नई दिल्ली: मौलाना साद वो नाम जो कोरोना काल में देश का सबसे बड़ा खलनायक है, मौलाना साद वो नाम जिसकी नासमझी ने पूरे देश में कोरोना को वो रफ्तार दी जिससे देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार तेजी से बढ़ती जा रही है. उसी मौलाना साद की क्राइम कुंडली को हम की एक-एक परत खोलते हैं.


दिल्ली पुलिस के डोजियर में मौलाना का सारा सच आया सामने


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ज़ी मीडिया को मौलाना साद से जुड़ा दिल्ली पुलिस डोजियर वो जानकारी मिली है. जिसमें मौलाना साद की रूटीन दिनचर्या से लेकर उसके ख़ास लोगों समेत मरकज के 2 टॉप आरोपियों तक के नाम लिखे हैं. दिल्ली पुलिस द्वारा तैयार किये गए इस डोजियर पर यकीन करें तो इसमे वो नाम लिखे गए हैं जो परिवार, रिश्तेदार और उसके बेटों में मौलाना के सबसे खास और करीबी हैं.


डोजियर में सबसे पहले मौलाना साद की दिनचर्या का जिक्र है. जिसके मुताबिक मौलाना साद हर सुबह 8 बजे मरकज पहुंच जाता था, वहां वो दोपहर 2 से ढाई बजे तक रहता था फिर 2 घंटे के लिए अपने घर आता और 4 बजे वापस मरकज़ पहुंच जाता, जिसके बाद वो रात 10 बजे तक यहीं रहता था.


डोजियर में उसके उत्तराधिकारियों की लिस्ट में उसके तीनों बेटों के नाम दर्ज हैं...


1. मोहम्मद यूसुफ- बड़ा बेटा- निवासी मरकज बस्ती, निज़ामुद्दीन, 6 मंजिल
2. मोहम्मद सईद- मंझला बेटा
3. मोहम्मद इलयास- तीसरा बेटा


1995 से 2020 तक मौलाना साद का 'सारा खेल होगा बेपर्दा'?


बताया जाता है कि मौलाना साद ने सबसे पहले 1995 में ही तबलीगी जमात से बगावत की और रिश्ते में अपने बड़े भाई लगने वाले जुबैर को उसके पिता की मौत के बाद मरकज का अमीर बनने से रोक दिया. और फिर 2014 में जुबैर की मौत के बाद खुद को अमीर घोषित कर दिया.


आरोप है कि साद की इस हरकत पर जुबैर के पक्ष के लोगों ने आपत्ति जताई तो उन्हें जून 2016 को मरकज़ में मेवात से बुलाये हुए लोगों के ज़रिए दूसरे पक्ष के लोगों को बुरी तरह पिटवा दिया. जाहिर है मौलाना साद हर हाल में मरकज पर अपना कब्जा बना रखना चाहता था.


कौन था मरकज़ के लापरवाह खेल में मौलाना साद का 'राइट हैंड?


बताया जाता है कि तब्लीगी जमात के बैंक खातों की ज़िम्मेदारी मौलाना साद के बेटे यूसुफ सईद और इलियास के पास है. वहीं मौलाना साद के भांजे ओवैस का भी जमात की फंडिंग में अहम रोल है. जांच एजेंसी को शक है कि विदेशी फंडिंग से ही मौलाना साद ने दो हज़ार करोड़ की निजी संपत्ति जुटा ली.


मौलाना साद के सबसे करीबी रिश्तेदार का नाम है मौलाना अब्दुल रहमान शुरुआत में क्राइम ब्रांच को शक था कि मौलाना अपने इसी रिश्तेदार के घर छिपा हुआ है. 


सबसे खास हैं हाजी मोहम्मद यूनुस और मौलाना मुफ्ती शहजाद


अब जरा उस मरकज की कमाई के बारे में भी जान लीजिए जिसपर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं. हाजी मोहम्मद यूनुस, जो मुस्तफाबाद का निवासी है उसका पद दरवाजों का केअर टेकर जो सिक्योरिटी और ट्रांसपोर्टेशन का हेड है. मौलाना के पीठ पीछे कौन-कौन मरकज में आता है और वहां काम कर रहे कर्मचारियों में नजर रखने की जिम्मेदारी यूनुस की है.


मौलाना मुफ़्ती शहजाद जो जाकिर नगर का निवासी है और ये अभी क्वॉरंटीन है. इसके खिलाफ भी एफआईआर है. इसका काम है मरकज में प्रशासनिक कमेटी के सदस्यों पर नजर रखना. बताया जाता है कि मौलाना शहजाद की सबसे बड़ी जिम्मेदारी ये है कि वो उन लोगों पर नजर रखे जो मरकज में मौलाना साद की सल्तनत के खिलाफ आवाज उठा सकते थे.


लेकिन, अब जांच ऐजेंसियां कोरोना की जमात के मास्टरमाइंड बन चुके मौलाना साद से जुड़ी हर जानकारी जुटा रही हैं ताकि उसके गुनाहों का हिसाब हो सके.


मौलाना साद को लेकर लगातार खुलासों का दौर जारी है जहां एक तरफ दिल्ली पुलिस ने मौलाना साद को लेकर कई खुलासे किए है. वहीं दूसरी तरफ तबलीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज के मुखिया मौलाना साद ने अपने वकीलों के जरिये दिल्ली पुलिस को क्वारंटीन खत्म होने की जानकारी दी है.


साद ने कहा है कि उसने कोरोना टेस्ट करा लिया है और रिपोर्ट निगेटिव आई है. हालांकि, दिल्ली पुलिस ने साद से कहा है कि वो सरकारी अस्पताल में अपना कोरोना टेस्ट करवाए और उसकी रिपोर्ट भी भेजे ताकि उससे पूछताछ की जा सके.


मौलाना साद के पास है 2 हजार करोड़ की निजी संपत्ति?


प्रवर्तन निदेशालय की जांच में मौलाना साद को लेकर कई खुलासे हो रहे हैं. प्रवर्तन निदेशालय निजामुद्दीन मरकज और मौलाना साद से जुड़े 11 बैंक अकाउंट की जांच कर रहा है. इन अकाउंट्स को चलाने वाले लोगों समेत 849 विदेशियों पर भी नज़र रखी जा रही है. प्रवर्तन निदेशालय की जांच में खुलासा हुआ है कि मरकज को मिलने वाली ज्यादातर फंडिंग इंडोनेशिया और मिडिल-ईस्ट से होती थी. प्रवर्तन निदेशालय ने मौलाना साद के करीबियों से पूछताछ की और उनके बयान दर्ज किये हैं.


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प्रवर्तन निदेशालय की जांच में ये खुलासा भी हुआ है कि मरकज को डोनेशन विदेशी करेंसी में मिलता था और सारा पैसा निजामुद्दीन के बैंकों में जमा होता था.


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