नई दिल्ली: Haryana Vidhan Sabha Chunav 2024: एक दौर हुआ करता था जब चौटाला परिवार का हरियाणा की राजनीति में तूती बोला करती थी. लेकिन परिवार में हुई टूट के बाद इनका राजनीतिक रसूख लगातार घटता चला गया. चौधरी देवीलाल की विरासत कई हिस्सों में बंट गई और उनके परिवार के सदस्य अब INLD से बाहर JJP और कांग्रेस में भी जा चुके हैं. पहले INLD ही पूर्व डिप्टी PM चौधरी देवीलाल की विरासत मानी जाती थी. प्रदेश में इस पार्टी की सरकार थी. लेकिन अब स्थिति ऐसी है कि INLD सूबे में बसपा से भी छोटा दल बन गया है. 


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BSP से भी छोड़ा दल बना INLD?
इस बार के विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) का बहुजन समाज पार्टी (BSP) के साथ गठबंधन है. INLD प्रदेश की 30 और BSP 38 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. जबकि साल 2005 तक प्रदेश में INLD सत्ता का केंद्र हुआ करती थी. 2019 में तो स्थिति ऐसी बन गई कि पार्टी केवल 1 विधानसभा सीट जीत पाई. चौटाला परिवार के कई दिग्गज चुनाव हार गए थे.


2005 के बाद गिरता गया पार्टी का ग्राफ
चौधरी देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला ने अपने पांच भिन्न कार्यकालों में 2,245 दिनों तक हरियाणा में शासन चलाया है. 2 मार्च 2000 से 5 मार्च 2005 तक उनका सबसे लंबा कार्यकाल रहा. लेकिन 2005 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी का जनाधार लगातार घटता जा रहा है. पार्टी का ग्राफ बीते 19-20 साल में पार्टी का ग्राफ गिरता चला गया.   


घटते जनाधार के क्या कारण रहे?
पारिवारिक कलह: चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के बेटे अभय और अजय के बीच हुई अदावत ने INLD को सबसे बड़ा धक्का पहुंचाया. अजय चौटाला ने बेटे दुष्यंत के साथ जननायक जनता पार्टी (JJP) नाम से अलग पार्टी बना ली, जिसे 2019 में सहानुभूति वोट मिला. इसका सीधा नुकसान INLD को हुआ और पार्टी एक सीट पर सिमट गई.


नेताओं ने की बगावत: INLD को बागी नेताओं के जाने से भी खूब नुकसान हुआ. एक दौर था जब INLD के पास प्रदेश में ऐसे नेता थे, जिनके पास खुद का वोट बैंक हुआ करता था. लेकिन ये एक-एक करके पार्टी छोड़कर चले गए. कभी INLD में रहे 31 नेता अब भाजपा और कांग्रेस की टिकट पर चुनावी मैदान में हैं. इनमें विधायक और मंत्री रहे नेता भी शामिल हैं


जाट वोट बैंक में बिखराव: पूरे देश में जाटों का रुझान कांग्रेस की ओर रहा है. लेकिन पश्चिमी यूपी में चौधरी चरण सिंह और हरियाणा में चौधरी देवीलाल जाट वोटों के बड़े ठेकेदार माने जाते थे. इन इलाकों के जाट कांग्रेस के मूल वोटर नहीं थे. इसका फायदा INLD को मिला, जाटों ने इस पार्टी को प्राथमिकता दी. लेकिन JJP के बनने के बाद जाट वोट बिखर गए, इससे पहले भूपेंद्र हुड्डा ने भी इस वोट बैंक में सेंध लगाया और कांग्रेस के पक्ष में लेकर आए. प्रदेश की 90 में से 32 सीटों पर हार-जीत का फैसला जाट वोटर करता है.


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