नई दिल्ली: Sharad Pawar and Ajit Pawar: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के नतीजे करीब-करीब स्पष्ट हो गए हैं. महायुति गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला है. जबकि महाविकास अघाड़ी बुरी हार की ओर बढ़ रहा है. आलम ये है कि MVA नेता प्रतिपक्ष चुनने जितनी सीटें भी नहीं ला पा रहा है. नतीजों से सबसे अधिक निराश शरद पवार होंगे, ये उनकी राजनीति की आखिरी वक्त है, जिसे भतीजे अजित पवार ने बेहद मुश्किल डगर पर ला दिया है. 
 
चाचा से भतीजा आगे
शरद पवार की पार्टी महाविकास अघाड़ी का हिस्सा है, जो 86 सीटों पर चुनाव लड़ी. NCP (शरद गुट) की स्ट्राइक रेट लोकसभा चुनाव में 80% रही थी. तब वे 10 में से 8  सीटों पर जीते थे. लेकिन विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी 13 सीटों पर ही बढ़त हासिल करती दिख रही है. जबकि अजित पवार के नेतृत्व वाली पार्टी NCP 59 में से करीब 35 सीटों पर आगे चल रही है. 


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अजित पवार के चक्रव्यूह में कैसे फंसे चाणक्य?
महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों में यह साफ़ दिख रहा है कि अजित पवार ने चाचा शरद पवार की लिगेसी छीन ली है. आइए, जानते हैं कि अजित पवार ने शरद पवार को कैसे मात दी?


1. चाचा सम्मानित रहे: अजित पवार ने अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पहले ही कह दिया था कि था कोई भी चाचा शरद पवार पर जुबानी हमला नहीं बोलेगा. अजित जानते थे कि NCP के कोर वोटर अब भी शरद पवार से कनेक्ट फील करते हैं. चाचा के खिलाफ कुछ बोलना उन्हें महंगा पड़ सकता है. कई मौकों पर शरद और अजित की मुलाकात भी हुई, इससे वोटर्स में ये भी संदेश गया कि चाचा के भजने से ही भतीजा NDA में गया है.


2. सूबे में दादा, केंद्र में ताई: अजित पवार के समर्थन में एक नारे ने खूब काम किया. नारा था 'अजित दादा राज्य में, सुप्रिया ताई केंद्र में'. इससे अजित ये संदेश देने में कामयाब रहे कि ये विरासत की लड़ाई नहीं है. शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले को केंद्र में सेट कर दिया गया है, भतीजे अजित पवार को राज्य में सेट कर दिया जाएगा. लोगों के सेंटीमेंट को छूते हुए अजित ने अपनी नैया पार लगा ली.


3. मुस्लिम वोटों को नहीं छोड़ा: अजित पवार भले भाजपा के नेतृत्व वाले NDA में चले गए, लेकिन उन्होंने अपने मूल वोटर से नाता नहीं छोड़ा. जब योगी आदित्यनाथ ने 'बटेंगे तो कटेंगे' का नारा दिया, तब अजित ने इसका सबसे पहले विरोध किया. बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी को भी टिकट दिया. अजित ने अपनी पार्टी के कई उम्मीदवारों का प्रचार भाजपा के नेताओं से नहीं कराया, ताकि उनका मूल वोट बैंक न छिटके.  



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