पटना के बेउर जेल में रहते हुए मोकामा के ‘छोटे सरकार’ अनंत सिंह ने आरजेडी के टिकट पर चुनावी ताल ठोक दी है. इस बार भी मोकामा ही अनंत सिंह का सियासी युद्ध का मैदान है लेकिन इस बार समीकरण पिछली बार से अलग हैं. पिछली बार साल 2015 में लालू और नीतीश ने हाथ मिलाया था तो दागी छवि वाले अनंत सिंह को ना जेडीयू से और ना ही आरजेडी से टिकट मिला. अनंत सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और महागठबंधन के नीरज कुमार को करारी मात दी. जो आरजेडी पिछले चुनाव तक अनंत सिंह के आपराधिक छवि को मुद्दा बना रही थी, उसी ने इस बार अनंत को चुनावी मैदान में उतारा है.


डॉन बनाम साधु


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मोकामा सीट पर इस बार का मुकाबला दिलचस्प रहने वाला है. एक तरफ आरेजेडी के टिकट पर मगहिया डॉन हैं तो दूसरी तरफ जेडीयू की ओर से एक साधु मैदान में है. नीतीश कुमार ने अपने करीबी और बाढ़-मोकामा के इलाके में अच्छी छवि रखने वाले बीनो बाबू के बेटे राजीव लोचन नारायण सिंह उर्फ अशोक नारायण को अपना उम्मीदवार चुनाव चुना है, जिन्हें अटल बिहारी वाजपेयी का सिपाही भी कहा जाता है. राजीव लोचन के सीधे-सादे स्वभाव की वजह से उन्हें इलाके में लोग साधु बाबा भी कहते हैं और इस समर में उन्हें एक डॉन से मुकाबला करना है.


मगहिया डॉन Vs गैंगस्टर राजा


ये कहानी है वर्चस्व के ऐसे जंग की, जिसमें ऐसे दो किरदार हैं जिनका नाम बिहार के बाहुबलियों में दर्ज है और कुछ सालों पहले तक इन्हीं के दरवाज़े से तय होती थी पूरे सूबे की सियासत. वैसे तो सूरजभान और अनंत सिंह में सीधे तौर पर अदावत की जंग शुरू हुई साल 2005 में लेकिन इसकी पृष्ठभूमि काफी पुरानी है.



सूरजभान सिंह कैसे बना गैंगस्टर?


पटना ज़िले में गंगा किनारे मोकामा की धरती. ये वो धरती है जिसके बारे में प्रचलित है कि ये खून मांगती है. रक्तरंजित दुश्मनी की कहानी शुरू होती है कांग्रेस विधायक श्याम सुंदर सिंह धीरज से. चुनाव में तब बूथ कैप्चरिंग की वारदात को अंजाम देना समर में कूदे योद्धाओं का शगल होता था, और धीरज के लिए ये काम करता था दिलीप सिंह. वक़्त आया जब दिलीप सिंह खुद नेता बन बैठा और 1990 में विधानसभा चुनाव जीतकर लालू सरकार में मंत्री तक बन गया.


धीरज को दरकार थी एक ऐसे दबंग चेहरे की जो दिलीप सिंह को चुनौती दे सके और उसकी नज़र गई दिलीप सिंह के गैंग के एक युवा चेहरे पर जिसके सिर पर रंगबाज़ बनने की जुनून सवार था और जिसने रंगदारी वसूलने में अपनों का रिश्ता भी ताक पर रख दिया था. ये था सूरजभान सिंह, जिसके नाम से क्राइम डायरी अभी तैयार होनी शुरू हुई थी.



सियासी सरपरस्ती में सूरजभान का जरायम की दुनिया में कद बढ़ता जा रहा था. हत्या करना और कराना उसके लिए आये दिन का खेल हो चला था. 90 के दशक में उसकी अदावत उस वक्त के बिहार के सबसे बड़े डॉन अशोक सम्राट से थी. अशोक सम्राट ने सूरजभान पर जानलेवा हमला भी किया था, लेकिन अपने सबसे बड़े दुश्मन की मौत के बाद तो मानो वो गुनाह की दुनिया का बेताज बादशाह बनने के रास्ते पर निकल पड़ा. श्री प्रकाश शुक्ला जैसे सरगनाओं का साथ मिला और फिर बुलेट के दम पर बन गया बिहार का सबसे बड़ा बाहुबली.


सच कहें तो वो सूरजभान सिंह ही था जिसने बिहार में बुलेट बनाम बैलेट का फॉर्मूला सबसे पहले शुरू किया था, लेकिन इसी दौरान दिलीप सिंह के शूटर नागा सिंह ने सूरजभान के चचेरे भाई मोकी सिंह की हत्या कर दी और यहीं से दिलीप सिंह के साथ शुरू हुई सूरजभान की अदावत की जंग..


अनंत सिंह कैसे बना डॉन?


