Ashutosh Rana Bday Special: कभी नेता बनने के ख्वाब देखते थे आशुतोष राणा, गुरु की एक सलाह से पलट दी किस्मत
Ashutosh Rana Bday Special: आशुतोष राणा ने अपने लंबे फिल्मी करियर में एक से एक यादगार किरदारों को पर्दे पर उतारा है. उन्होंने अपने अभिनय का हमेशा ही लोहा मनवाया है. हालांकि, कम ही लोग जानते हैं कि वह कभी एक्टर बनना ही नहीं चाहते थे.
नई दिल्ली: Ashutosh Rana Birthday Special: कुछ कलाकार ऐसे होते हैं जिनका नाम सुनते ही उनके निभाए बेहतरीन किरदार और उनकी अदाकारी की तारीफें खुद ब खुद हमारी जुबां पर आ जाती हैं. ऐसा ही एक नाम आशुतोष राणा भी हैं, जो जब भी पर्दे पर उन्होंने अपनी बेहतरीन कलाकारी का लोहा मनवाया है. आशुतोष एक जबरदस्त अभिनेता होने के साथ-साथ साहित्य और भाषा की भी अच्छी समझ रखते हैं. उन्होंने थिएटर की दुनिया में एक लंबा सफर तय किया है. ऐसे में आज उनकी गिनती भारतीय सिनेमा के मंझे हुए कलाकारों में की जाती है. एक शानदार लेखक और कवि भी हैं.
मंत्र से प्रभावित होकर खुद रखा अपना नाम
10 नवंबर 1967 को मध्य प्रदेश में जन्में आशुतोष राणा ने अपनी जिंदगी के कई बड़े फैसले खुद ही किए हैं. यहां तक कि अपना नामकरण भी उन्होंने खुद ही किया. आशुतोष ने अपने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि जब वह मात्र साढ़े 3 साल के थे तब उन्होंने खुद अपना नाम रख लिया था. दरअसल, उस समय वह अपने माता-पिता के साथ एक पूजा में बैठे थे. तब तक उनका नामकरण नहीं था, लोग उन्हें सिर्फ 'राणा जी' ही बुलाते थे.
आज से मेरा नाम आशुतोष
जब आशुतोष पूजा में बैठे तो पंडित ने ॐ आशुतोषाय नमः का मंत्र पढ़ा. उनमें इस मंत्र का अर्थ जानने की जिज्ञासा हुई और उन्होंने पंडित से पूछ लिया कि इसका अर्थ क्या है. पंडित ने बताया कि आशुतोष भगवान शिव का ही एक नाम है. इस मंत्र से शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं. बस फिर क्या था उन्होंने उसी समय अपना नाम आशुतोष रख लिया. मां से कहा कि आज से मेरा नाम आशुतोष है.
स्कूल से ही करते थे नेतागिरी
कम ही लोग जानते हैं कि आशुतोष का रुझान हमेशा से ही नेता बनने की तरफ था. जब वह ग्यारहवी क्लास में थे तभी से उन्होंने नेतागिरी करनी शुरू कर दी थी. लोगों को यहां तक लगने लगा था कि वह इतने नेतागिरी में रम गए हैं कि एग्जाम में भी पास नहीं हो पाएंगे. हालांकि, जब रिजल्ट आया तो आशुतोष फर्स्ट डिवीजन में पास हुए. हर कोई हैरान रह गया था. इसके बाद खुशी में उनकी मार्कशीट को ट्रॉली में पूरे जिले में बैंड-बाजों के साथ घुमाकर घर लाया गया.
नेता बनने की थी ख्वाहिश
स्कूल पास करने के बाद आशुतोष की नेता बनने की इच्छा और बढ़ गई थी. उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी में एडमिशन भी सिर्फ इसीलिए लिया था कि वह स्टूडेंट पॉलिटिक्स कर सकें. हालांकि, किस्मत ने उनके बारे में कुछ और ही सोचा हुआ था. ग्रेजुएशन के बाद आशुतोष से उनके गुरुजी देवप्रकाश शास्त्री (दद्दा जी) ने कहा कि अब अपने पैशन को प्रोफेशन बनाने का वक्त आ गया है. दिल्ली जाओ और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लो. आशुतोष ने दद्दा जी बात मानी और पहले ही प्रयास में उन्हें NSD में एडमिशन भी मिल गया.
महेश ने किया था सेट से बाहर
नेशनल स्कूल ड्रामा पास करने के बाद आशुतोष फिर गुरु जी के पास पहुंचे. उन्होंने समझाया कि अब उन्हें दिल्ली छोड़कर मुंबई जाना चाहिए और वहां सबसे पहले महेश भट्ट से मिलो. गुरु जी ने आशुतोष से कहा कि वह जैसा भी छोटा-बड़ा काम दें, कर लें. आशुतोष ने भी बिल्कुल ऐसा ही किया. वह जैसे ही महेश भट्ट से मिल उन्होंने तुरंत उनके पैर छू लिए. इस बात से महेश काफी गुस्से में आ गए, लेकिन आशुतोष जब भी उनसे मिलते ऐसा करते. ऐसे में उन्होंने महेश को बताया कि बड़ो के पैर उनकी सभ्यता है, इसीलिए वह ऐसा करते हैं.
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