UN Report: दुनिया से खत्म हो रही है रेत, अर्थव्यवस्था सहित इन चीजों पर होगा बुरा असर
United Nations Report: पर्यावरण की सुरक्षा के लिए दुनिया भर में कई जागरूकता अभियान (Awareness Campaigns) चलाए जा रहे हैं. यूएन की एक रिपोर्ट में दुनिया से खत्म होती जा रही रेत (Sand) से कई चीजों पर भारी असर पड़ने की बात कही है.
Sand Is Ending From The World: अक्सर हम लोग पानी बचाने की मुहिम के बारे में सुनते हैं. वायु प्रदूषण के बारे में सुनते हैं, पढ़ते हैं. लेकिन संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की हाल ही में आई एक रिपोर्ट पढ़कर आप चौंक जाएंगे. ये रिपोर्ट दुनिया में मौजूद सरकारों को रेत के खत्म होने के खतरे से आगाह कर रही है. यूएन (UN) की इस रिपोर्ट के मुताबिक रेत दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल संसाधनों में दूसरे नंबर पर है. रिपोर्ट में बताया गया है कि रेत नदियों के लिए, समुद्र के लिए, मछुआरों के लिए, द्वीपों के लिए कितनी जरूरी है.
रेत का अंधाधुंध इस्तेमाल
UN की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में रेत के अंधाधुंध इस्तेमाल के चलते, ईंधन, बिजली, खाद्य संकट के बाद सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा रेत का संकट हो सकती है. दुनिया में एक ठोस सामग्री के तौर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल रेत का किया जाता है. पानी के बाद रेत दुनिया में दूसरा सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला वैश्विक स्रोत है. मगर रेत का प्रयोग अनियंत्रित तरीके से हो रहा है. यूएनईपी (UNEP) के सैंड एंड सस्टेनेबिलिटी (Sand & Sustainability) की 10 स्ट्रैटेजिक रिकमेंडेशंस टू अवर्ट ए क्राइसेस (Strategic Recommendations to Avert a Crisis) रिपोर्ट बताती है कि किस तरह से रेत के खनन को सही प्रकार से और बेहतर तकनीक के जरिए किया जा सकता है.
ये भी पढें: PM मोदी ने आइसलैंड और स्वीडन की प्रधानमंत्रियों से की मुलाकात, कई मुद्दों पर चर्चा
रेत के खत्म होने से क्या असर पड़ेगा?
रेत के खनन से नदी (Rivers) में कटाव बढ़ता है, किनारे तूफानी लहरों से बचाते हैं लेकिन खनन होने से तूफानी लहरों का असर से बचना मुमकिन नहीं होगा. रेत की कमी से जैव विविधता पर भारी असर देखने को मिलेगा जिससे इसका सीधा असर इंसान की जिंदगी पर पड़ेगा जैसे पीने के पानी की समस्या होगी, खेती (Farming) पर भी इसका असर पड़ेगा, मछली उत्पादन और साथ ही पर्यटन उद्योग पर भी बुरा असर देखने को मिलेगा. रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों का मानना है कि रेत को स्ट्रैटेजिक रिसोर्स (Strategic Resource) की मान्यता देनी चाहिए. रेत न केवल इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए जरूरी है बल्कि पर्यावरण के लिए भी रेत की भूमिका को अहम मानना चाहिए.
विशेषज्ञों का क्या मानना है?
विशेषज्ञों (Experts) का मानना है कि सरकार, उद्योग जगत और उपभोक्ताओं को रेत की कीमत को ऐसा रखना चाहिए जिससे इसका इस्तेमाल सही ढंग से किया जा सके और इसकी सामाजिक और पर्यावरणीय मूल्य की पहचान हो सके. अगर रेत को तटवर्तीय इलाकों से न हटाया जाए तो इससे समुद्री तूफान से बचने में मदद मिल सकती है और समुद्र का स्तर बढ़ने पर भी प्रभाव पड़ेगा. इसी वजह से UNEP की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जल्द से जल्द समुद्री तट पर रेत के खनन को रोका जाए ताकि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था (Economy) पर कोई असर न पड़े. रिपोर्ट के मुताबिक बीते दो दशकों में रेत का इस्तेमाल 3 गुना बढ़ा है और दुनियाभर में हर साल 50 बिलियन टन रेत का इस्तेमाल किया जा रहा है. अगर ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो न ही समुद्री तट रहेंगे और न ही छोटे-बड़े द्वीप.
ये भी पढें: 'पानी पर सबका हक है' के साथ फिर खुला वॉटर किंगडम, कोरोना के चलते 2 साल से था बंद
रेत का इस्तेमाल सही तरीके से करना होगा
पास्कल पेडुजी, UNEP में GRID-जिनेवा के निदेशक और इस रिपोर्ट के कोऑर्डिनेटर ने बताया कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट (Sustainable Development) के लिए हम जिस प्रकार से चीजों का निर्माण या उपभोग करते हैं, चाहे वो इंफ्रास्ट्रक्चर हो या कोई अन्य सेवा, उसे काफी हद तक बदलना होगा. हमारे पास रेत अनिश्चित काल के लिए मौजूद नहीं है, हमें इसे ध्यान से इस्तेमाल करना होगा. अगर हम इसे समझ लेते हैं और रेत (Sand) का इस्तेमाल सही तरीके से करते हैं तो हम आने वाले संकट को टाल सकते हैं और एक मजबूत अर्थव्यवस्था तैयार कर सकते हैं.
LIVE TV