इसी दौरान 9 साल की उम्र में अपनी दबंगई दिखा चुके दिलीप सिंह के भाई अनंत सिंह की एंट्री होती है. एक वक़्त था जब अनंत सिंह ने वैराग्य ले लिया था और हरिद्वार में साधु बन गया था लेकिन जब उसे अपने बड़े भाई बिरंची सिंह की हत्या की ख़बर मिली तो वो वापस लौटा और हत्यारे को ढूंढता रहा, कहते हैं उसने नदी पार कर के अपने भाई के हत्यारे को मौत के घाट उतार दिया और यहीं से वो बढ़ चला जरायम की दुनिया में बाहुबल दिखाने और बिहार में भूमिहारों का चेहरा बनने.



साल 2000


सूरजभान की दिलीप सिंह और अनंत सिंह के साथ अदावत की जंग जारी थी और इसी बीच में साल 2000 में सूरजभान मोकामा से निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर दिलीप सिंह के सामने खड़ा हुआ और टिक्कर सिंह और खिक्खर सिंह सरीखे दबंगों के साथ मिलकर अपने उस्ताद को एक बड़े मार्जिन से हरा दिया. निर्दलीय विधायक जीतने के बाद बहुत जल्द सूरजभान सिंह ने अपने बाहुबल का परिचय सियासी गलियारों में भी दे डाला. बेशक खादी पहनने के बाद उसने सियासी सलीका सीखने की कोशिश की लेकिन वो जानता था कि बिहार की राजनीति में पहला और आखिरी इम्तिहान बाहुबल के दम पर ही पास किया जा सकता है. लिहाजा खादी के खोल में छिपकर भी गुनाह को अंजाम देने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा.



एक तरफ दिलीप सिंह गैंग का सूरजा सफेद लिबास से अपना काला जिस्म ढक रहा था तो दूसरी तरफ संगीनों के साये में एक और डॉन सिर उठा रहा था, जिसे लोग मगहिया डॉन कहने लगे थे.


अनंत सिंह, मगहिया ‘डॉन’


बदले की आग में गुनहगार बने अनंत सिंह ने बहुत थोड़े वक्त में खुद के लिए बाहुबली होने का खिताब हासिल कर लिया. पुलिस की फाइलों में गुनाह की अनंत कथा दर्ज होती गई लेकिन अड़ियल अनंत को न पुलिस की परवाह थी और न ही कानून का डर, उसने जो चाहा वही किया.


साल 2004, सूरजभान पहुंचा संसद


सूरजभान सिंह वो गैंगस्टर था, जिसने सत्ता का स्वाद भी चखा और उसके पावर को महसूस करने के साथ उसका बखूबी इस्तेमाल भी किया और यही उसे ले गया देश के सबसे बड़े सियासी समर में, साल 2004 के लोकसभा चुनावों में बिहार के बलिया लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर सूरजभान जीता और माननीय विधायक से अब माननीय सांसद बन गया. ये वो वक़्त था जब बिहार में ना सिर्फ उसके बाहुबल बल्कि उसके राजनीतिक कद को भी बड़े-बड़े नेता मानने लगे थे, यही वजह थी कि लोक जनशक्ति ने उसे अपना सिपेहसालार बना लिया.



अनंत सिंह के घर छापा


इसी साल यानी वर्ष 2004 में बिहार STF ने अनंत सिंह के घर को घेर लिया, घंटों तक दोनों तरफ से फायरिंग होती रही. कहते हैं कि अपने सियासी रसूख का फायदा उठाकर सूरजभान ने अनंत को डाउन करने के लिए ये कार्रवाई कराई थी, इस गोलीबारी में अनंत सिंह को भी गोली लगी थी, वो ज़ख़्मी शेर था और उसने पलटवार की पूरी योजना बना रखी थी, जिसे अगले साल अंजाम देना था.


साल 2005


अनंत सिंह अपनी सियासी विरासत को बचाने की जुगत में लगा था और साल 2005 में उसने सूरजभान को सीधी चुनौती दी. सूरजभान के बाहुबल के इलाके मोकामा से अनंत सिंह ने चुनावी मैदान में उतरने का मन बनाया तो नीतीश कुमार से लेकर लालू यादव तक अनंत सिंह के साथ खड़े हो गए. हालांकि नीतीश की पार्टी जेडीयू से अनंत सिंह ने जीत दर्ज की और विधायक बन गए.



अनंत सिंह ने विधायक बनने के साथ मनमानियां शुरू कीं. सरेआम एके-47 लहराना, पत्रकारों की पिटाई, और तो और सरकारी आवास में नाबालिग से बलात्कार. अनंत सिंह जहां नीतीश के लिए गले हड्डी बनता जा रहा था तो दूसरी तरफ सूरजभान के लिए मुसीबत के दिन शुरू होनेवाले थे.


साल 2008


बाहुबली सांसद सूरजभान सिंह के नाम से सूरजा शूटर को जाना जाने लगा. बेशक सूरजभान सिंह सियासी गलियारों में पहुंच चुका था, लेकिन गुनाह की गलियों से उसका नाता चलता रहा और चलती रही अदालती कार्यवाही और उसी दौरान सांसद सूरजभान सिंह को हत्या के एक मुकदमे में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई.


