नई दिल्ली. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस रुझानों में स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा छू चुकी है. राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी आंकड़ों के खेल में बहुत पीछे छूट गई है. 224 सदस्यीय विधानसभा में जहां बीजेपी 70 से 80 के आंकड़े के बीच है तो वहीं कांग्रेस स्पष्ट बहुमत यानी 113 से ज्यादा हासिल कर चुकी है. वहीं राज्य में तीसरी सबसे बड़ी ताकत जनता दल सेकुलर 20-25 के आंकड़े के बीच है. दरअसल कर्नाटक चुनाव की सबसे अहम बात यही है. 


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तीसरी ताकत की मौजूदगी के बावजूद बड़ी जीत
दरअसल साल 2014 के बाद कर्नाटक ही एक ऐसा राज्य है जहां पर एक मजबूत तीसरी ताकत की मौजूदगी के बावजूद कांग्रेस स्पष्ट बहुमत हासिल करने में कामयाब रही है. कई ऐसे राज्य हैं जहां पर कांग्रेस ने अकेले दम सरकार बनाई है. इन राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीगढ़ जैसे अहम राज्य हैं. लेकिन इन तीनों ही राज्यों कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई थी. यानी चुनावी लड़ाई तीनतरफा नहीं बल्कि दोतरफा थी. 


2018 में कांग्रेस के लिए स्पेशल बना था कर्नाटक
2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद 2018 ऐसा साल था जब कांग्रेस कोई राज्य से खुशखबरी मिली थी. इन राज्यों में सबसे पहला कर्नाटक ही था. तब जेडीएस और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई थी. जेडीएस चीफ और पूर्व पीएम देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी कांग्रेस के सपोर्ट से सीएम बने थे. कुमारस्वामी की अगुवाई वाली इस सरकार के शपथग्रहण को देश में विपक्षी एकता के मंच के रूप प्रदर्शित किया गया था. और देश के सबसे के लगभग सभी बड़े विपक्षी नेता मंच पर मौजूद थे. दिलचस्प बात ये थी कि इस चुनाव में कांग्रेस को जेडीएस से ज्यादा वोट मिले थे लेकिन उसने राजनीतिक रणनीति के तहत बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए जेडीएस को सीएम पद दे दिया. 


2015 में बिहार की जीत क्यों कर्नाटक जैसी नहीं थी?
हालांकि कर्नाटक से पहले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा थी जिसने बीजेपी को बुरी तरह हरा दिया था. लेकिन बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड के मुकाबले कांग्रेस छोटी प्लेयर रही और मुख्य फैसले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे दिग्गज नेता ही करते रहे. इसीलिए 2018 में कर्नाटक का चुनाव स्पेशल रहा था. यहां पर जेडीएस के साथ पार्टनरशिप करने में किसी पार्टी नहीं बल्कि कांग्रेस की ही बड़ी भूमिका थी.


कहा जा सकता है कि केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद कर्नाटक कांग्रेस के लिए स्पेशल राज्य रहा है. 2018 में कर्नाटक से मिली सफलता के बाद पार्टी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सरकार बनाई. अब 2023 में कर्नाटक ने फिर कांग्रेस के लिए अपने दरवाजे खोले हैं. 


एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तीसरी ताकत नहीं?
एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ से कर्नाटक की सफलता इसलिए अलग है क्योंकि इन राज्यों में कोई तीसरी ताकत मौजूदगी नहीं है. हम महाराष्ट्र का उदाहरण ले सकते हैं. महाराष्ट्र कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है. लेकिन यहां पर भी उसे बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए शिवसेना तक से हाथ मिलाना पड़ा जो वैचारिक रूप से बिल्कुल अलग थी. महाराष्ट्र में स्पष्ट बहुमत तो दूर की बात कांग्रेस चौथे नंबर की पार्टी रही थी. 


वेरी-वेरी स्पेशल बना कर्नाटक
इसलिए आज के नतीजे बता रहे हैं कि कांग्रेस के लिए 2018 में स्पेशल बना कर्नाटक अब वेरी वेरी स्पेशल में तब्दील हो चुका है. कर्नाटक से मिला आत्मविश्वास कांग्रेस के लिए आगामी चुनावों में बेहद सकारात्मक रूप में काम कर सकता है. 
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