नई दिल्लीः Parsva Ekadashi 2022 आज पार्श्व एकादशी है, जिसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो भक्त पार्श्व एकादशी व्रत का पालन करते हैं, उन्हें उनके सभी पिछले पापों से मुक्ति मिल जाती है और वे ब्रह्मांड के संरक्षक भगवान विष्णु के पुण्य और दिव्य आशीर्वाद से प्रसन्न होते हैं.


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जानिए परिवर्तिनी एकादशी का शास्त्रीय वर्णन
‘ब्रह्म वैवर्त पुराण’  में राजा युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण के बीच हुई गहन बातचीत के रूप में पार्श्व एकादशी के महत्व पर प्रकाश डाला गया है. इस दिन भगवान विष्णु करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. इस दिन व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है और समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करने से तीनों लोक पूज्य होते हैं.


धन-धान्य, सुख की होती है प्राप्ति
पार्श्व एकादशी व्रत भक्तों द्वारा सदियों से किया जा रहा है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जो भक्त पूर्ण समर्पण के साथ इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें अच्छे स्वास्थ्य, धन और सुख की प्राप्ति होती है. इस व्रत का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जातक को उसके पिछले पापों से मुक्त करता है और भक्तों को मृत्यु और जन्म के चक्र से मुक्त करता है.


सबसे शुभ और सर्वोच्च है पार्श्व एकादशी
इस शुभ दिन पर व्रत रखने से व्यक्तियों को उच्च आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है और साथ ही साथ यह पर्यवेक्षकों की इच्छा शक्ति को मजबूत करने में भी सहायक होता है. पार्श्व एकादशी को सबसे शुभ और सर्वोच्च एकादशी माना जाता है, क्योंकि यह पवित्र चतुर्मास के समय आती है. इस समय के दौरान किए गए विभिन्न अनुष्ठानों और अन्य महीनों में किए गए अनुष्ठानों की तुलना में पुण्यों (पुण्य) का मूल्य उच्च होता है.
 
पार्श्व या परिवर्तिनी एकादशी का महत्व
परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु या उनके अवतारों की पूजा करने वाले भक्तों की भगवद्दर्शन की इच्छा होती है. माना जाता है कि इसी दिन भगवान अपने पांचवें अवतार यानी वामन अवतार में पृथ्वी पर आए थे. इसीलिए इस दिन वामन जयंती भी मनाई जाती है.


परिवर्तिनी एकादशी पूजा विधि
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. साफ कपड़े पहनें.
- जिस स्थान पर पूजा करनी है उस स्थान की सफाई करें.
- गंगाजल डालकर पूजन स्थल को पवित्र करें.


- एक चौकी लें और उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं.
- भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा उस पर विराजित करें.
- दीपक जलाएं और प्रतिमा पर कुमकुम या चंदन का तिलक लगाएं.


- हाथ जोड़कर भगवान विष्णु का ध्यान करें. प्रतिमा पर तुलसी के पत्ते और पीले फूल अर्पित करें.
- फिर विष्णु चालीसा, विष्णु स्तोत्र और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें.
- इस दिन भगवान विष्णु के मंत्रों या नाम का जाप अवश्य करें.
- इसके बाद विष्णु जी की आरती करें. 


(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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