अदालत के आदेश के बाद सूरजभान सिंह को जेल जाना पड़ा लेकिन सूरजभान के लिए जेल की कालकोठरी ज्यादा परेशानी की बात नहीं थी क्योंकि इन गलियों से तो उसका पुराना नाता था. जेल की चहारदीवारी के भीतर उसकी अपनी सरकार चलती, हालांकि सज़ायाफ्ता मुजरिम होने के नाते वो चुनाव नहीं लड़ सकता था लेकिन जेल के अंदर से वो अपना सियासी गेम खेल रहा था.



साल 2010


विधानसभा चुनाव आए और एक बार फिर नीतीश कुमार ने अनंत सिंह को तमाम गुनाहों पर पर्दा डालते हुए टिकट दे दिया. वही नीतीश कुमार जिनके आदेश पर अनंत सिंह के खिलाफ जबरन ज़मीन कब्ज़ा करने का मुकदमा लिखा गया था. एक बार फिर उसने सूरजभान के इलाके में ताल ठोकी और जीत भी दर्ज की. अब तक वो छोटे सरकार के नाम से जाना जाने लगा था. अनंत सिंह ने अपनी रॉबिनहुड की छवि बनानी शुरू की, गरीबों की मदद करना, शादियां करवाना, उनके सुख दुख में शामिल होना और इसी के साथ वो अपनी स्टाइल को भी बनाकर रखता था. 



साल 2014


सियासी समीकरण बदल चुके थे, लेकिन सूरजभान की अपनी वो ठसक अवाम के बीच बाकी थी और उसी की बुनियाद पर सियासी कसक पूरी करने के लिए लोकसभा चुनावों में एक बार फिर कूद पड़ा. लेकिन इस बार चेहरा बनी सूरजभान की पत्नी वीणा देवी. बेशक सियासी समझ शून्य थी लेकिन पति के बाहुबल के असर ने जीत का रास्ता तय कर दिया और पत्नी भी पहुंच गई देश की सबसे बड़ी पंचायत में.


ये साल अनंत सिंह के लिए चुनौतियों से भरा रहा. लालू यादव और नीतीश में नज़दीकियां बढ़ रही थीं और लालू की पार्टी के पप्पू यादव ने एक मामले को लेकर अनंत सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. लिहाज़ा साल 2004 का इतिहास एक बार फिर दोहराया गया. अनंत सिंह के घर पर 400 पुलिसवालों ने धावा बोला और घंटों के संग्राम के बाद अनंत सिंह को गिरफ्तार कर लिया.



साल 2015


अनंत सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया लेकिन इस बाहुबली का अंदाज़ नहीं बदला. सूरजभान से उसकी अदावत जारी थी और सूरजभान अब अपनी सियासी ज़मीन मोकामा के बाहर बना रहा था तो वहीं अनंत सिंह ने 2015 विधानसभा चुनावों में जेल में रहते हुए नामांकन किया और फिर चुनावी समर में सबको उखाड़ फेंका. 18000 वोटों से जीत दर्ज की और लगातार चौथी बार विधायक बन गया



अनंत सिंह ने भले ही जीत की हैट्रिक लगाई लेकिन इस बार सरकार का हाथ सिर पर नहीं था लिहाजा कानून की पकड़ अनंत पर मज़बूत होती चली गई. उसके घर पर छापे पड़े, हथियार और गोला बारूद बरामद हुआ. दूसरी ओर 3 साल जेल में रहने के बाद जब अनंत सिंह बाहर आया तो उसने सूरजभान की नई सियासी ज़मीन को निशाना बनाने का ऐलान कर दिया.


साल 2019


मुंगेर की सियासी ज़मीन अब तक सूरजभान के पास थी लेकिन जब यहां से चुनाव लड़ने का अनंत सिंह ने ऐलान किया तो बदले सियासी समीकरण में सीट जेडीयू को चली गई और यहां से सियासी समर में उतरे अब तक अनंत सिंह से सिरपरस्त रहे और सूरजभान के एंटी चलनेवाले ललन सिंह, कांग्रेस के टिकट पर अनंत ने अपनी पत्नी नीलम देवी को उतारा लेकिन बदले सियासी समीकरण कहिए या कुछ और अनंत सिंह को पहली बार हार का सामना करना पड़ा, ललन सिंह ने बाज़ी मार ली.


 


दूसरी तरफ मुंगेर लोकसभा सीट से ललन सिंह के उतरने के बाद सूरजभान को लोक जन शक्ति पार्टी के हिस्से में आई सीट नवादा से अपने भाई चंदन सिंह के लिए टिकट मिला. और यहां से चंदन सिंह ने भारी अंतर से जीत दर्ज की है.



अनंत सिंह और सूरजभान सिंह के परिवार में अदावत की जंग आज भी जारी है हालांकि अब ये जंग बुलेट की जगह बैलेट से होती है लेकिन गाहे-बगाहे ये दुश्मनी खूनी रंग भी दिखाती है. सियासत का साया अभी भी इनके साथ है. कहना मुश्किल है कि वर्चस्व की जंग कब ख़त्म होगी.


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