पटना: एक तरफ बीजेपी ने '5 सूत्र, एक लक्ष्य, 11 संकल्प' के विजन डाक्यूमेंट को जारी किया और 19 लाख नौकरी देने का वादा किया. वहीं जेडीयू ने भी कौशल विकास कर लोगों को रोजगार देने का वादा किया है. और महागठबंधन में शामिल आरजेडी और कांग्रेस ने भी 10-10 लाख युवाओं को नौकरी देने की बात कही है. कुल मिलाकर सारी बातें सारे वादे रोज़गार को लेकर हैं.


बिहार चुनाव में नौकरी के वादों की बारिश


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वैसे तो किसी भी चुनाव के पहले राजनीतिक वादों की झड़ी लगाई जाती रही है, लेकिन बिहार में इस साल हो रहे विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल नौकरियों की बारिश कर रहे हैं. अगर इन दलों में से कोई एक भी सच में इतनी नौकरियां दिला सके, तो बिहार में पलायन की समस्या ही खत्म हो जाएगी.


महागठबंधन में शामिल आरजेडी और कांग्रेस ने बिहार के 10-10 लाख युवाओं को नौकरी देने का वादा किया हैकांग्रेस के घोषणा पत्र में 10 लाख युवाओं को रोजगार देने की बात लिखी है, और जिन लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा, उन्हें 1500 रुपए मासिक बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया गया है.


वहीं, बीजेपी ने 19 लाख युवाओं को रोजगार देने का वादा अपने घोषणा पत्र में किया है. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि बिहार में सड़क, बिजली और अन्य मुद्दों की बजाय राजनीति रोज़गार के वादों पर क्यों की जा रही है? इसका जवाब आज हम आपको दे देते हैं.


चुनाव की गाड़ी रोजगार पर क्यों अटकी?


बिहार का 31% युवा जिसकी उम्र 15 से 29 साल के बीच है, पढ़ा-लिखा होने के वादजूद नौकरी ढूंढ रहा है. और भारत में केरल के बाद बिहार ऐसा दूसरा राज्य हैं, जहां इतने सारे युवा रोज़गार ढूंढ रहे हैं. बेरोज़गारी दर के मामले में भी बिहार दूसरे नंबर पर है. बिहार का बेरोज़गारी दर दिल्ली से थोड़ी ही कम यानी 9.8% है.


किसी भी कर्मचारी को काम करने के एवज़ में महीने के बाद या रोज़ाना एक फिक्स सैलरी मिलती है, लेकिन दिल्ली में जहां ऐसे 60 प्रतिशत सैलरिड वर्कर हैं. वहीं बिहार के मात्र 10.4% लोगों को ही काम के बदले सैलरी या रोजाना भत्ता मिल पाता है, और इस मामले में भी बिहार देश में दूसरे नंबर पर है. इसका भी एक कारण है, चलिए आपको वो समझाते हैं.


बेरोजगार राज्यों की लिस्ट में दूसरा नंबर क्यों?


बिहार जैसे बड़े राज्य में युवाओं का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट पूरे भारत में सबसे कम है. बिहार के 15 से 29 साल तक के सिर्फ 27.6% युवा ही रोज़गार पा सके हैं, जबकि कुल 40 प्रतिशत के आसपास युवा लेबर फोर्स का हिस्सा हैं. दरअसल, देश की कुल जनसंख्या में से काम करने वाले लेबर फोर्स के अनुपात को लेबर फोर्स पार्टीसिपेशन रेट या फिर LFPR कहते हैं, जिस मामले में बिहार सबसे निचले पायदान पर है.


यही वजह है कि बिहार के 23 फिसदी ग्रेजुएट्स आज भी बेरोज़गार हैं. और देश के सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे बेरोज़गार युवाओं वाले 5 राज्यों में से बिहार एक है. यहां तक की महिलाओं के लिए भी बिहार में रोज़गार की हालत ये है कि केवल 4.3 फिसदी महिलाएं ही नौकरियां कर रही हैं. पूरे भारत में सबसे कम नौकरी करने वाली महिलाएं बिहार में ही हैं.


बिहार में कब खत्म होगी नौकरी की परेशानी?


युवाओं से लेकर महिलाओं तक हर कोई नौकरी के मामले में पिछड़ा हुआ है. अगर आप बिहार में हैं, तो नौकरी की दिक्कत आपको आनी ही आनी है. और इसलिए इस बार इस चुनाव में नौकरियों की बारिश हो रही है. पिछले 30 साल से बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, जनता दल युनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी (BJP) सत्ता में रही है, लेकिन आज भी यहां के युवाओं को शिक्षा या नौकरी के लिए अन्य राज्यों में पलायन करना ही पड़ता है.


अब देखने वाली बात है किस राजनीतिक दल के वादों पर लोग ज्यादा विश्वास करते हैं और उन्हें सत्ता तक पहुंचाते हैं. देखना ये भी होगा कि सत्ता में आने के बाद कौनसा राजनीतिक दल अपने वादों को पूरा कर पाता है, और ज़मीनी स्तर पर युवाओं और महिलाओं को रोज़गार दे पाता है.


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