न्यूयॉर्क: अफगानिस्तान (Afghanistan) की सत्ता पर काबिज तालिबान (Taliban), संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) को संबोधित करना चाहता है. इस विषय में तालिबान सरकार में विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने UN महासचिव एंटोनियो गुटरेस (Antonio Guterres) को पत्र लिखा है. जिसमें गुजारिश की गई है कि प्रवक्ता सुहैल शाहीन (Suhail Shaheen) को संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान का नया राजदूत (Afghan UN Envoy) बनाया जाए ताकि वो UNGA के 76वें सेशन में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व कर सके.


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संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया कि तालिबान को UN में अफगानिस्तान का प्रतिनिधि बनने का मौका शायद ही मिले. दरअसल एंटोनियो गुटरेस को मिला मुत्ताकी का पत्र 20 सितंबर को लिखा गया है. जबकि महासभा का उच्च स्तरीय सत्र 21 सितंबर से शुरू हो गया है, जो कि 27 सितंबर तक चलेगा.


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तालिबान सरकार के कथित विदेश मंत्री के पत्र से ये साफ नहीं हो रहा है कि अफगान प्रतिनिधि खुद न्यूयॉर्क आकर अपनी बात रखना चाहते हैं या फिर कोविड 19 की वजह से दूसरे नेताओं की तरह उनकी कोई रिकॉर्डेड वीडियो मैसेज देने की योजना है. 


ज्यादा दिन राजदूत नहीं रहेंगे  ग्राम इसाकजाई


तालिबान का पत्र इस बात का संकेत है कि यूएन में अफगानिस्तान की पूर्व सरकार के दूत ग्राम इसाकजाई के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है और वे ज्यादा दिनों तक इस पद पर कायम नहीं रह पाएंगे. ग्राम इसाकजाई पिछली सरकार की ओर से अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. बीते 15 अगस्त को तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था और वहां की सभी सरकारी संस्थाओं पर अपना नियंत्रण हासिल कर लिया था.


समिति सदस्यों के सामने रखा प्रस्ताव


दुजारिक के मुताबिक, तालिबान के पत्र के पहले 15 सितंबर को एक और पत्र अफगानिस्तान के मौजूदा प्रतिनिधि की ओर से महासभा के अध्यक्ष को मिला था. ये दोनों पत्र महासभा अध्यक्ष के ऑफिस की ओर से 76वें सत्र में शामिल समिति के सदस्यों को भेज दिए गए हैं. आपको बता दें कि इस समिति में रूस, चीन, अमेरिका, स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, सिएरा लियोन, चिली, भूटान और बहामास शामिल हैं.



(फाइल फोटो: Amir Khan Muttaqi)


मानवाधिकारों के देने होंगे सबूत


न्यूज एजेंसी एएफपी ने एक डिप्लोमेटिक सूत्र के हवाले से लिखा कि महासभा में अफगानिस्तान को शायद ही मौका मिले. ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी देश ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है. अगर उसे दुनिया का प्रतिनिधित्व करना है, तो अफगानिस्तान में मानवाधिकारों के लिए किए अपने वादे पूरे करने होंगे और इसके सबूत भी देने होंगे.