पढ़िए बंग, बांग्ला और बंगाल की पहचान रहे ऐतिहासिक `ब्रिगेड परेड ग्राउंड` की दास्तां
जानिए पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के आगाज का बिगुल बजने के बाद राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बने कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड ग्राउंड की कहानी.
कोलकाता: भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच 'सोनार बांग्ला' और 'हमार बांग्ला' के लिए हो रही कांटे की टक्कर के बीच कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड मैदान पर रविवार को लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन ने हजारों समर्थकों की मौजूदगी में इस सियासी जंग में अपनी मौजूदगी भी दर्ज करा दी. ऐसे में सबकी नजरें ब्रिगेड परेड मैदान की बूढ़ी आंखों में उस इतिहास की झलक ढूंढने में जुट गईं जिसने बंगाल के साथ-साथ देश के इतिहास को कई बार बदलते देखा है.
अंग्रेजों ने किया था इस मैदान का निर्माण
1857 में प्लासी का युद्ध जीतने के बाद अंग्रेज बहादुर बंगाल के मालिक बन गए. मालिक आए तो महल भी बना. नाम दिया फोर्ट विलियम. इंग्लैंड में विलियम बाबू विलियम सीरीज के तीसरे राजा थे. इस किले में राजा खुद नहीं रहते थे उनकी फौज रहती थी. अब फौज है तो परेड भी होगी. तो किले के सामने एक मैदान बना नाम दिया ब्रिगेड परेड ग्राउंड.
सेना की पूर्वी कमान का है यहां मुख्यालय
जब अंग्रेज राज का अस्त हुआ. तो किला भारतीय सेना के कब्जे में आ गया. अब यहां पूर्वी कमान का मुख्यालय है और किले के सामने का ब्रिगेड परेड ग्राउंड सरकार की संपत्ति. देश में ऐसे बड़े मैदानों की दो पहचान है. पहली खेलने के लिए दूसरी सत्ताधीनों को ठेलने के लिए लिए. याद करिए पटना का गांधी मैदान जिसने नारा दिया कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है और याद करिए दिल्ली का रामलीला मैदान जो जिन्ना से अन्ना तक बदलते इतिहास का गवाह है. तो कोलकाता का ब्रिगेड परेड ग्राउंड खेलने नहीं, ठेलने वाली कैटगरी में आता है.
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1919 में हुई थी पहली राजनीतिक रैली
देश की आजादी के पहले ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर पहली राजनीतिक रैली 1919 में हुई. चितरंजन दास और दूसरे स्वतंत्रता सेनानी रौलट एक्ट के विरोध में इस मैदान में जुटे. ऑक्टरलोनी स्मारक के पास इन क्रांतिवीरो ने बैठक की. ऑक्टरलोनी स्मारक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कमांडर सर डेविड ऑक्टरलोनी के याद में बनवाया गया था. ऑक्टरलोनी ने 1804 में हुए एंग्लों-नेपाली युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व किया. अब इस स्मारक को शहीद मीनार कहा जाता है.
इस ग्राउंड का राजनीतिक इस्तेमाल हो सकता है, ये गुण सबसे पहले पहचाना उस वाम ने जिसका आधुनिक राजनीतिक दौर में काम तमाम हो चुका है. 29 जनवरी 1955 को इस मैदान पर सोवियत प्रीमियर निकोल एलेक्जेंड्रोविच और सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के पहले सचिव ख्रु्श्चेव का पर स्वागत हुआ. स्वागतकर्ता थे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उस दौर में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री विधान चंद्र रॉय. हां, वही विधान चंद्र राय जिनके नाम पर डॉक्टर्स दिवस मनाया जाता है.
मुजीबुर रहमान ने यहीं दिया था जय भारत-जय बांग्ला का नारा
6 फरवरी 1972 को इस परेड मैदान पर एक और रैली हुई. 10 लाख लोग जुटे. मंच पर थे बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान और भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी. ये वो दौर था जब पश्चिम बंगाल पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश से दिल से जुड़ा था. हमारे सैनिकों ने आजाद बांग्लादेश के निर्माण में बलिदान दिया था. माहौल बहुत ही भावनात्मक था. बंग बंधु मुजीबुर रहमान ने नारा दिया जय भारत-जय बांग्ला.
अब देश आपातकाल के दौर में पहुंच चुका था. 1977 में केंद्र और पश्चिम बंगाल दोनों जगहों पर कांग्रेस की हार हुई. बंगाल में वामदल सत्ता में आया. देश में कांग्रेस के अलावा दूसरी पार्टियों के अस्तित्व का उदय होने लगा. मोर्चे बनने लगे. 1984 में ब्रिगेड परेड ग्राउंड में रैली हुई. ज्योति बसु. एन टी रामाराव, रामकृष्ण हेगड़े, फारुक अब्दुल्ला, चंद्र शेखर और इएमएस नंबूदरी पाद इस रैली में शामिल हुए. परेड ग्राउंड उस विचार का गवाह बना जो गैर कांग्रेसी सत्ता के गठजोड़ को तैयार कर रहा था.
बोफोर्स घोटाले की भी इस मैदान पर सुनाई दी थी गूंज
इस रैली के बाद साढ़े चार साल बाद देश में सियासी भूचाल आया. वी पी सिंह ने राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स घोटाले का आरोप लगा कर राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा दे दिया और जनमोर्चा का चेहरा बनकर उपचुनाव में इलाहाबाद से बड़ी जीत हासिल की. इस मोर्च को मुकाबले में बनाए रखने के लिए वी पी सिंह ने दूसरे नेताओं के साथ परेड ब्रिगेड ग्राउंड पर एक बड़ी रैली की.
ये रैली मौके वाले राजनीतिक समभाव की मिसाल थी. क्योंकि सत्ता के खिलाफ विरोधी विचराधाराओं का मेल हो रहा था. मंच पर बैठे नेताओं के नाम पढ़िए.. विरोधी विचारधाओं के मेल वाली बात साफ हो जाएगी. ब्रिगेड परेड ग्राउंड में बने मंच पर अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडीज मधु दंडवते, वी पी सिंह और ज्योति बसु मौजूद थे.
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1992 में कांग्रेस की ममता का हुआ था उदय
1980 और 90 के मध्य में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का का राजनीतिक कद क्षितिज से क्षत्रप की ओर बढ़ रहा था. अब तक ममता का मिलन बंगाल के तृण-मूल और माटी-मानुष से नहीं हुआ था. उनके किरदार की पहचान कांग्रेस थी. 25 नवंबर 1992 को ब्रिगेड परेड मैदान पर एक रैली हुई. रैली की मुख्य संयोजक ममता बनर्जी थीं.
कांग्रेस ने सीपीएम के खिलाफ ममता को चेहरा बनाया. ममता की छवि थी सीपीआई एम के खिलाफ 'मृत्यु घंटा' यानी मौत का नाद. वो नाद ब्रिगेड परेड मैदान में गूंजा. ममता बंगाल में वाम दलों का काल बन गईं, साथ में काल कवलित (काल का आहार) कांग्रेस भी हुई.
ममता बनर्जी इस नारे के साथ सत्ता में आईं. बदला नहीं बदलाव चाहिए. वो बदलाव हुआ या नहीं, ये बंगाल की जनता तय करे, लेकिन बंग भूमि में सियासी बदलाव की जो तस्वीरें ब्रिगेड परेड ग्राउंड ने देखीं. वो विलियम साहब के नाम पर बने किले के कंगूरों में शायद जरूर गूंजती होंगी.
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