US Midterm Election result 2022: अमेरिका के मध्यावधि चुनाव (US Mid term Poll counting) में वोटों की गिनती जारी है. ताजा रुझानों के अनुसार, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन, डेमोक्रेट्स से कई सीटों पर आगे चल रही है. इस चुनाव के नतीजे जो भी हों लेकिन पूरी दुनिया की निगाह फिलहाल अमेरिका पर टिकी हुई है. आखिर क्यों बेहद खास है इस बार का अमेरिकी मध्यावधि चुनाव, ये चुनाव हर दो साल में क्यों होता है, भारत से अमेरिका का मध्यावधि चुनाव किस तरह अलग है? आइए आपको देते हैं ऐसे सभी सवालों का जवाब.


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अमेरिका में मध्यावधि चुनाव 2022


भारत में मध्यावधि चुनाव का मतलब लोकसभा या विधानसभा के चुनावों का तय समय से पहले होने से लगाया जाता है लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं होता है. वहां हर दो साल में संसद के लिए मिड टर्म इलेक्शन होता है जो भारत के मध्यावधि चुनाव से बिल्कुल अलग होता है. अमेरिका में यह चुनाव एक सामान्य प्रकिया है. इसमें सबसे बड़ी बात है कि इस चुनाव में अगर मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन की पार्टी हार भी जाती है और संसद में अल्पमत में आ जाती है तब भी जो बाइडेन (Joe Biden) राष्ट्रपति बने रहेंगे.


आपके लिए क्यों जरूरी है ये खबर?


अमेरिका के इस मध्यावधि चुनाव से जुड़ी ऐसी कई दिलचस्प जानकारियां है जो आपके लिए जानना बेहद जरूरी है क्योंकि इस चुनाव के नतीजों का असर ना केवल अमेरिका पर बल्कि पूरी दुनिया पर भी पड़ सकता है. 


भारत से किस तरह अलग है चुनाव?


हिंदुस्तान में कानून बनाने वाली सबसे बड़ी संस्था संसद है जिसे विधायिका कहा जाता है. संसद 2 हिस्सों में बंटी है, पहली लोकसभा जिसे निचला सदन कहते हैं और दूसरा राज्यसभा जिसे ऊपरी सदन कहते हैं. लोकसभा के सदस्य का कार्यकाल 5 साल का होता है. वही राज्यसभा कभी भंग नहीं होती है और इसके सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है. इसी तरह अमेरिका में संसद को अमेरिकी कांग्रेस कहा जाता है. अमेरिकी कांग्रेस भी दो हिस्सों हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव्स (House of Representatives) और सीनेट में बंटा होता है. हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव्स निचला सदन है, जिसके सदस्यों का चुनाव लोगों के मतदान के जरिए होता है और ये 2 साल के लिए चुने जाते हैं.


एक तिहाई सदस्य हर दो साल पर रिटायर 


सीनेट के सदस्य पहले भारत के राज्य सभा सदस्य की तरह अप्रत्यक्ष रुप से चुन जाते थे लेकिन अब सीनेट के सदस्यों को जनता ही चुनती है. सीनेट के 100 सदस्य होते हैं यानी प्रत्येक अमेरिकी राज्य से 2 सदस्य चुने जाते हैं और इनका कार्यकाल 6 वर्ष के लिए होता है. इसके एक तिहाई सदस्य हर दो साल पर रिटायर होते रहते हैं और उसकी जगह नए सदस्यों का चुनाव होता रहता है.


अभी हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव्स के सभी सदस्यों का और सीनेट के रिटायर हुए एक तिहाई सदस्यों का चुनाव हो रहा है. इससे पहले ये चुनाव नवंबर 2020 में हुआ था जिसमें डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी की हार हुई थी और बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत हुई थी. फिर जनवरी 2021 में बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे. राष्ट्रपति को 4 साल के लिए चुना जाता है इसलिए अगर उनकी पार्टी का बहुमत हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव्स या सीनेट में कम भी हो जाता है तो भी जो बाइडेन अपने 4 वर्ष  के कार्यकाल को पूरा करेंगे. इसके बावजूद इस चुनाव में जो बाइडेन और उनके पार्टी के दूसरे नेता जैसे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा लगातार प्रचार कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ रिपब्लिकन पार्टी के नेता और पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप भी दिन-रात चुनाव प्रचार में जुटे हैं.


