नई दिल्लीः अक्षय तृतीया पर यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के बाद तृतीया तिथि की समाप्ति से पहले गंगोत्री धाम के कपाट भी खुल गए. शनिवार को, मिथुन लग्न की शुभ वेला पर सुबह साढ़े सात बजे पर गंगोत्री धाम के कपाट खोले गए. अब यह छह माह तक खुले रहेंगें.



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कोरोना को लेकर जारी सरकार की गाइडलाइन के अनुसार इस बार श्रद्धालुओं की मौजूदगी नहीं रही. कपाटोद्घाटन पर पहली पूजा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत द्वारा भेंट स्वरूप भेजी गई 1101-1101 रुपये की धनराशि के साथ हुई. 


मुखबा गांव से मां गंगा की निकली थी डोली
जानकारी के मुताबिक, शुक्रवार को शीतकालीन प्रवास मुखबा गांव से मां गंगा की भोग मूर्ति को डोली यात्रा के साथ गंगोत्री धाम के लिए रवाना किया गया था.



डोली यात्रा भैरोंघाटी स्थित प्राचीन भैरव मंदिर में रात्रि विश्राम के बाद शनिवार को तड़के गंगोत्री पहुंची. जिसके बाद सुबह साढ़े सात बजे गंगोत्री मंदिर के कपाट खुले.


यहां महादेव की जटा में समाईं थीं गंगा
त्रेतायुग में गंगा मां का जब स्वर्ग से अवतरण हुआ था, तो उसके पहले राजा भगीरथ को तपस्या करके महादेव शिव को प्रसन्न करना पड़ा था. ताकि नदी गंगा के वेग से धरती पाताल में न चली जाए. तब महादेव ने कहा वह गंगा के वेग को सहकर, उन्हें अपनी जटा में धारण कर लेंगे.



जिस स्थान पर महादेव ने खड़े होकर गंगा को शीष पर धारण किया वही स्थान आज गंगोत्री है. यहां भगवान भोलेनाथ गंगाधर कहलाए और देवी गंगा को एक और नाम मिला, वह जटा शंकरी कहलाईं. 


गंगोत्री से 18 किमी दूर है गोमुख
गंगोत्री धाम उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है. उत्तरकाशी, उत्तराखण्ड का दूसरा सबसे बड़ा जिला है. गंगोत्री धाम उत्तरकाशी शहर में स्थित नहीं है. उत्तरकाशी शहर से गंगोत्री धाम की दूरी 100 किलोमीटर है. गंगा का उद्गम स्थल गोमुख है जिसकी दूरी गंगोत्री से 18 किलोमीटर है. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था, पहले गोमुख गंगोत्री धाम के पास ही था लेकिन पर्यावरण में बदलाव के कारण गोमुख खिसकते हुए 18 किलोमीटर पीछे चला गया और आज भी इसका खिसकना जारी है.


700 साल पुराना बना गंगोत्री मंदिर
गंगोत्री मंदिर का इतिहास वैसे तो लगभग 700 वर्ष पुराना है किन्तु वर्तमान मंदिर का निर्माण गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने 18वीं सदी में करवाया और 20 सदी में जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने इसका जीर्णोंद्वार करवाया.



अमर सिंह थापा ने ही यहाँ मुखबा गाँव के पुजारियों को पंडों के रूप में यहां नियुक्त किया. इससे पूर्व टकनौर के राजपूत ही गंगोत्री के पुजारी थे.


1980 तक 100 किमी पैदल चलते थे तीर्थयात्री
वर्ष 1980 तक मोटर न होने के कारण तीर्थ यात्री उत्तरकाशी से ही 100 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करके गंगोत्री तक पहुंचते थे. 1980 में मोटर मार्ग का निर्माण होते ही गंगोत्री धाम की यात्रा श्रद्धालुओं के लिए आसान हो गई. 


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