जापान के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सरकार को निर्देश दिया कि वह 1948 के कानून के तहत जबरन नसबंदी किए गए लोगों को मुआवजा दे. जापान टाइम्स के मुताबिक अदालत ने कहा कि कानून के तहत की गई नसबंदी सर्जरी, जिसमें विकलांग लोग भी शामिल हैं, बिना किसी 'तर्कसंगत कारणों' और भेदभावपूर्ण थी.  इस कानून को‘यूजेनिक्स प्रोटेक्शन लॉ’के तौर भी जाना जात है. 


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यूजेनिक्स क्या है?
ब्रिटिश खोजकर्ता और प्राकृतिक वैज्ञानिक फ्रांसिस गैल्टन द्वारा 1883 में गढ़ा गया शब्द "यूजेनिक्स" नस्लों में सलेक्टिव ब्रीडिंग को संदर्भित करता है ताकि 'खास' विशेषताओं वाली संतानें पैदा की जा सकें.


द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी सरकार के राष्ट्रीय मानव जीनोम रिसर्च संस्थान के अनुसार, 'यूजेनिक्स  वैज्ञानिक रूप से गलत सिद्धांत है कि आबादी के सलेक्टिव ब्रीडिंग के माध्यम से मनुष्यों में सुधार किया जा सकता है। यूजीनिस्ट मानते थे... अमूर्त मानवीय गुण (जैसे, बुद्धिमत्ता और सामाजिक व्यवहार) सीधे तरीके से विरासत में मिलते हैं. 


इसी तरह, उनका मानना ​​था कि जटिल बीमारियां और विकार केवल आनुवंशिक विरासत का परिणाम थे.'


इसमें आगे कहा गया है, 'यूजेनिक्स प्रथाओं को लागू करने के प्रयासों ने व्यापक नुकसान पहुंचाया है, विशेष रूप से उन आबादी को जो हाशिए पर हैं इसमें गैर-श्वेत नस्लें, विकलांग लोग और LGBTQ+ व्यक्ति शामिल हैं.'


जापान में क्यों लाया गया ‘यूजेनिक्स प्रोटेक्शन लॉ’
यूजेनिक्स  कानून 1948 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद तेजी से बढ़ती आबादी को ध्यान में रखकर बनाया गया था. इससे सरकार को वंशानुगत, मानसिक या शारीरिक विकलांगता वाले व्यक्तियों की नसबंदी करने की अनुमति मिल गई ताकि 'निम्न संतानों के जन्म को रोका जा सके.'


जापान का यूजेनिक्स कानून क्या था?
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक  'निम्न वंशजों' की वृद्धि को रोकने के लिए 1948 में लागू किया गया, युजनिक प्रॉटेक्शन लॉ लगभग 48 वर्षों तक प्रभावी रहा, जब तक कि इसे 1996 में पूरी तरह से समाप्त नहीं कर दिया गया. कानून में यह भी कहा गया कि इसका मकसद मां के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा करना है.


कानून में 'यूजेनिक ऑपरेशन' को एक सर्जिकल ऑपरेशन के रूप में परिभाषित किया गया है 'जो किसी व्यक्ति की प्रजनन ग्रंथियों को हटाए बिना उसे प्रजनन के लिए अक्षम कर देता है.'


अनुच्छेद 3 में संबंधित व्यक्ति और उसके पति/पत्नी की सहमति से ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर का उल्लेख किया गया है, हालांकि इसमें महत्वपूर्ण अपवाद भी शामिल किए गए. स्वैच्छिक नसबंदी के लिए कुछ शर्तें थीं। उदाहरण के लिए, 'वंशानुगत मनोरोग, शारीरिक रोग या वंशानुगत विकृतियाँ' वाले लोग आवेदन कर सकते थे।


 


25000 लोगों की नसबंदी
जापान टाइम्स के मुताबिक संसद की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 25,000 व्यक्तियों की नसबंदी सर्जरी की गई. इनमें से 16,500 ऑपरेशन संबंधित व्यक्तियों की सहमति के बिना किए गए, और अक्सर धोखाधड़ी और असुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल करके किए गए.


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने 3 जून के फैसले में कहा कि 1948 का यह कानून असंवैधानिक था. यह फैसला 39 में से 11 वादियों के लिए था. इन्होंने अपने मामले की देश के सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कराने के लिए जापान की पांच निचली अदालतों में मुकदमे लड़े. अन्य वादियों के मुकदमे अभी लंबित हैं.


पीएम ने मांगी माफी
प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने पीड़ितों से माफी मांगी और कहा कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से माफी मांगने के लिए वादियों से मुलाकात करने की उम्मीद है. किशिदा ने कहा कि सरकार नयी मुआवजा योजना पर विचार करेगी.


File photo courtesy- Reuters