अमेरिकी कांग्रेस की मौजूदा स्थिति


जब राष्ट्रपति पद पर कोई असर नहीं हो सकता है फिर ये चुनाव दोनों पार्टियों के लिए इतना अहम क्यों है. इसे समझने के लिए आपको सबसे पहले वहां की संसद, अमेरिकी कांग्रेस की मौजूदा स्थिति के बारे में बताते हैं. नवंबर 2020 के चुनावी नजीतों के मुताबिक अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव्स में डेमोक्रेटिक के 220 सदस्य है, जबकि रिपब्लिकन के 212 सदस्य है. वोटिंग के अधिकार वाले कुल सदस्यों की संख्या 435 है. अभी 3 सीटें खाली है. यानी डेमोक्रेटिक पार्टी के पास बहुमत से केवल 2 सीट ज्यादा है.


सीनेट के कुल सदस्यों की संख्या 100 होती है. नवंबर 2020 के बाद इसके भी एक तिहाई सदस्यों का चुनाव हो रहा है. सीनेट में अभी डेमोक्रेटिक के 48 सदस्य है और 2 निर्दलीय सदस्यों का समर्थन है. जबकि रिपब्लिकन के 50 सदस्य है. सीनेट में दोनों पार्टियों का बहुमत बराबर है इसलिए उप राष्ट्रपति कमला हैरिस के वोट से डेमोक्रेटिक को सीनेट में बहुमत मिलता है.


कांटे की टक्कर में भारतीय मूल के प्रत्याशी


इन आंकड़ों से अब आप समझ सकते हैं कि डेमोक्रेटिक पार्टी का अमेरिका कांग्रेस के दोनों सदनों में कोई बड़ा बहुमत नहीं है बल्कि रिपब्लिकन पार्टी के साथ कांटे की टक्कर है. इसलिए रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दोनों चुनाव जीतने के लिए जोर लगा रहे हैं. 


अमेरिका के इस मध्यावधि चुनाव में भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक भी हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. भारतीय मूल के इन उम्मीदवारों में अमी बेरा, राजा कृष्णमूर्ति, रो खन्ना, प्रमिला जयपाल और श्री थानेदार शामिल है. अभी अमी बेरा, राजा कृष्णमूर्ति, रो खन्ना और प्रमिला जयपाल सांसद है और इनके फिर से जीतने की संभावना है. अमेरिका के चुनाव में भारतीय मूल के नागरिक भी काफी अहम भूमिका निभाते हैं.


अमेरिकी चुनाव में भारतवंशियों की अहमियत


अमेरिका में करीब 42 लाख भारतवंशी है. यानी भारतीय मूल के नागरिक है. अमेरिका के करीब 10 सीटों पर भारतीय मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इन 10 सीटों पर भारतीय मूल के लोगों के वोट से जीत-हार तय होता है. अमेरिका के कई राज्यों में भारतीय मतदाताओं की भूमिका बेहद निर्णायक है. ये राज्य है न्यूयार्क, इलिनोइस, कैलिफोर्निया, टेक्सास और न्यूजर्सी. इसके अलावा कुछ राज्य जैसे जॉर्जिया, वर्जिनिया, मिशिगन और ऐरिजोना में भारतीय की संख्या ज्यादा नहीं है लेकिन वो चुनावी नतीजों को प्रभावित करने में सक्षम है. और वो राज्य है जिसका असर अमेरिकी चुनाव का काफी देखने को मिलता है.


इन मुद्दों का समाधान निकलने की उम्मीद


अमेरिका के चुनाव नतीजों का असर लोगों की रोज की जिंदगी पर भी पड़ने वाला है. इसलिए इस बार चुनाव में महंगाई, गन कल्चर के अलावा अबॉर्शन एक बड़ा मुद्दा है. इस साल जून में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन पर संवैधानिक अधिकार खत्म कर दिया है. इसके बाद अमेरिका में लगातार प्रदर्शन हो रहा है. डेमोक्रेटिक पार्टी ने जिसके नेता बाइडेन है ने अबॉर्शन की कानूनी मंजूरी को बरकरार रखने का वादा किया है.


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