BJP Abki baar 400 Paar Slogan:आज लोकसभा चुनाव के नतीजों से पहले रुझान आने के साथ ही भाजपा का 'अबकी बार 400 पार' का नारा फीका पड़ने लगा है. शुरुआती रुझानों से पता चलता है कि एनडीए 300 सीटों का आंकड़ा पार करने के लिए संघर्ष कर रहा है. संभावना है कि भाजपा किसी तरह जीत हासिल कर लेगी, लेकिन बहुमत के मामले में वह बहुत कम है. भाजपा का खुद के लिए 370 सीटें और उसके नेतृत्व वाले एनडीए के लिए 400 सीटें जीतने का लक्ष्य सभी नतीजे आने से पहले ही टूट गया है.


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पूरे भारत में '400 पार' का विजयी नारा गूंज रहा था और कुछ एग्जिट पोल ने भी एनडीए के 400 का आंकड़ा पार करने की भविष्यवाणी की थी. विपक्ष के INDIA गठबंधन के कई नेताओं ने एग्जिट पोल की भविष्यवाणियों पर निराशा जताई थी और ईवीएम पर सवाल खड़े किए थे. हालांकि, आज के शुरुआती रुझान ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभवतः तीसरी बार सत्ता में लौटेंगे, लेकिन '400 पार' का आंकड़ा नहीं छू पाएंगे.


सवाल ये कि भाजपा के लिए क्या गलत हुआ? जिसके पास कार्यकर्ताओं की एक बड़ी मशीनरी और शीर्ष पर चतुर नेता हैं जो जमीनी हकीकत पहचानने के लिए जाने जाते हैं.


इंडिया शाइनिंग की पुनरावृत्ति?
कई विपक्षी नेताओं और विश्लेषकों ने भाजपा के '400 पार' अभियान को 'इंडिया शाइनिंग' की परिघटना की पुनरावृत्ति करार दिया था. 2004 में, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार वाजपेयी सरकार के दौरान बेहतर आर्थिक और सामाजिक स्थितियों के आधार पर एक आत्मविश्वास से भरा 'इंडिया शाइनिंग' अभियान चलाने के बाद सत्ता में वापसी करने में विफल रही थी. कई लोगों का मानना ​​था कि 'इंडिया शाइनिंग' ने जमीनी हकीकत को छुपा दिया जो भाजपा के लिए अनुकूल नहीं था. कुछ लोगों का मानना ​​था कि अति आत्मविश्वास ने पार्टी को आत्मसंतुष्टि की ओर धकेल दिया.


क्या भाजपा का '400 पार' का नारा अति-आत्मविश्वास से भरा था, जो जमीनी हकीकत से बहुत ऊपर था?


एकजुट विपक्ष
अधिकांश बड़े और छोटे विपक्षी दलों ने अपने मतभेदों को भुलाकर एक साथ आकर INDIA गठबंधन बनाया, जो एक बड़ा अंतर पैदा कर गया. INDIA गठबंधन ने विपक्षी दलों के बीच अल्पसंख्यक वोटों के बंटवारे के भाजपा के पर्याप्त वोट को अपनी तरफ कर लिया. संभवतः इस संभावना के कारण भाजपा मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं के वोटों में सेंध लगाने की कोशिश कर रही थी. अलग पड़े विपक्षी वोट बड़ी संख्या में सीटों पर एकजुट हो गए, जो भाजपा के लिए 400 पार के लक्ष्य तक पहुंचने की सबसे बड़ी बाधा बन गया.


लुभावने ऑफर
राहुल गांधी ने लोगों, समाज के सबसे निचले तबके और विभिन्न जाति समूहों को ऐसे ऑफर दिए थे, जिनपर लोगों ने ध्यान दिया. हर गरीब महिला को 1 लाख रुपए देना राहुल द्वारा दिया गया एक बहुत बड़ा मुफ्त तोहफा था. हालांकि, अगर सभी महिलाओं में से एक तिहाई को भी ये गिफ्ट दिया जाता तो इस ऑफर की कीमत भारत के पूरे वार्षिक बजट के आधे से भी ज्यादा हो जाता. लेकिन ये भी सत्य है कि चुनावी वादे का वास्तविक गणित से क्या ही मेल, हर पार्टी बड़े-बड़े वादे करती है.


हालांकि, अभियान विज्ञापनों में दिखाए गए इस ऑफर ने बहुत से गरीब मतदाताओं को भाजपा के पाले से खींच लिया. INDIA गठबंधन के पास कुछ अन्य आकर्षक ऑफर भी थे जैसे कि नौकरी कोटा पर 60% की सीमा को हटाना और सैन्य भर्ती की अग्निवीर योजना को समाप्त करना. इन सबसे बढ़कर, राहुल गांधी ने धन के पुनर्वितरण के अपने क्रांतिकारी एजेंडे को आगे बढ़ाया, जिसका कुछ प्रमुख वैश्विक अर्थशास्त्रियों ने स्वागत किया.


भाजपा के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं
राम मंदिर भाजपा का एकमात्र बड़ा चुनावी मुद्दा था, लेकिन चूंकि यह चुनाव से कुछ महीने पहले तक था, इसलिए इसका चुनाव में इस्तेमाल शायद उतना उपयोगी नहीं हो पाया. अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ाने और इसे दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का मोदी का वादा भी उनके समर्थकों के एक हिस्से को अपनी तरफ खींचने में विफल रहा, जैसा कि 2019 में सर्जिकल स्ट्राइक ने किया था. मोदी के एक दशक लंबे शासन ने उनके समर्थकों के बीच अधिक उम्मीदें जगा दीं थीं और शायद वे किसी बड़े चुनावी मुद्दे का इंतजार कर रहे थे, जो नहीं आया.


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