नई दिल्ली: धार्मिक पुराणों के अनुसार, कार्तिकेय को जन्म देने के बाद देवी पार्वती का नाम स्कंदमाता पड़ा. यह भी कहा जाता है कि आदिशक्ति जगदम्बा ने बाणासुर के अत्याचार से संसार को मुक्त कराने के लिए अपने तेज से एक बालक को जन्म दिया. 6 मुख वाले सनतकुमार को ही स्कंद कहा जाता है. पुराणों के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध में कार्तिकेय यानी स्कन्द कुमार देवताओं के सेनापति बने थे और देवताओं को विजय दिलाई थी.


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मां स्कंदमाता की पूजा से बढ़ता है आत्मविश्वास


मान्यता के अनुसार नवरात्रि के दौरान स्कंदमाता की पूजा करने से आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है. स्कंदमाता का अर्थ यहां स्कंद (कार्तिकेय) की माता से है. मां स्कंदमाता की पूजा ज्ञात और अज्ञात शत्रु के भय को भी दूर करती है. इसके अतिरिक्त जीवन में आने वाले अनेक संकटों को भी मां स्कंदमाता दूर करती हैं.


मां स्कंदमाता की पूजा से दूर होते हैं त्वचा रोग


इन सब के अलावा मां स्कंदमाता की पूजा के संबंध में यह भी मान्यता है कि इसे करने से भक्त के ज्ञान में वृद्धि होती है. इसके अतिरिक्त ये भी माना जाता है कि मां स्कंदमाता की पूर्ण विश्वास के साथ विधि-पूर्वक पूजा करने से त्वचा संबंधी रोग भी दूर हो जाते हैं. इसके साथ ही सेहत से जुड़ी परेशानियों को दूर करने में भी मां स्कंदमाता की पूजा मददगार मानी गई है.


जानिए क्या है मां स्कंदमाता की कथा


हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्कंदमाता ही हिमालय की पुत्री और कार्तिकेय की माता पार्वती ही हैं, इनके अन्य नाम माहेश्वरी और गौरी भी हैं. जहां तक स्कंदमाता के स्वरूप की बात है तो देवी इस रूप में कमल के पुष्प पर अभय मुद्रा में दिखती हैं.


मां का यह रूप अति सुंदर होने के साथ ही उनके मुख पर तेज विद्यमान है. गौर वर्ण होने के कारण ही इन्हें गौरी भी कहा जाता है.


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