नई दिल्ली: ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में शानदार वापसी करके भाजपा के सपने को चकनाचूर कर दिया है. कांग्रेस-लेफ्ट का सूपड़ा साफ हो गया है और इस पूरे खेला में एक इकलौती ममता बनर्जी ने पूरे विपक्ष को मात दे दी है. हालांकि ममता बनर्जी खुद नंदीग्राम सीट से चुनाव हार गई हैं.


बंगाल में खेला हो गया


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बंगाल में ऐसा खेला हुआ कि तमाम पाबंदियों के बावजूद जश्न रोका न जा सका. बंगाल की एक बेटी ने सत्ता की सियासत में तीसरी बार फतेह का परचम लहरा दिया था. दीदी ने राजनीति के दंगल में ऐसे दांव लगाये कि हिंदुस्तान की अपराजेय समझी जाने वाली राजनीतिक ताक़तें भी टिक न सकीं.


2 मई को दीदी नहीं गई. पश्चिम बंगाल के 8 चरणों वाले चुनाव को दीदी ने अपने एक चोटिल चरण से ऐसा नचाया कि 2 मई के नतीजे टीएमसी-टीएमसी हो गए. दरअसल बंगाल के चुनाव में दीदी ने पांच दांवों का इस्तेमाल किया. ममता बनर्जी की बंगाल विजय गाथा में उन पांच वजहों का जिक्र किया जाए तो


5 दांव से जीती दीदी!


चोट
गोत्र
मंत्र
मुसलमान
कोरोना


1). चोट से मिला वोट!


बैटल ऑफ बंगाल के सुपर ग्राउंड नंदीग्राम में जब ममता बनर्जी के पांव में चोट लगी तो ममता ने चुनावी रणनीति का सबसे बड़ा दांव चल दिया. तब चुनाव प्रचार ज़ोर पकड़ चुका था. मार्च का पूरा दूसरा हफ्ता चुनावी बंगाल में ममता बनर्जी के चोटिल चरण चर्चा में रहे. भारी-भरकम इलाज हुआ, उससे भी जबरदस्त सियासत हुई और जब ममता बनर्जी व्हील चेयर पर मैदान में लौटीं तो माहौल बदलने लगा.



दीदी ने कहा कि बीजेपी ने पांव तोड़ दिया लेकिन एक पैर से ही उन्हें हराऊंगी. अपने जख्मी पांव से चुनावी जंग लड़ रही ममता ने पैरों पर बंधी पट्टी का बखूबी इस्तेमाल किया. न रैलियों में कमी हुई, न कार्यक्रम कम हुए. ममता ने व्हील चेयर का साथ नहीं छोड़ा और जनता ने ममता का साथ नहीं छोड़ा.


2). जीत का फूंका 'मंत्र'!


कभी जयश्रीराम का नारा सुनकर मंच पर ही नाराज होने वाली ममता ने बंगाल की चुनावी लड़ाई में हिंदुत्व की पिच पर गुगली फेंकी थी. नंदीग्राम के जिस हिंदू वोट के जरिये ममता को शिकस्त देने की तैयारी थी. उस पर ममता के मंत्रों ने ऐसा जादू किया कि बंगाल के वोटर्स ने ब्राह्मण की बेटी को खारिज करने का मूड शायद बदल दिया. वरना जिस नंदीग्राम में टीएमसी का मतलब शुवेंदु अधिकारी और शुवेंदु अधिकारी का मतलब चुनावी जीत हुआ करती थी. उस नंदीग्राम में ममता बनर्जी इतनी कड़ी टक्कर नहीं दे पातीं.


3). गोत्र बना गेम चेंजर!


ममता बनर्जी ने ये ऐलान कर दिया कि वास्तव में मेरा गोत्र शांडिल्य है. 30 मार्च आते-आते ममता ने नंदीग्राम की जमीन पर गोत्रोच्चार तक कर डाला, क्योंकि ममता को पता था कि यही वो जमीन है जहां बंगाल में टीएमसी की सत्ता की साख दबी हुई है. अगर ये जमीन नहीं बची तो तृणमूल की जड़ें खोदी जा सकती हैं और इसीलिए ममता ने पूरे बंगाल की सियासत का एपिसेंटर नंदीग्राम को बना रखा था.



4). मुस्लिम बने सहारा!


जिस मुस्लिम वोटों के लिए ओवैसी बंगाल में पहुंचे, फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने ममता का साथ छोड़ दिया. वो एकतरफा ममता बनर्जी को जीत दिलाने में कारगर साबित हुआ है.


बंगाल में कुल 294 विधानसभा सीट हैं. जिसमें 46 सीटों पर मुस्लिम आबादी 50% से ज्यादा है. ये मालदा और मुशर्दिबाद का इलाका है यहां ऊर्दू बोलने वालों की ज्यादा है. जबकि 16 सीटों पर 40-50% मुस्लिम वोटर हैं. 33 सीटें ऐसी हैं, जहां 30-40% मुस्लिम वोटर हैं. और 50 सीटे ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर 20-30% हैं. मतलब साफ है, बंगाल की सियासत में 145 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट बड़ा फैक्टर है. जो ममता दीदी के लिए संजीवनी साबित हुआ है.


2016 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने 211 सीटें जीती थी. जिसमें से 98 सीटें मुस्लिम बहुल थीं.


5). कोरोना ने दिया किनारा!


ममता बनर्जी की खुशकिस्मती कहें या भाजपा की बदकिस्मती... बंगाल चुनाव के दौरान कोरोना संक्रमण ने देश में जबरदस्त कोहराम मचाए रखा है. जिससे देशभर में मोदी सरकार की आलोचना हुई. ऑक्सीजन की कमी और अस्पतालों की बदहाली ने केंद्र सरकार को बैकफुट पर ला दिया. ये ममता के लिए किसी 'चुनावी वैक्सीन' से कम नहीं था.


एक नारी, सब पर भारी


एक तरफ अकेली ममता बनर्जी और दूसरी ओर नरेंद्र मोदी जैसी विराट शख्सियत. एक तरफ अकेली ममता बनर्जी, दूसरी ओर चुनावी राजनीति के चाणक्य अमित शाह. एक तरफ ममता बनर्जी, दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ जैसा फायर ब्रांड नेता. एक तरफ ममता बनर्जी, दूसरी ओर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा. एक तरफ ममता बनर्जी, दूसरी तरफ़ राजनाथ सिंह जैसे खांटी नेता तो स्मृति ईरानी जैसी तेज तर्रार वक्ता. लेकिन सब के सब दीदी के दांव के आगे पस्त हो गए.


ममता के बंगाल विजय को लेकर बीजेपी के रणनीतिकारों में भी सीधा संदेश यही है कि ममता ने हिंदुत्व से लेकर चरण की चोट तक जो दांव चले. वो शायद बीजेपी को भारी पड़ते गए.


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वैसे बीजेपी बंगाल में सत्ता की लड़ाई में भले चूक गई हो लेकिन चुनावी जंग में बीजेपी ने बड़ा हाथ मारा है और अगले 5 साल अब ममता और बीजेपी दोनों के सामने चुनौतियां बनी रहेंगी.


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