नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव के तारीखों की घोषणा कर दी है. तारीख को भारत के अगले राष्ट्रपति के लिए चुनाव आयोजित कराया जाएगा. बता दें कि मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है. ऐसे में आपको यहां समझने की जरूरत है कि राष्ट्रपति चुनाव की पूरी प्रक्रिया क्या है. बता दें, आने वाली 18 जुलाई को मतदान होगा और 21 जुलाई को नतीजा आएगा.


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कैसे कराया जाता है राष्ट्रपति का चुनाव?


भारत के राष्ट्रपति के लिए चुनाव का आयोजन चुनाव आयोग के द्वारा किया जाता है. भारतीय राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से एक निर्वाचक मंडल प्रणाली के माध्यम से किया जाता है, जिसमें प्रत्येक राज्यों के चुने गए विधायक और लोक सभा तथा राज्य सभा के सांसद अपने वोट डालते हैं. यहां पर यह जान लेना जरूरी है कि, राष्ट्रपति के चुनाव में राज्यसभा के मनोनीत सांसद भाग नहीं लेते हैं. 


राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को मतदान से पहले नामांकन करना होता है, जहां उम्मीदवार चुनाव में खड़े होने का इरादा प्रस्तुत करता है और 50 प्रस्तावकों एवं 50 समर्थकों की हस्ताक्षरित सूची के साथ नामांकन दाखिल करता है. यह 50 प्रस्तावक और समर्थक 50 अलग अलग विधायक और सांसद हो सकते हैं. एक मतदाता एक से अधिक उम्मीदवारों के नामांकन का प्रस्ताव या समर्थन नहीं कर सकता है. 


चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज करता है वोटिंग


राष्ट्रपति को इलेक्टोरल कॉलेज चुनता है जिसमें लोकसभा, राज्यसभा के सांसद और अलग अलग राज्यों के विधायक होते हैं. भारत में राष्ट्रपति का चुनाव यही इलेक्टोरल कॉलेज करता है, जिसमें इसके सदस्यों का प्रतिनिधित्व आनुपातित होता है. यहां पर उनका सिंगल वोट ट्रांसफर होता है, पर उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती है. 


राष्ट्रपति का चुनाव सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने गए सदस्य और लोकसभा तथा राज्यसभा में चुनकर आए सांसद अपने वोट के माध्यम से करते हैं. भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में एक विशेष तरीके से वोटिंग होती है. इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं. यानी एकल स्थानंतर्णीय प्रणाली. सिंगल वोट यानी वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकी से वोट देता है. यानी वह बैलेट पेपर पर यह बताता है कि उसकी पहली पसंद कौन है और दूसरी, तीसरी कौन.


राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर करता है वोट


राष्ट्रपति चुनाव की सबसे खास बात यह है कि, इसमें प्रत्येक वोट का मूल्य अलग अलग होता है. राज्यसभा और लोकसभा के प्रत्येक सांसद के वोट का मूल्य 708 निश्चित है. विधायकों के वोट का मूल्य अलग-अलग राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर करता है. वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का महत्व अलग-अलग होती है. इसे वेटेज भी कहा जाता है.


दो राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग अलग होता है. यह वेटेज राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय किया जाता है और यह वेटेज जिस तरह तय किया जाता है, उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं.


सांसदों के मतों के वेटेज का तरीका कुछ अलग है. सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने गए सदस्यों के वोटों का वेटेज जोड़ा जाता है. अब इस सामूहिक वेटेज को लोकसभा के चुने हुए सांसदों और राज्यसभा की कुल संख्या से भाग दिया जाता है. इस तरह जो अंक मिलता है, वह एक सांसद के वोट का वेटेज होता है. अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता हो तो वेटेज में एक का इजाफा हो जाता है.


अधिक वोट नहीं वेटेज से तय होता है नतीजा


भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती है. राष्ट्रपति वही बनता है, जो वोटरों यानी सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करे. यानी इस चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले को कितना वोट चाहिए.


इस समय राष्ट्रपति चुनाव के लिए जो इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सदस्यों के वोटों का कुल वेटेज 10 लाख 98 हजार 882 है. जीत के लिए प्रत्याशी को हासिल 5 लाख 49 हजार 442 वोट करने होंगे. जो प्रत्याशी सबसे पहले यह वोट हासिल करता है, वह राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा.


पहले उस कैंडिडेट को रेस से बाहर किया जाता है, जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले. लेकिन उसको मिले वोटों में से यह देखा जाता है कि उनकी दूसरी पसंद के कितने वोट किस उम्मीदवार को मिले हैं. फिर सिर्फ दूसरी पसंद के ये वोट बचे हुए उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं. यदि ये वोट मिल जाने से किसी उम्मीदवार के कुल वोट तय संख्या तक पहुंच गए तो वह उम्मीदवार विजयी माना जाता है. अन्यथा दूसरे दौर में सबसे कम वोट पाने वाला रेस से बाहर हो जाएगा और यह प्रक्रिया फिर से दोहराई जाएगी. इस तरह वोटर का सिंगल वोट ही ट्रांसफर होता है.


भारतीय गणराज्य की शासन सत्ता को सही से चलाने में राष्ट्रपति की बेहद ही अहम और महत्वपूर्ण भूमिका होती है. राष्ट्रपति को देश का प्रथम नागरिक भी कहा जाता है. भारतीय शासन व्यवस्था को राष्ट्रपति के नाम से ही प्रधानमंत्री द्वारा संचालित किया जाता है. ससंद से पारित कोई भी बिल, कानून या नियम तब तक लागू नहीं हो सकता जब तक कि उसे राष्ट्रपति की मंजूरी ना मिल जाए. 


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