मनमोहन का पहला लोकसभा चुनाव ही बना आखिरी, लगा जैसे सियासी करियर का हुआ The End!
Manmohan Singh Lok Sabha Election: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने सियासी सफर में केवल एक बार ही लोकसभा चुनाव लड़ा है. जब नतीजे आए तो मनमोहन को लगा कि उनका सियासी करियर खत्म हो गया है.
नई दिल्ली: Manmohan Singh Lok Sabha Election: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का आज (3 अप्रैल, 2024) राज्यसभा कार्यकाल पूरा हो रहा है. मनमोहन करीब 33 साल राज्यसभा के सांसद रहे हैं. जब वे PM थे, तब भी राज्यसभा के ही सदस्य थे. आमतौर पर लोग प्रधानमंत्री रहते हुए लोकसभा से चुनकर आते हैं. लेकिन मनमोहन सिंह ने केवल एक ही बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था. आइए, जानते हैं उस चुनाव की पूरी कहानी.
जब लिया चुनाव लड़ने का फैसला
मनमोहन सिंह नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री थे. वित्त मंत्रालय को मनोमोहन ने अच्छे से चलाया, बड़े-बड़े नेता उनकी तारीफों के पुल बांधते थे. मनमोहन के रिश्ते तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और PM नरसिम्हा राव से अच्छे थे. 1999 का लोकसभा चुनाव आ गया था. मनमोहन को लगा कि बड़े नेता उनके पक्ष में हैं, उनका काम भी अच्छा रहा है. इसलिए यह चुनावी राजनीति में उतरने का सही वक्त है. उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना लिया था.
दिल्ली की सीट चुनी
मनमोहन सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए दक्षिणी दिल्ली की लोकसभा सीट चुनी. यहां पर मुस्लिम और सिखों को मिलाकर आबादी 50% के करीब थी. मुस्लिम कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है. सिख सरदार मनोमोहन सिंह से कनेक्ट फील करते थे. ये सोचकर मनमोहन को लगा कि यही सीट सबसे मुफीद है, वे चुनाव जीत जाएंगे.
भाजपा ने किसको उतारा?
भाजपा ने मनमोहन सिंह के सामने वीके मल्होत्रा को उतारा था. मल्होत्रा प्रदेश स्तर के नेता थे, मनमोहन की तरह उनकी राष्ट्रव्यापी पहचान नहीं थी. मल्होत्रा ने जनसंघ से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी. 1967 में वे मुख्य कार्यकारी पार्षद निर्वाचित हुए थे. तब इस पद की हैसियत मुख्यमंत्री के पद की जितनी मानी जाती थी. यही कारण है कि कुछ लोग उन्हें दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री भी कह देते हैं. भाजपा ने एक बार मल्होत्रा को शीला दीक्षित के सामने CM उम्मीदवार के तौर पर पेश किया था. लेकिन वे शीला को टक्कर नहीं दे पाए.
चंदा नहीं लेना चाहते थे मनमोहन
मनमोहन सिंह को चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस पार्टी से 20 लाख रुपये मिले थे. मनमोहन के पास कई फाइनैंसरों ने आने की कोशिश की, लेकिन वे दूर ही रहे. मनमोहन को लगा कि पैसे की क्या जरूरत है, पार्टी के कार्यकर्ता आराम से चुनाव जीतवा देंगे. चंदा लेना मनमोहन के उसूलों के खिलाफ था. तभी एक नेता ने आकर मनमोहन से कहा कि हम चुनाव हार रहे हैं. कार्यकर्ता साथ नहीं हैं, वे पैसे मांग रहे हैं. हमें चुनावी कार्यालय खोलना है, लोगों के खाने-पीने का इंतजाम करना है. बिना पैसे के ये सब नहीं हो सकता.
7 लाख रुपये पार्टी को लौटाए
मनमोहन सिंह ने थोड़ा गौर करने के बाद सालों से चली आ रही व्यवस्था को अपना लिया. उन्होंने चुनाव के लिए चंदा इकठ्ठा किया. फाइनैंसरों से भी मिले. तब कहीं जाकर उनका चुनाव उठा. चुनाव होने के बाद मनमोहन ने पार्टी फंड से बचे 7 लाख रुपये वापस लौटा दिए.
मनमोहन हार गए चुनाव
चुनाव के नतीजे आए तो मनमोहन को बड़ा धक्का लगा. वे करीब 30 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे. भाजपा प्रत्याशी विजय मल्होत्रा को 2.61 लाख वोट मिले. जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी मनमोहन सिंह को 2.31 लाख मत प्राप्त हुए. कहते हैं कि इस हार के बाद मनमोहन इतने निराश हुए कि उन्होंने लोकसभा चुनाव न लड़ने का फैसला किया. उनका लोकसभा जाने का सपना अधूरा ही रह गया. उन्हें लगा कि अब उनका सियासी करियर खत्म हो गया. लेकिन 2004 में वे देश के प्रधानमंत्री बने.
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