फिल्मों में म्यूजिक देने के लिए लता मंगेशकर ने छुपाई थी पहचान, जानिए क्या थी वजह
स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने रविवार को हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. उनके निधन से पूरा देश शोक में हैं. लता मंगेशकर की बातें ऐसी हैं जिनसे आज भी लोग अनजान हैं.
नई दिल्ली: सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने रविवार को हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं. 92 वर्षीय स्वर कोकिला सभी के आंखें नम कर गईं और अपने पीछे छोड़ गईं वो खूबसूरत नग्में, जो हमेशा उनकी याद दिलाएंगे. लता मंगेशकर ने अपने लंबे करियर में 20 भाषाओं में हजारों गानों को अपनी खूबसूरत आवाज से सजाया था.
आनंदघन से था खास रिश्ता
लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) एक ऐसी शख्सियत थीं, जिनकी निजी जिंदगी के बारे में कम ही लोगों को जानकारी है. ऐसा ही एक किस्सा है लता मंगेशकर और आनंदघन नाम के संगीत निर्देशक का. शायद ही किसी को पता होगा कि इन दोनों का बेहद करीबी रिश्ता रहा है. दिलचस्प बात ये है कि लता मंगेशकर और आनंदघन दो नहीं, बल्कि एक ही शख्स है. जी हां, लता मंगेशकर ही आनंदघन थीं.
लता मंगेशकर ने कई बार किया हैरान
अक्सर ये बात लोगों को हैरान कर जाती है कि लता मंगेशकर नाम बदलकर फिल्मों में संगीत भी दिया करती थीं. इसके लिए उन्होंने आनंदघन नाम चुना, जिसका शाब्दिक अर्थ था, 'खुशी का बादल.' उन्होंने 1950 में रिलीज हुई मराठी फिल्म 'राम राम पहुणे' में म्यूजिक कंपोज किया था.
कई फिल्मों में दिया संगीत
इसके बाद लता मंगेशकर ने मराठी सिनेमा में ही फिल्म 'मोहित्यांची मंजुला', 'मराठा टिटुका मेलवावा', 'सधी मनसे' और 'तंबड़ी माती' में भी म्यूजिक दिया था.
हालांकि, ये सिलसिला बहुत लंबे समय तक नहीं चला. इन पांच फिल्मों के अलावा लता मंगेशकर ने किसी और फिल्म के लिए अपनी आवाज तो दी, लेकिन उन्होंने म्यूजिक नहीं कंपोज किया.
इसलिए चुना छद्म नाम
अब बात करते हैं कि लता मंगेशकर ने आखिर अपना नाम छोड़ एक अलग नाम म्यूजिक के लिए क्यों चुना. दरअसल, इसका कारण था लता मंगेशकर की छवि को बचाए रखना. म्यूजिक से जुड़ा एक किस्सा काफी मशहूर है. मराठी निर्देशक भालजी पेंढारकर फिल्म 'मोहित्यांची मंजुला' फिल्म पर काम कर रहे थे. उस समय उनकी फिल्म में संगीत देने के लिए कोई प्रसिद्ध संगीत निर्देशक उपलब्ध नहीं था.
लता मंगेशकर ने दूर की थी भालजी की चिंता
भालजी इस बात से काफी परेशान थे. वह लता मंगेशकर को अपनी बेटी मानते थे. ऐसे में उन्होंने अपनी ये चिंता उनके साथ साझा की. इस पर लता ने कहा, 'ये मैं करूंगी.' भालजी ने उनकी बात पर हैरान होते हुए उन्हें चेतावनी दी कि यह कहानी देहाती पृष्ठभूमि पर है. इसलिए संगीत भी अलग ही चाहिए. लेकिन लता मंगेशकर ने उसी आत्मविश्वास से अपनी बात दोहराते हुए कहा कि वह इसमें संगीत देंगी.
भालजी ने दिया था सुझाव
भालजी की परेशानी तो लता मंगेशकर ने खत्म कर दी. लेकिन निर्देशक उनकी छवि को लेकर परेशान हो गए. उन्हें लगा कि अगर लता का संगीत लोगों को पंसद नहीं आया तो, इससे उनकी वह छवि खराब हो जाएगी जो उन्होंने बचपन से अपनी खूबसूरत आवाज के दम पर लोगों के दिलों में बनाई है.
ऐसे में उन्होंने लता मंगेशकर से संगीत निर्देशक के तौर पर कोई छद्म नाम चुनने के लिए कहा.
काफी विचार के बाद चुना था नाम
काफी सोच-विचार के बाद लता मंगेशकर को आनंदघन नाम काफी पसंद आया और उन्होंने संगीत निर्देशक के तौर पर इसे ही अपनी पहचान बना ली. इसके बाद वह जब भी किसी फिल्म मे म्यूजिक देतीं तो इसी नाम का इस्तेमाल करती थीं.
हमेशा गुप्त रखना चाहती थीं नाम
लता मंगेशकर हमेशा अपने इस नाम को गुप्त रखना चाहती थीं. लेकिन जब उनके इस संगीत को सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए राज्य सरकार ने सम्मानित किया तो, उन्होंने उद्घोषणा करते हुए बता दिया कि आनंदघन कोई और नहीं, बल्कि लता मंगेशकर ही हैं. इसके बाद ही उनका यह आनंदघन वाला राज भी पूरी दुनिया के सामने आ गया.
उदास है पूरा देश
लता मंगेशकर ने सिर्फ 11 साल की उम्र से ही गाना शुरू कर दिया था. उनसे जुड़े कई ऐसे किस्से है, जो आज भी लोगों के सामने नहीं आए हैं.
लता मंगेशकर आज हमारे बीच न होते हुई भी हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगी. उनके निधन से पूरे देश में एक सन्नाटा और उदासी सी छा गई है.
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