नई दिल्ली. भगवान गणेश हिंदुओं के देवता हैं. हर पूजा अधूरी है अगर इन्हें सबसे पहले न पूजा जाए. सभी बाधाओं को झट से गणेश हर लेते हैं. कम ही लोग जानते होंगे की गणेश जी के जापानी और चाइनीज अवतार भी हैं. और तो और इनके नाम भी हिंदी नाम से काफी मिलते जुलते हैं. कंगिटेन (दोहरा शरीर, dual body), बिनायक, गनाबछी, गनाहट्टी, नंदेई. गणेश की प्रिय मिठाई मोदक भी यहां काफी प्रचलित है. इसे ब्लिस बम कहा जाता है. यानी आनंद का पुलिंदा. कई घरों में इस मिठाई को खुशियों के प्रतीक के तौर पर पूजास्थल पर रखा जाता है. 


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यहां गणेश बाधा टालने और बाधा डालने, दोनों के ही देवता हैं
भारत में हर बाधा को हरने वाले गणेश चीन में थोड़ा हटकर हैं. माना जाता है कि अगर गनाबछी नाराज हुए तो हर काम में रुकावट पहुंचाएंगे. लेकिन खुश हुए तो बाधा को तिनके की तरह उड़ा देंगे. इन्हें राक्षसों का देवता भी माना जाता है. इन्हें रहस्यमयी देवता माना जाता है. इसलिए चीन के किसी भी पूजास्थल में यह खुलेआम नहीं बल्कि छिपाकर रखे जाते हैं.  


चीन में गणेश का नर और मादा रूप है पूजनीय
चीन में जो प्रतीक पूजा जाता है, उसमें केवल एक मूर्ति नहीं बल्कि मादा हाथी और नर हाथी दोनों एक दूसरे के साथ दिखाई देते हैं. मादा हाथी के सिर पर क्राउन है जबकि नर हाथी काले कपड़े में नजर आता है. 


भारत में सिंगल गणेश कैसे चीन और जापान में हुए डुअल
जापान और चीन में एक कहानी काफी मशहूर है. मराकेरा नाम के राज्य का एक राजा था. वह सुअर का मांस और मूली खाता था. लेकिन जब यह दोनों कम होने लगे तो कंगिटेन शवों को खाने लगा. यह भी घटने लगे तो फिर जिंदा लोगों को उसने अपना आहार बनाया. अब क्या करें? लोग त्राहि-त्राहि करने लगे. राज्य में महामारी आ गई. 


यह सब राजा की वजह से था. लोगों ने भगवान से प्रार्थना की. एकादसमुख यानी 11 सिर वाले एक देवता ने मादा हाथी का अवतार लिया. और चीन के गणेश अवतार कंगिटेन को आकर्षित किया. दोनों का संयोग हुआ तो कंगिटेन ने अपनी प्रकृति भी बदली. राक्षसों के देवता कंगिटेन अब बाधाओं को हरने भी लगे. इसीलिए चीन और जापान में उन्हें अच्छाई और बुराई दोनों का देवता कहा जाता है. 


प्रसाद में मोदक और मूली
चीन और जापान में भी गणेश के अवतार को शाकाहारी प्रसाद ही ऑफर किया जाता है. मूली और मोदक. मोदक को ब्लिस बन भी कहते हैं. मूली का आकार गणेश के आकार और प्रतीक के रूप में भी यहां पूजनीय है. यह दोनों ही गणेश के जापानी और चाइनीज अवतार को ऑफर किए जाते हैं. 


तो आखिर भारत से चीन कैसे पहुंचे गणेश
माना जाता धर्म प्रचार के लिए पूरी दुनिया में भ्रमण करने वाले बौद्ध समुदाय के लोग इन्हें भारत से चीन लेकर आए. चीन में गणेश की मूर्ति 531 ई.पू मिलती हैं जबकि जापान में 806 ई.पू. मिलती हैं. बौद्ध समुदाय में गणेश को बाधा डालने वाले राक्षसों के राजा के तौर पर जाना जाता था. उन्हें बुराई का देवता माना गया था.


(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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