Batenge Toh Katenge: योगी ने `बंटेंगे तो कटेंगे` से महाराष्ट्र में किया सेल्फ गोल? ना घरवाले खुश और ना ही बाहरवाले!
Batenge Toh Katenge in Maharashtra: महाराष्ट्र में योगी आदित्यनाथ के नारे `बंटेंगे तो कटेंगे` की खिलाफत हो रही है. उनके सहयोगी दलों के अलावा, पार्टी के कुछ नेता भी इस नारे के समर्थन में नहीं हैं. हालांकि, यही नारा हरियाणा चुनाव में हिट रहा था.
नई दिल्ली: Batenge Toh Katenge in Maharashtra: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का 'बंटेंगे तो कटेंगे' नारा खूब ट्रेंड कर रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी रैलियों में इस नारे का इस्तेमाल किया है. इसकी चर्चा महाराष्ट्र से लेकर यूपी तक है. यूपी उपचुनाव, झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान इस नारे का इस्तेमाल हो रहा है. लेकिन अब ये नारा महाराष्ट्र में भाजपा के सहयोगियों को रास नहीं आ रहा. इससे ना तो भाजपा के अंदर के कुछ नेता खुश और ना ही भाजपा के कुछ सहयोगी.
योगी पहले भी दे चुके ये नारा
ये पहली बार नहीं है जब यूपी के CM योगी आदित्यनाथ ने 'बंटेंगे तो कटेंगे' का नारा चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किया है. इससे पहले वे हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान भी ये कह चुके हैं. CM योगी ये नारा बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए भी कह चुके हैं. अगस्त 2024 में आगरा में वीर दुर्गादास राठौर की प्रतिमा का अनावरण करते हुए योगी ने कहा- राष्ट सर्वोपरि है. राष्ट्र से बढ़कर कुछ नहीं. लेकिन यह तभी संभव है, जब हम सब एक साथ रहेंगे. हम बटेंगे तो कटेंगे. बांग्लादेश में क्या हो रहा है, देख रहे हो न. ऐसी गलती यहां नहीं होनी चाहिए. एक रहेंगे तो सुरक्षित रहेंगे.
महाराष्ट्र की तासीर अलग
महाराष्ट्र की तासीर बाकी राज्यों से अलग है. यहां पर योगी का ये नारा भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रहा है. दरअसल, यहां पर भाजपा के सहयोगी दल मुस्लिम वोट बैंक पर भी निर्भर हैं. लिहाजा, वे जानते हैं कि योगी के इस नारे से डायरेक्ट उनके वोट बैंक पर असर पड़ेगा. यही कारण है कि कुछ नेताओं ने इसका खुलकर विरोध किया है. इतना ही नहीं, भाजपा के नेताओं को भी 'बंटेंगे तो कटेंगे' का नारा रास नहीं आया है.
BJP के ये नेता नहीं रखते इत्तेफाक
पंकजा मुंडे: महाराष्ट्र में भाजपा की दिग्गज नेता पंकजा मुंडे ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे का विरोध किया. पंकजा ने कहा- मैं इस नारे का समर्थन नहीं करती. महाराष्ट्र में इस तरह की राजनीति की जरूरत नहीं है. मेरी सियासत अलग है. मैं भाजपा से जुड़ी हूं, इसका मतलब ये नहीं कि मैं इस नारे का समर्थन करती हूं. मेरा मानना है कि हमें विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहिए. एक नेता का काम है भूमि पर रह रहे प्रत्येक जीवित व्यक्ति को अपना बनाना. हमें महाराष्ट्र में ऐसा कोई मुद्दा लाने की जरूरत नहीं है.
अशोक चव्हाण: भाजपा के राज्यसभा सांसद अशोक चव्हाण ने भी इस नारे की खिलाफत की. वे कांग्रेस से भाजपा में आए थे. चव्हाण ने कहा- 'बंटेंगे तो कटेंगे' का नारा अप्रासंगिक है. महाराष्ट्र की जनता इसे पसंद नहीं करेगी. मैं निजी तौर पर ऐसे नारे के खिलाफ हूं, यह समाज के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है. हमें ये देखना होगा कि इस नारे से किसी की भावनाएं आहत न हों.
BJP के ये सहयोगी भी नारे के खिलाफ
एकनाथ शिंदे: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे भी इस नारे से किनारा कर चुके हैं. उन्होंने कहा- महाराष्ट्र में इस तरह की राजनीति नहीं हो सकती. हमारी पार्टी विकास कार्य और कल्याणकारी योजनाओं के मुद्दे पर चुनाव में उतरी है. हम इसी पर चुनाव लड़ रहे हैं. लोकतंत्र में एक होकर वोटिंग करेंगे, ज्यादा से ज्यादा वोटिंग करें.
अजित पवार: NCP नेता और प्रदेश के डिप्टी CM अजित पवार ने इस नारे की सबसे पहले खिलाफत की. अजित पवार ने कहा- महाराष्ट्र ने कभी सांप्रदायिक विभाजन को स्वीकार नहीं किया. यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश में जनता की सोच अलग है, लेकिन ये बयान महाराष्ट्र में नहीं चलते. मेरी राय में महाराष्ट्र में ऐसे नारों का इस्तेमाल कोई मायने नहीं रखता. हमारा नारा 'सब का साथ और सब का विकास' है. यदि कोई अगर कोई शाहूजी, शिवाजी, फुले और बाबा साहेब आंबेडकर की विचारधारा से भटकेगा, तो महाराष्ट्र उसको नहीं बख्शेगा.
महाराष्ट्र के नेताओं को क्यों रास नहीं आया ये नारा?
दरअसल, महाराष्ट्र में भाजपा को छोड़कर सभी दलों ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. 420 मुस्लिम कैंडिडेट चुनाव लड़ रहे हैं. महाविकास अघाड़ी (कांग्रेस, NCP-शरद, शिवसेना-उद्धव) ने 14 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. जबकि महायुति (भाजपा, शिवसेना-शिंदे, NCP-अजित) ने 7 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. सूबे की 288 विधानसभा सीटों में 60 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. यहां पर 12 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. ये चुनाव शिवसेना-शिंदे और NCP-अजित पार्टी के लिए मरने-जीने का चुनाव बन गया है. यही चुनाव दोनों पार्टियों के असली-नकली होने को तय करेगा. लिहाजा, इन दलों को एक-एक वोट की जरूरत है. NCP-अजित पवार का तो मुस्लिम समुदाय कोर वोट बैंक रहा है.
ये भी पढ़ें- Phalodi Satta Bazar: राजस्थान के दौसा में BJP भारी या Congress, फलोदी सट्टा बाजार का क्या अनुमान?
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.