Haridwar Mahakumbh में श्रीनिरंजिनी अखाड़े की पेशवाई आज, जानिए इतिहास
श्री निरंजनी अखाड़े की पेशवाई के भव्य स्वागत की तैयारी की गई है. बुधवार सुबह दस बजे SMJN पीजी कॉलेज से पेशवाई निकलेगी. इस दौरान इस पर पुष्प वर्षा की जाएगी. प्राचीन शिव-सती क्षेत्र कनखल में हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा देखने लायक होगी.
नई दिल्लीः Haridwar Mahakumbh 2021 का आगाज हो चुका है. बुधवार को हरिद्वार स्थित Kumbh Mela परिसर में श्री निरंजनी अखाड़ा का प्रवेश होने जा रहा है. इसके लिए बुधवार को भव्य पेशवाई निकाली जाने वाली है.
देश भर से साधु-संत पेशवाई के लिए पहुंच गए हैं. बुधवार दोपहर निरंजनी अखाड़े की पेशवाई का आयोजन शुरू होगा. ये पेशवाई पूरे शहर से होते हुए निरंजनी अखाड़े में पहुंचेगी. कुंभ के दौरान पेशवाई अखाड़ों के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है और हर एक अखाड़ा अपनी पेशवाई को भव्य रूप देने की कोशिश भी करता है.
अखाड़े के प्रमुख आकर्षण
इसी भव्यता के साथ निरंजनी अखाड़े के साधु समाज के लोग मां गंगा की शरण में पहुंचेंगे. कोरोना के दौर में होने वाले इस कुंभ में सर्वे संतु निरामया का संदेश भी दिया जाएगा. हाथी पर कसे चांदी के सिंहासन और हौदे, ऊंट पर रखी भव्य काठियां और सजे हुए रथ इस पेशवाई के मुख्य आकर्षण हैं. देव भूमि हरिद्वार इस मौके पर संस्कृति और संस्कार के अलग ही रंगों में रंगी नजर आएगी.
श्रीनिरंजनी अखाड़े की उत्पत्ति सबसे प्राचीन मानी जाती है. यह महज अखाड़ा नहीं है, जिसमें हाथ में कमंडल लिए या फिर माला जपने वाले साधु-संन्यासी हों. यह अखाड़ा अपने आप में पूरी सेना है. इसमें सेनापति भी हैं, थानेदार भी हैं और सैनिक, हवलदार भी होते हैं. अखाड़े की पेशवाई में यह क्रम पूरे अनुशासन के साथ नजर भी आता है.
कब हुई अखाड़े की स्थापना
श्रीनिरंजनी अखाड़े को लेकर माना जाता है कि इसकी स्थापना सन् 904 हुई. हालांकि इसे लेकर मतभेद भी है. क्योंकि कई विद्वान इसे 904 नहीं 1904 बताते हैं. लेकिन निरंजनी अखाड़े के पास इस तर्क को काटने का सबसे बड़ा जरिया है उनकी एक धरोहर.
अखाड़े के पास एक अति प्राचीन तांबे का छड़ादंड है. यह दंड अखाड़े के लिए बहुत ही सम्मानीय और पूजनीय भी है. इसी दंड पर विक्रम संवत् 906 अंकित है. यही इस अखाड़े की स्थापना का दौर माना जाता है.
महादेव पुत्र कार्तिकेय हैं ईष्ट देव
श्री निरंजनी अखाड़े में जो सैन्य व्यवस्था नजर आती है, उसकी सबसे बड़ी वजह हैं ईष्ट देव. दरअसल अखाड़े के ईष्ट देव हैं भगवान कार्तिकेय. वह खुद देव सेनापति हैं, जिन्होंने अपने बल से महज 6 वर्ष की आयु में राक्षसराज तारकासुर का अंत किया था.
सेनापति के ईष्ट देव होने के कारण उनके अनुयायी शैव हैं और उसी व्यवस्था में सेना की तरह ही रहते हैं. इस अखाड़े की स्थापना गुजरात के मांडवी नामक स्थान पर होती है.
मांडवी क्षेत्र का है पौराणिक महत्व
मांडवी का क्षेत्र गुजरात में कच्छ में है. इसकी प्राचीनता इस तरह सिद्ध होती है कि यही वह स्थल है जहां माना जाता है कि सरस्वती नदी का सागर से मिलन होता है. मांडवी सिर्फ आधुनिक ही नहीं बल्कि प्राचीन काल में भी बंदरगाह रहा है. इसके कई प्रमाण इस क्षेत्र से मिल चुके हैं.
श्रीकृष्ण की द्वारिका के समय भी यह स्थल देवताओं के विमानों के उतरने के स्थान के तौर पर प्रयोग में आता रहा है. ऐसा पौराणिक वर्णन भी मिलता है.
ऐसे होगा स्वागत
अखाड़े की पेशवाई के भव्य स्वागत की तैयारी की गई है. बुधवार सुबह दस बजे SMJN पीजी कॉलेज से पेशवाई निकलेगी. इस दौरान इस पर पुष्प वर्षा की जाएगी. प्राचीन शिव-सती क्षेत्र कनखल में हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा देखने लायक होगी.
संतों के चेहरे पर मास्क लगा होगा और वे कोरोना से बचाव का संदेश भी देंगे. 50 रथ, पांच हाथी और भव्य बैंड के साथ अखाड़े की पेशवाई निकलेगी. पेशवाई में उत्तराखंड के प्रसिद्ध नंदा राजजात के भी दर्शन होंगे. लोक कलाकार पहाड़ी संस्कृति के रंग भी बिखेरेंगे.
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