Saturn Megastorm: शनि ग्रह (Saturn) को लेकर चौंका देने वाला अध्ययन सामने आया है. एक्सपर्ट्स ने शनि ग्रह पर लंबे समय तक चलने वाले मेगास्टॉर्म की खोज की है. रेडियो एमिशन और अमोनिया गैस डिरप्शन यानी व्यवधानों की स्टडी के माध्यम से एक्सपर्ट्स ने शनि ग्रह पर आने वाले महातूफान का खुलासा किया है. यह ग्रहों को लेकर भविष्य के अध्ययन को प्रभावित कर सकता है. एक्सपर्ट्स ने कहा कि मेगास्टॉर्म सदियों तक शनि ग्रह के वायुमंडल पर निशान छोड़ते हैं.


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सौर मंडल का सबसे बड़ा 10,000 मील चौड़ा एंटीसाइक्लोन जिसे ग्रेट रेड स्पॉट के नाम से जाना जाता है, सैकड़ों वर्षों से बृहस्पति की सतह पर छाया हुआ है. अब इस स्टडी में पता चला है कि शनि ग्रह पर लंबे समय तक चलने वाले मेगास्टॉर्म भी हैं. इन तूफानों का वातावरण में गहरा असर होता है जो सदियों तक बना रहता है.


अध्‍ययन के मुख्य लेखक और मिशिगन-एन आर्बर विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर चेंग ली ने कहा, सौर मंडल में सबसे बड़े तूफानों के तंत्र को समझना तूफान के सिद्धांत को एक व्यापक ब्रह्मांडीय संदर्भ में रखता है, जो हमारे वर्तमान ज्ञान को चुनौती देता है और स्थलीय मौसम विज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ाता है.


नए अध्ययन के लिए, खगोलविदों ने शनि से आने वाले रेडियो उत्सर्जन को देखा, जो सतह के नीचे से आता है, और अमोनिया गैस के वितरण में दीर्घकालिक व्यवधान पाया. उन्हें ग्रह से रेडियो उत्सर्जन में कुछ आश्चर्यजनक मिला. वायुमंडल में अमोनिया गैस की सांद्रता में विसंगतियाँ, जिसे उन्होंने ग्रह के उत्तरी गोलार्ध में महातूफान की पिछली घटनाओं से जोड़ा था.


टीम के अनुसार, मध्य ऊंचाई पर अमोनिया की सघनता सबसे ऊपरी अमोनिया-बर्फ बादल परत के ठीक नीचे कम है, लेकिन कम ऊंचाई पर, वायुमंडल में 100 से 200 किलोमीटर की गहराई में समृद्ध हो गई है. उनका मानना है कि अमोनिया को वर्षा और पुनर्वाष्पीकरण की प्रक्रियाओं के माध्यम से ऊपरी से निचले वायुमंडल में ले जाया जा रहा है. इसका प्रभाव सैकड़ों वर्षों तक रह सकता है.


साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि हालांकि शनि और बृहस्पति दोनों हाइड्रोजन गैस से बने हैं, लेकिन दोनों ग्रहों में काफी भिन्‍नता है. बृहस्पति में क्षोभमंडल संबंधी विसंगतियाँ हैं, जो इसके क्षेत्रों (सफ़ेद बैंड) और बेल्ट (गहरे बैंड) से बंधी हुई हैं और शनि की तरह तूफानों के कारण नहीं होती हैं.


इन पड़ोसी ग्रहों के बीच काफी अंतर यह चुनौती दे रहा है कि वैज्ञानिक इन तथा अन्य ग्रहों पर महातूफान के बनने के बारे में क्या जानते हैं और यह बता सकते हैं कि वे भविष्य में एक्सोप्लैनेट पर कैसे पाए जाते हैं और उनका अध्ययन किया जाता है. 11 अगस्त को साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी के मुताबिक शनि पर लगभग हर 20 से 30 साल में मेगास्टॉर्म आते हैं और ये पृथ्वी पर आने वाले तूफान के समान होते हैं, हालांकि काफी बड़े होते हैं. लेकिन पृथ्वी के तूफानों के विपरीत, कोई नहीं जानता कि शनि के वायुमंडल में मेगास्टॉर्म का कारण क्या है, जो मुख्य रूप से मीथेन, पानी और अमोनिया के निशान के साथ हाइड्रोजन और हीलियम से बना है.


(एजेंसी इनपुट के साथ)