नई दिल्लीः महाशिवरात्रि पर्व 11 मार्च को है. ऐसे में अभी से शिवालयों में सजावटों का दौर जारी है. इसके साथ ही घरों में भी विशेष अनुष्ठान आदि की तैयारी होने लगी है. सभी देवताओं में देवों के देव महादेव को सबसे सरल और सहज माना जाता है.


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वह निश्छल भाव से हर किसी के हो जाते हैं. इसलिए इस संसार में सब उन्हीं का होते हुए भी उनका कुछ नहीं है. वह सब कुछ अपने भक्तों को दे देते हैं. इसी तरह महादेव शिव ने अपना प्रसाद खाने का हक भी दे रखा है. 


शिव प्रसाद क्यों वर्जित?
अक्सर यह सुना जाता है कि महादेव शिव पर चढ़ा हुआ प्रसाद नहीं खाना चाहिए या फिर इसे घर नहीं लाना चाहिए. दरअसल, यह एक अधूरा सच है.



लोगों को इस बारे में पूरी जानकारी तो नहीं है लेकिन परंपरा मानकर इसका पालन करते हैं. हालांकि वहीं कुछ लोग इस पर सवाल भी उठाते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है? 


श्रीराम ने बनाया था बालू का शिवलिंग
दरअसल, भगवान शिव के लिए कहा जाता है कि मानो तो शंकर, न मातो कंकर. इसका अर्थ है कि शिवपूजा कई रूपों में होती है. कोई भक्त मूर्ति बनाकर पूजा करता है, कोई शिवलिंग पर, कोई शालिग्राम स्वरूप में ही पूजन करता है.



कई जगह लोग केवल मिट्टी से एक आकृति बनाकर पूजा करते हैं. खुद भगवान श्रीराम ने लंका चढ़ाई के दौरान बालू से शिवलिंग बनाकर उनकी आराधना की थी. 


महादेव के प्रसाद के नियम हैं
जहां तक महादेव शिव का प्रसाद ग्रहण करने की बात है तो उसे ग्रहण करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन इसके लिए नियम बने हैं. इस नियम के पीछे भी विचार यह है कि महादेव अपने भक्तों से मुक्त नहीं हैं बल्कि उनके अधीन हैं.



कैलाश पर रहने वाले सभी गण खुद शिव के ही अंशावतार हैं. ऐसे में उनका अधिकार शिवपूजा में चढ़ाए गए होम-हवन आदि पर होता है. 


चंडेश्वर को मिलता है भाग
इनमें भी एक खास शिवगण है, चंडीश. इसे चंड गण या चंडेश्वर भी कहते हैं. यह भगवान शिव के मुंह खोले जाने से प्रकट हुआ था. एक तरह से वह महादेव की भूख के ही प्रतीक हैं.


चंडेश्वर को लालसा का भी प्रतीक माना जाता है. जब चंडेश्वर की भूख नहीं मिटी तो महादेव ने उन्हें कहा कि आज से मेरे पत्थर से बने लिंग, मिट्टी के शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद पर तुम्हारा अधिकार होगा. 


इस स्थिति में ग्रहण करें प्रसाद
महादेव की पूजा मूर्ति रूप और अन्य तरह के लिंग स्वरूप में भी होती है, लेकिन अन्य सभी पर चढ़ाए गए प्रसाद खा सकते हैं. यह महादेव का भाग होता है. भक्त इन्हें खा सकते हैं. पुराणों के अनुसार जिस शिवलिंग का निर्माण साधारण पत्थर, मिट्टी एवं चीनी मिट्टी से होता उन शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद नहीं खाना चाहिए. 



इन शिवलिंगों पर चढ़ा प्रसाद किसी नदी अथवा जलाशय में प्रवाहित कर देना चाहिए. धातु से बने शिवलिंग एवं पारद के शिवलिंग पर चढ़ा हुआ प्रसाद चण्डेश्वर का अंश नहीं होता है. 


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इस पर भी दोष नहीं लगता
शिवलिंग के साथ शालिग्राम के स्थापित होने पर भी दोष नहीं लगता है. इसलिए शालिग्राम के साथ शिवलिंग की पूजा करके भी उनसे प्रसाद लेकर खाया जा सकता है. इस प्रसाद से शिवकृपा प्राप्त होती है. 


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