असली पॉवर है. अगले 5 सालों में वो जर्मनी ही क्या, यूरोप के साथ पूरी दुनिया का मानचित्र बदलने वाला था, ऐसी किसी ने भी कल्पना नहीं की थी.
साल 1938 में जापान के साथ संधि और महाविनाश की पड़ी नींव
फरवरी 1938 में जर्मनी ने चीन के साथ अपनी संधि तोड़ दी और जापान के मंचूरियाई कब्जे को मान्यता दे दी. इस तरह से जर्मनी ने जापानी साम्राज्यवाद के साथ हाथ मिला. और अगले महीने ही उसने ऑस्ट्रिया और चेकोस्लोवाकिया पर नजरें गड़ा दी. साल 1939 के मार्च महीने में स्लोवाकिया ने हंगरी से आजादी की घोषणा कर दी और जर्मनी ने उसकी सहायता की. इस दौरान ब्रिटेन समेत पश्चिमी शक्तियों ने उदासीनता दिखाई, जो उन्हें ही नहीं पूरी दुनिया के लिए बहुत भारी पड़ा
साल 1939 से शुरू हुआ महाविनाश
हिटलर के आदेश पर जर्मनी की सेना ने 1 सितंबर को पोलैंड पर हमला बोल दिया. इसे द्वितीय विश्वयुद्ध की आधिकारित शुरुआत का दिन माना जाता है. उसने अपनी कूटनीति के दम पर फ्रांस और ब्रिटेन को युद्ध से दूर रखा. हालांकि 2 दिनों बाद ही फ्रांस और ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी और पूर्वी दिशा से 17 सितंबर को सोवियत सैनिकों ने पोलैंड में कदम रखा. पोलैंड को लहूलुहान किया जाता रहा और यहूदियों को सबक सिखाया जाता रहा. लेकिन जब 9 अप्रैल 1940 को जर्मन सेनाओं ने नॉर्वे और डेनमार्क पर हमला बोला, तब कहीं जाकर ब्रिटेन की आंख खुली.
30 अप्रैल 1945 तक जिंदा रहा महादानव
हिटलर की साम्राज्यवादी सनक ने पूरे यूरोप को मारकाट के मैदान में तो बदला ही था. ये लड़ाईयां दुनिया के दूसरे महाद्वीपों पर भी लड़ी जा रही थी. एशिया में जापान कहर ढा रहा था, तो अमेरिका यूरोप से लेकर एशिया तक उलझा हुआ था. द्वितीय विश्वयुद्ध में निर्णायक मोड़ 30 अप्रैल 1945 को आया, जब एडोल्फ हिटलर (Adolf Hitler) ने बर्लिन में चारों तरफ से घिरने के बाद जान दे दी और कुछ समय बाद हिरोशिमा-नागाशाकी पर परमाणु हमले के बाद जापान ने घुटने टेक दिए. लेकिन तबतक करोड़ों लोग मौत के मुंह में जा चुके थे. बहुत सारे देशों का मानचित्र बदल चुका था और दुनिया के बहुत सारे देश अपने हाकिमों से आजादी की मांग तेज कर चुके थे. इस महायुद्ध में करीब 9 करोड़ लोग मारे जा चुके थे. हिटलर, मुसोलिनी दुनिया से जा चुके थे और जापानी प्रधानमंत्री तोजो को साल 1948 में फांसी दे दी गई.