नई दिल्ली: वट सावित्री के व्रत के दिन वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार बरगद के वृक्ष में सभी देवी-देवता वास करते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु एवं टहनियों में भगवान शंकर का निवास होता है. इस पेड़ की नीचे की ओर लटकती शाखाएं, देवी सावित्री का प्रतीक मानी जाती है. इसलिए वट वृक्ष की पूजा से हर मनोकामना शीघ्र पूर्ण होती है.


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इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करने से पति की लंबी आयु होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है.  स्कन्द पुराण में वट सावित्री व्रत की सम्पूर्ण विधि का वर्णन किया गया है. इसके अलावा इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं, जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है.


यही वजह है कि इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं. अग्नि पुराण के अनुसार, बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है, इसलिए संतान प्राप्ति के लिए भी महिलाएं इस वृक्ष की पूजा करती हैं.


ऐसे करें व्रत और पूजा-


- ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठ जाएं.
- स्नान के बाद व्रत करने का संकल्प लें.
- महिलाएं व्रत शुरू करने से पहले पूरा श्रृगांर कर लें.
- इस दिन पीले वस्त्र पहनना और पीला सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है.
- पूजा के लिए बरगद का पेड़, सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखें.
- बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें पुष्प, अक्षत, फूल और मिठाई चढ़ाएं.
- पेड़ में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगें.
- इसके बाद वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें.
- परिक्रमा के बाद हाथ में काला चना लेकर इस व्रत की कथा सुनें.
- अंत में वट वृक्ष और यमराज से घर में सुख, शांति और पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करें.
- इसके बाद पंडित को दान दक्षिणा दें.
- चने गुड़ का प्रसाद सभी लोगों को बांटें.
- इस पूरे दिन उपवास रखें और शाम में समय फलाहार करें.
- इस व्रत को अगले दिन खोला जाता है.  

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