Hardeep singh Nijjar:  खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के करीब तीन महीने बाद कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने बड़ा बयान देते हुए भारतीय एजेंसियों को जिम्मेदार बताया. यही नहीं एक भारतीय राजनयिक को स्वदेश जाने का फरमान भी सुनाया था. ट्रूडो के बयान और कनाडा सरकार की हरकत को भारत सरकार ने गैर जरूरी, बेबुनियाद और आधारहीन बताया. इन सबके बीच अमेरिका की तरफ से दो तरह की प्रतिक्रिया आई जिसमें भारत के प्रति कुछ नरमी और कुछ गरमी थी लेकिन अब अमेरिका की सोच में बड़ा बदलाव नजर आ रहा है. जिसे समझने की कोशिश करेंगे.


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पहले ऐसी थी सोच


अमेरिका को लेकर भारत की सोच अलग अलग दशकों में अलग अलग तरह से बदली. देश के पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी कहा करते थे कि आप अमेरिका पर भरोसा नहीं कर सकते और उसके पीछे 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध का जिक्र किया करते थे. उनके मुताबिक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे रिचर्ड निक्सन और हेनरी किसिंजर की चीन नीति हम सबके सामने रही है. लेकिन हाल ही में हडसन इंस्टीट्यूट में सवाल जवाब में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अमेरिका और भारत में अब वैश्विक स्तर के मुद्दों पर ना सिर्फ सहमति बन रही है बल्कि दोनों देश एक मंच पर आकर सहमति बना आगे भी बढ़ रहे हैं, इसका अर्थ यह है कि अब भारक हेनरी किसिंजर की चीन नीति के भय से आगे निकल चुका है.


अब बदल रहा नजरिया


एस जयशंकर की टिप्पणी ऐसे समय आई है जब अमेरिका का सबसे करीबी कनाडा आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश कर रहा था. 18 सितंबर को संसद में ट्रूडो के बयान के बाद, बेईमान राजनेता द्वारा आरोप को साबित करने के लिए कोई सबूत उपलब्ध नहीं कराया गया है, जबकि अलग अलग अमेरिकी अधिकारी बयान दे रहे हैं कि मामले की पूरी जांच की जानी चाहिए. इन सबके बीच पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की यात्रा की, जिस पर भारत ने पूरजोर आपत्ति जताई. 


क्या कहते हैं जानकार


जानकार कहते हैं कि आज का भारत 1962, 1965 या 1971 का भारत नहीं है, उस जमाने में भारतीय जनमास के पास सूचना के स्रोत सीमित थे लेकिन अब बदलते जमाने में सबकुछ बदल चुका है, अब भारतीय राजनेताओं के साथ साथ जनका मिजाज भी मायने रखता है.  भारत इस बात को समझ रहा है कि किस तरह फाइव आई का जिक्र कर कनाडा, अमेरिका को बरगलाने का काम कर रहा है, लिहाजा भारत की तरफ से सधी प्रतिक्रिया दी जा रही है ऐसी सूरत में अमेरिका को भी यह लगता है कि वो अपने अगले 50 साल के भविष्य को देखते हुए कोई ऐसी बात ना करे जिससे भारत के साथ रिश्तों में खटास आए. 


अगर एशिया के मानचित्र को देखें तो अमेरिका को इस बात का भान है कि भारत इंडो-पैसिफिक के केंद्रबिंदु में और एकमात्र शक्ति है जो आसियान या मध्य-पूर्व देशों के विपरीत अमेरिका और चीन के बीच दांव नहीं लगाती है. इस बीच फोर आईज ने  फिफ्थ आई यानी अमेरिका से कहा कि वो भारत के गुस्से को कम करने में मदद करे. जिस तरह अमेरिका को बाहरी खतरों से अपनी रक्षा करने का अधिकार है. उसी तरह भारत का भी अधिकार है.