Rajya Sabha Cross Voting: 26 साल पहले हुई थी हिमाचल जैसी क्रॉस वोटिंग, दो खेमों में बंट गई थी कांग्रेस
Rajya Sabha Cross Voting: देश के तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की 15 राज्यसभा सीटों पर मंगलवार 27 फरवरी को मतदान हुए. इसमें भारतीय जनता पार्टी को 10 सीटें, कांग्रेस को 3 सीटें, तो समाजवादी पार्टी को 2 सीटों पर जीत मिली. राज्यसभा चुनाव में तीनों राज्यों से क्रॉस वोटिंग का मामला सामने आया है. हिमाचल प्रदेश में जहां कांग्रेस के 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की, तो वहीं उत्तर प्रदेश में सपा के 7 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है.
नई दिल्लीः देश के तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की 15 राज्यसभा सीटों पर मंगलवार 27 फरवरी को मतदान हुए. इसमें भारतीय जनता पार्टी को 10 सीटें, कांग्रेस को 3 सीटें, तो समाजवादी पार्टी को 2 सीटों पर जीत मिली. राज्यसभा चुनाव में तीनों राज्यों से क्रॉस वोटिंग का मामला सामने आया है. हिमाचल प्रदेश में जहां कांग्रेस के 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की, तो वहीं उत्तर प्रदेश में सपा के 7 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है.
क्रॉस वोटिंग से हारे अभिषेक मनु सिंघवी
क्रॉस वोटिंग की वजह से हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी को हार का सामना करना पड़ा. वहीं, उत्तर प्रदेश में सपा के तीसरे प्रत्याशी आलोक रंजन को हार का मुंह देखना पड़ा. बहरहाल, आपको यह बात जानकर आश्चर्य होगा कि राज्यसभा के चुनाव में क्रॉस वोटिंग की यह पहली घटना नहीं है, बल्कि इससे पहले भी क्रॉस वोटिंग हुई है. यहां तक की क्रॉस वोटिंग की वजह से पार्टियों में टूट भी पड़ी है.
1998 राज्यसभा चुनाव में हुई थी क्रॉस वोटिंग
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो आज से 26 साल पहले 1998 के राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग का पहला मामला सामने आया है. इस दौरान कांग्रेस का उम्मीदवार अपनी पार्टी के विधायकों का मत नहीं मिलने की वजह से हार गया था. यह घटना 1998 के महाराष्ट्र राज्यसभा चुनाव की है. कांग्रेस ने यहां अपने दो उम्मीदवारों नजमा हेपतुल्ला और राम प्रधान को खड़ा किया था. इस चुनाव में राम प्रधान को हार मिली थी.
शरद पवार को ठहराया गया था जिम्मेदार
राम प्रधान को मिली हार का ठीकरा शरद पवार के माथे फोड़ा गया था और पार्टी के 10 विधायकों, प्रफुल्ल पटेल समेत शरद पवार के सहयोगियों को कारण बताओं नोटिस सौंपा गया था. साथ ही 1999 के विधानसभा चुनाव में पवार के करीबियों को टिकट भी नहीं दिया गया था. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो तब पार्टी का कहना था कि पवार राम प्रधान की उम्मीदवारी के विरोध में थे. कहा जाता है कि इस चुनाव के बाद से ही शरद पवार ने अपनी अलग पार्टी बनाने का फैसला कर लिया था और 10 जून 1999 को एनसीपी का गठन किया.
सोनिया गांधी बनना चाहती थी प्रधानमंत्री
हालांकि, कई लोग यह भी दावा करते हैं कि 1999 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने की बात चल रही थी और पवार समेत कांग्रेस के कई दिग्गज नेता इससे सहमत नहीं थे. उनका कहना था कि एक विदेशी मूल के व्यक्ति को भारत का प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता है. शरद पवार ने साल 2018 में दिए अपने एक इंटरव्यू में यह स्पष्ट भी किया था कि उन्होंने कांग्रेस इसलिए छोड़ी थी क्योंकि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं.
ये भी पढ़ेंः राज्यसभा में कांग्रेस की हार से हिमाचल सरकार संकट में, विधानसभा में बहुमत के बावजूद हारे अभिषेक मनु सिंघवी
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.