नई दिल्ली: सनातन धर्म में किसी भी इंसान की मृत्यु के बाद उस इंसान का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है. वहीं पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के नियम भी है. मृतक का पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण का अधिककार उनके संतान का होता है. माना जाता है कि जब खुद की संतान पिंडदान करती है तो आंत्मा को शांति मिलती है, लेकिन जिस पितर की कोई संतान ना हो, ऐसे में उस मृत इंसान का पिंडदान कैसे होगा. 


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भाई-भतीजे 
गुरुण पुराण के अनुसार पितर के परिवार का कोई भी सदस्य श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण कर सकते हैं. किसी मृत इंसान की संतान नहीं है ऐसे में उनके भाई-भतीजे उनका पिंडदान कर सकते हैं. सगे भाई का पुत्र भी उनका पिंडदान कर सकता है. भतीजे द्वारा किया गया पिंडदान पुत्र के समान किए पिंडदान जैसा माना जाता है. 


जब पुत्र ना हो 
अगर किसी पितर के परिवार में पुत्र न हो तो उस इंसान का पिंडदान दामाद और नाती कर सकते हैं. नाती द्वारा पिंडदान भी फलदायी माना जाता है. 


तर्पण के नियम 
गुरुड़ पुराण में पितरों के तर्पण के कुछ निमय बताए गए हैं. पितृपक्ष के दौरान रोजाना स्नान करने के बाद दक्षिण दिशा की तरह मुंह करके जल और काला तिल डालकर तर्पण करना चाहिए. अंगूठे से ही जलांजलि करनी चाहिए, इससे यह पितरों तक पहुंच जाती है. 


किन लोगों का पिंडदान नहीं होता है
छोटे बच्चों और संन्यासियों का पिंडदान नहीं किया जाता है. श्राद्ध केवल उनकी का होता है जिनकों अपनों से मोह होता है. श्राद्ध कराने के बाद ब्राह्मण को भोजन करना कराना चाहिए. 


(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Bharat इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.)


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