नई दिल्ली.    इस बार हुए बिहार चुनावों का बिलकुल ही इंतज़ार नहीं था नितीश कुमार को क्योंकि उनको ये बात अच्छी तरह पता थी कि इस बार बिहार की जनता को ललचाना आसान नहीं होगा. लालू यादव के दोनों चिरंजीवियों को भी चुनाव का इतंज़ार बेकरारी से तो बिलकुल नहीं था क्योंकि उन्हें भी मंज़िल इतनी आसानी से मिल जाने की उम्मीद नहीं थी, किन्तु बिहार की जनता निर्धन तो हो सकती है निर्बुद्धि नहीं. चुनाव का इन्तजार जनता को था और बड़ी बेकरारी से था परंतु दुर्भाग्य की मारी जनता बेचारी विकल्पहीनता से भी हारी. मजबूरन इस बार नितीश को बाहर करके दोनों नौ-निहालों की सरकार बना सकते हैं बिहार के बेहाल मतदाता क्योंकि तीसरा विकल्प उपलब्ध नहीं है.    


पहला कारण -बीजेपी का जेडीयू के साथ जाना 


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मोदी एक राजनीतिक ब्रांड हैं जो विश्वास के प्रतीक हैं और जिनके नाम का इस्तेमाल इस देश में कहीं भी किया जा सकता है. बिहार की जनता अपनी निर्धनता और दयनीयता को भूल कर बीजेपी को इस बार पूरी तरह से बिहार को सम्हालने और इस बीमारू प्रदेश का कायाकल्प करने की जिम्मेदारी दे सकती थी किन्तु गलती कर दी बीजेपी ने और जेडीयू से हाथ मिला लिया. बीजेपी भूल गई पर जनता नहीं भूली कि इन तथाकथित सुशासन बाबू का एक नाम पलटू-राम भी है जो संभावित भावी मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का ही दिया हुआ है.


स्वर्गीय सुशांत सिंह राजपूत हैं दूसरे कारण 


सारा देश जिस मुद्दे पर संवेदनशील हो गया है उसी मुद्दे की जन्मभूमि का नाम बिहार है. मेधावी अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने जिस मिटटी से चल कर मुंबई के सिनेमाई आकाश तक अपनी  उड़ान भरी थी वही मिट्टी इन्तजार करती रह गई, बेटा वापस नहीं आया. उसकी कामयाबी की उड़ान का खात्मा जिस संदेहास्पद ढंग से हुआ वह दुखद भी था और दुर्भाग्यपूर्ण भी. देश की बीजेपी सरकार से उम्मीद थी कि न्याय दिलवाएगी सुशांत को लेकिन जो हुआ वो आश्चर्य भी था और नई बात भी नहीं थी. सुशांत की आत्मा कराहेगी तो बीजेपी कहां से जीतेगी. 


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स्वयं तेजस्वी यादव हैं तीसरे कारण 


अचानक ही समय की मांग को पहचाना लालू यादव के इस राजनैतिक वारिस ने और अपनेआप को बदल डाला. कहना अतिश्योक्ति न होगा कि तेजस्वी यादव का कायाकल्प सा हो गया है.अब वे एक परिपक्व और बुद्धिमान नेता के तौर पर उभरे हैं. जितना समर्थ भाषण देना और साक्षात्कार देना उन्हें आ गया है उतना ही जनता की नब्ज़ समझना और वक्त की जरूरत को पढ़ना भी आ गया है. प्रदेश के हर मुद्दे पर आप उनसे बात कर सकते हैं और हर समस्या का समाधान भी उनके पास है. अब तेजस्वी यादव बिहार में अस्तित्वमान सर्वोच्च नेताओं की श्रेणी में स्थापित हो गए हैं और इस तथ्य में संदेह कदापि नहीं है. 


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