मुलायम सिंह यादव की तरह बहू डिंपल के लिए सहज नहीं है मैनपुरी जीतना, जानें कारण
उपचुनाव के लिए पांच दिसंबर को मतदान और आठ दिसंबर को मतगणना होगी. कई स्थानीय लोगों का मानना है कि सपा संस्थापक के निधन के बाद डिंपल यादव जनता की सहानुभूति के चलते उनकी परंपरा को बरकरार रखेंगी. मुलायम सिंह का 10 अक्टूबर को निधन हो गया और उनके निधन के बाद हो रहे मैनपुरी उपचुनाव में डिंपल यादव को पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया गया.
मैनपुरी: मैनपुरी संसदीय सीट पर हो रहे उपचुनाव में उनकी पुत्रवधू डिंपल यादव पार्टी की उम्मीदवार हैं. समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यह सीट रिक्त हुई. स्थानीय लोगों की मानें तो अपने ससुर मुलायम सिंह यादव की तरह डिंपल के लिए जीत की राह उतनी आसान नहीं है. उपचुनाव के लिए पांच दिसंबर को मतदान और आठ दिसंबर को मतगणना होगी.
क्या सहानुभूति लहर मददगार होगी
कई स्थानीय लोगों का मानना है कि सपा संस्थापक के निधन के बाद डिंपल यादव जनता की सहानुभूति के चलते उनकी परंपरा को बरकरार रखेंगी. बता दें कि मुलायम सिंह का 10 अक्टूबर को निधन हो गया और उनके निधन के बाद हो रहे मैनपुरी उपचुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया गया.
भाजपा पूरी कोशिश कर रही
व्यवसायी धीरेंद्र कुमार गुप्ता ने कहा, ‘‘डिंपल यादव के लिए निश्चित रूप से उपचुनाव आसान नहीं होगा, क्योंकि भाजपा सपा से सीट छीनने की पूरी कोशिश कर रही है. भाजपा नेता पहले से ही शहर में डेरा डाले हुए हैं.’’ गुप्ता ने कहा, ‘‘भाजपा उम्मीदवार रघुराज सिंह शाक्य औपचारिकता के तौर पर मतदाताओं से मिल रहे हैं और उनका अभिवादन कर रहे हैं.’’
उन्होंने कहा कि जब तक भाजपा कार्यकर्ता घर-घर जाकर प्रचार नहीं करेंगे, शाक्य के लिए जीतना मुश्किल होगा. गुप्ता ने कहा, ‘‘नेता जी और उनके बेटे अखिलेश यादव के बीच कोई तुलना नहीं हो सकती, क्योंकि मुलायम सिंह प्रत्येक मतदाता को जानते थे. हालांकि, अखिलेश यादव निर्वाचन क्षेत्र के कमोबेश हर घर में जा रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि वे उपचुनाव में विजयी होकर उभरें.’’
गुप्ता ने कहा कि यदि स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता मतदाताओं से जुड़ाव बनाने में विफल रहते हैं तो लखनऊ से मंत्रियों सहित वरिष्ठ नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए लाने से कम प्रभाव पड़ेगा.
‘नेता जी’ की अनुपस्थिति
होटल व्यवसायी हेमंत पचौरी ने कहा कि यह उपचुनाव ‘नेता जी’ की अनुपस्थिति के कारण भाजपा के लिए मैनपुरी में सपा के किले को तोड़ने का सबसे अच्छा मौका है. अगर सपा इस बार सीट हारती है तो यह उनके राजनीतिक ताबूत में आखिरी कील साबित होगी. सत्ता में रहने के दौरान सपा ने शहर में गुंडागर्दी की थी और लोग खुद को परेशान महसूस कर रहे थे. अब नजारा बदल गया है.’’
‘‘डिंपल यादव के लिए कोई सहानुभूति नहीं है’’
एक और स्थानीय व्यापारी के. के. गुप्ता ने कहा, ‘‘डिंपल यादव के लिए कोई सहानुभूति नहीं है, क्योंकि जब सपा सत्ता में थी तो लोग उसके कुशासन से तंग आ चुके थे.’’ राज्य में भाजपा सरकार के सत्ता में आने और अपराधियों की गिरफ्तारी के बाद लोगों ने राहत की सांस ली है. तब से अपराध के मामलों में कमी आई है.’’
भूपेंद्र सिंह ने भी सपा के लिए सहानुभूति की लहर से इनकार किया और कहा कि भाजपा उपचुनाव में ‘‘इतिहास रचेगी’’ और यह सीट जीतेगी. उन्होंने दावा किया, ‘‘अखिलेश यादव के लिए सहानुभूति उस दिन गायब हो गई, जब उन्होंने परिवार में झगड़े के बाद अपने पिता से पार्टी की बागडोर संभाली. डिंपल या सपा के लिए बिल्कुल भी सहानुभूति नहीं है.’’
एक स्वयंभू ‘समाजवादी तपस्वी’ श्याम बहादुर यादव ने इन टिप्पणियों को खारिज कर दिया और कहा कि मैनपुरी के लोग सपा और विशेष रूप से ‘‘सैफई परिवार’’ को पूरे दिल से समर्थन दे रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘यह मैनपुरी के लोग हैं जो चुनाव लड़ रहे हैं. चुनाव महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ‘नेता जी’ के निधन के बाद हो रहा है और मैनपुरी के लोग डिंपल को ही लोकसभा के लिए चुनेंगे.’’
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