United Nations Security Council: दूसरे विश्व युद्ध के बाद वैश्विक स्तर पर शांति बनाए रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच की जरूरत महसूस की गई. दुनिया के देश एक जगह इकट्ठा हुए सहमति बनी और संयुक्त राष्ट्र संघ अस्तित्व में आया. इसमें आम सभा और सेक्यूरिटी काउंसिल समेत कई विंग भी बने. लेकिन सेक्यूरिटी काउंसिल को कुछ विशेष अधिकार मिले. सेक्यूरिटी काउंसिल में पांच स्थाई सदस्य है जिन्हें वीटो का अधिकार है. पिछले 78 साल में यूएन की कार्यप्रणाली को लेकर कई तरह के सवाल उठे कि यह महज मुखौटा बन कर रह गया है. यूएनएससी में शांति विषय पर भारत की राजनयिक रुचिरा कंबोज ने खरी खोटी सुनाई.


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यूएनएससी में भारत की खरी खरी

रुचिरा कंबोज ने कहा कि क्या यूएनएसी 2023, 1945 का ही नया अवतार है, क्या 1945 में जो सेक्यूरिटी कंसर्न थे और उससे निपटने के लिए जो व्यवस्था बनी वो आज काम करेंगे. निश्चित तौर पर कल का यूएनएससी आज के लिहाज से बहुत देर है यानी वो कह रही थीं कि पिछले 78 वर्षों में वैश्विक स्तर पर बहुत बदलाव हुए हैं. लेकिन सुरक्षा परिषद प्रभावी तौर पर कार्रवाई करने में विफल है. विशेषअधिकार रखने वाले कुछ देश सलेक्टिव तरीके से फैसले करते हैं.  कहने में कोई हर्ज नहीं कि सेक्यूरिटी काउंसिल ने प्रासंगिकता खो दी है.आज दुनिया के सामने ट्रिलियन डॉलर यानी अहम सवाल यही है कि शांति कैसे स्थापित हो. क्या वर्तमान में हमारे पास ऐसी कोई व्यवस्था है जो शांति को स्थापित करने में मदद कर सके. हमें यह देखना ही नहीं समझने के साथ यह देखना होगा कि हम कहां नाकाम हो रहे हैं. क्या आज का मौजूदा सेक्यूरिटी काउंसिल जरूरतों को पूरा करने में समर्थ है. क्या सेक्यूरिटी काउंसिल पर कुछ मुल्क अपने हिसाब से दबाव तो नहीं बनाते हैं.


समस्या एक लेकिन नजरिया अलग अलग


अब जब रुचिरा कंबोज ने इतने सख्त लहजे में अपनी बात कहीं तो उसके पीछे आधार क्या है. दरअसल जब वो इस तरह से अपनी बातों को रख रही थीं तो भारत के कंसर्न को सामने रख रही थीं. हम सब जानते हैं कि आतंकवाद, इस समय दुनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. इसके खिलाफ जब लड़ाई की बात सामने आती है को सेक्यूरिटी काउंसिल में दोहरा रुख नजर आने लगता है. खासतौर से चीन यह मानता तो है कि इस समय आतंकवाद वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए चुनौती बना हुआ है. लेकिन बात जब हाफिज सईद, मसूद अजहर की आती है तो चीन वीटो लगाने से परहेज नहीं करता. चीन उन सभी साक्ष्यों और घटनाओं को नकार देता है जिसकी वजह से भारत को नुकसान उठाना पड़ा है. इजरायल हमास युद्ध के बीच यूएन की भूमिका की आलोचना हो रही है. एक सामान्य सी धारणा बन चुकी है कि अगर शांति स्थापित करना या कराना यूएन की जिम्मेदारी है तो इजरायल हमास जंग को रोकने में क्या परेशानी है.