नई दिल्लीः Ganesh Chaturthi 2021: गणेश जी की बात होती है तो सबसे पहले याद आता है कि महादेव शिव ने उनक मस्तक काट दिया था. गणेश जी का सबसे पहला नाम विनायक था. माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए विनायक ने महादेव द्वार पर ही रोक लिया था. इसके बाद उनका महादेव से युद्ध हो गया. 


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इसके परिणाम स्वरूप भगवान भोलेनाथ को त्रिशूल से बालगणेश का सिर काटकर वहां हाथी का मस्तक लगाना पड़ा. लेकिन भगवान शिव को ऐसा क्यों करना पड़ा, इसके पीछे भी एक श्राप था. 


ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस श्राप की कथा का वर्णन है. दरअसल, इस घटना के पीछे छिपा था एक श्राप, जो महादेव को ऋषि कश्यप ने दिया था. 


ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार एक बार नारद जी बड़ी ही जिज्ञासु अवस्था में श्रीहरि नारायण के पास पहुंचे और विनीत स्वर में बोले, हे प्रभु, मैं आप से ये जानना चाहता हूं कि भगवान शंकर ने क्यों अपने पुत्र गणेश जी की के मस्तक को काट दिया. 


श्रीहरि ने सुनाया वृ़त्तांत
इस पर श्रीहरि विष्णु ने कहा, सुनो नारद. तुम्हें इसके लिए एक प्राचीन कथा सुनाता हूं. महादेव के दो भक्त थे. माली और सुमाली. उनका किसी व्याधि को लेकर सूर्यदेव से युद्ध हो गया. माली और सुमाली पर सूर्यदेव ने अपनी तेज शक्ति का प्रयोग कर दिया. उनकी दारुण पुकार सुनकर क्रोधित महादेव ने सूर्य देव पर शूल का प्रहार कर दिया. 


महादेव ने किया सूर्य पर प्रहार
त्रिशूल की चोट से सूर्य की चेतना नष्ट हो गई. वह अपने रथ से नीचे गिर पड़ा. जब कश्यपजी ने देखा कि  मेरा पुत्र मृत अवस्था में हैं तो वह विलाप करने लगे.  उस समय सारे देवताओं में हाहाकार मच गया. संसार में अंधकार छा गया. तब ब्रह्मा के पौत्र तपस्वी कश्यप जी ने शिव जी को शाप दिया. 



वे बोले जैसा आज तुम्हारे प्रहार के कारण मेरे पुत्र की अवस्था हुई, आपको एक दिन स्वयं अपने पुत्र पर त्रिशूल का प्रहार करना होगा.  आपके पुत्र का मस्तक कट जाएगा. 


इसलिए कटा बालगणेश का मस्तक
यह सुनकर भोलेनाथ का क्रोध शांत हो गया. उन्होंने सूर्यदेव की चेतना लौटा दी. इसके बाद ऋषि कश्यप अवाक रह गए और क्षमायाचना करने लगे. जब सूर्यदेव को कश्यप जी के शाप के बारे में पता चला तो उन्होंने सभी का त्याग करने का निर्णय लिया.


यह सुनकर देवताओं की प्रेरणा से भगवान ब्रह्मा सूर्य के पास पहुंचे और उन्हें उनके काम पर नियुक्त किया. बाद में जैसा की ऋषि कश्यप का शाप था, गणपति बालक के विवाद से वैसी ही स्थिति बन गई और महादेव को अपने पुत्र का मस्तक काटना पड़ा. 


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